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शहीद-ए-आजम

वह गांव जहां मनाते हैं जहां शहीद-ए-आजम मनाते थे छुट्टियां !

इस 15 अगस्त आप शहीद-ए-आजम भगत सिंह के पैतृक गांव देखने जा सकते हैं. इस गांव की मिट्टी आपके भीतर जोश और जज्बा भर देगी. इस गांव में किसी जमाने में महान क्रांतिकारी और देशभक्त भगत सिंह अपने दादा के साथ छुट्टियां बिताने के लिए आते थे. यह उनके बचपन की बात है. सभी जानते हैं कि अगर शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का बिगुल नहीं फूंका होता तो शायद ही भारत आजाद होता.

 शहीद-ए-आजम
शहीद-ए-आजम

सेंट्रल असेंबली में बम फेंकर भगत सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत की पैरों तल जमीन खिसका दी थी. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया और उन्हें अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल भेज दिया गया. जब अंग्रेजी पुलिस ने सांडर्स हत्याकांड में सबूत जुटा लिये तो उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई.

निर्धारित तिथि से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 की शाम को भगत सिंह को फांसी दे दी गई और उनके पार्थिव शरीर को वहां से हटा लिया गया. उस वक्त उनकी उम्र महज 23 साल थी. सरदार भगत सिंह की इस महान कुर्बानी को भारत की जनता कभी नहीं भूल सकती. ऐसे ही अनगिनत क्रांतिकारियों के लहू की बदौलत हमें यह स्वतंत्रता मिली है. आइये आजादी के जश्न के बीच जानते हैं कि भगत सिंह का पैतृक गांव कहां है.

पंजाब के खटकड़ कलां में है शहीद-ए-आजम का पैतृक गांव

शहीद-ए-आजम भगत सिंह का पैतृक गांव पंजाब के खटकड़ कलां में है. जहां उनका पुश्तैनी मकान मौजूद है. जिसकी देखरेख अब पुरातत्व विभाग करता है. यहां एक विशाल स्मारक और म्यूजियम भी बनाया गया है. स्मारक 11 एकड़ में फैला हुआ है. इस 15 अगस्त आप भगत सिंह के इस पैतृक गांव को देखने के लिए जा सकते हैं. हालांकि भगत सिंह का जन्म इस गांव में नहीं हुआ था लेकिन वो यहां बचपन में अपने दादा अर्जुन सिंह के साथ छुट्टियां बिताने के लिए आते थे.

भगत सिंह का जन्म लायलपुर में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है. बताया जाता है कि इस गांव में प्लेग की बीमारी फैलने के कारण भगत सिंह का परिवार खटकड़ कलां को छोड़कर लायलपुर चला गया था. खटकड़ कलां में घर भगत सिंह के परदादा फतेह सिंह ने 1885 में बनाया था. अब यह मकान हेरिटेज घोषित किया गया है आप इसे देख सकते हैं. इसके एक कमरे में भगत सिंह भी यहां आने पर रहा करते थे.

 

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