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33 साल पहले शुरू हुआ था प्रोजेक्ट, एयरफोर्स में शामिल हुए 2 तेजस फाइटर

बेंगलुरु. देश में बने पहले लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LAC) तेजस को एयरफोर्स में शामिल कर लिया गया। फाइटर को IAF में शामिल करने के लिए बाकायदा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा की गई। इसमें सभी धर्मों के पुजारियों को बुलाया गया। फिलहाल, 2 तेजस फाइटर एयरफोर्स के बेड़े में शामिल हुए हैं। 1983 में एलसीए (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई थी। 1986 में सरकार ने देश में फाइटर प्रोजेक्ट के लिए 575 करोड़ सैंक्शन किए थे। दो साल बाद सलूर शिफ्ट होगी स्क्वॉड्रन…
– तेजस की पहली स्क्वॉड्रन को 2 साल तक बेंगलुरु में ही रखा जाएगा। इसके बाद इसे तमिलनाडु के सलूर में शिफ्ट किया जाएगा।
– फाइटर की पहली स्क्वॉड्रन का नाम ‘फ्लाइंग डैगर्स 45’ होगा।
– एयरफोर्स में एंट्री के साथ ही तेजस यह फ्रंटलाइन जेट्स जैसे सुखोई 30-MKI, जगुआर, मिराज-2000 की रैंक में शामिल हो गया।
– इसी फाइनेंशियल इयर में 6 और तेजस को शामिल करने का प्लान है।
– बता दें कि तेजस की फाइटर स्क्वॉड्रन में 16-17 जेट और एक या दो ट्रेनर्स शामिल किए जाने हैं।
32 साल पहले शुरू हुआ था प्रोजेक्ट
– मेड इन इंडिया फाइटर लाने की प्रॉसेस 33 साल पहले शुरू हो गई थी।
– अगस्त 1983 में एलसीए (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई।
– एलसीए प्रोग्राम को मैनेज करने के लिए 1984 में एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एलडीए) बनाई गई थी।
– 1986 में तब की कांग्रेस सरकार ने भारत में फाइटर प्लेन बनाने के लिए 575 करोड़ रुपए सैंक्शन किए थे।
– 4 जनवरी, 2001 में तेजस ने पहली उड़ान भरी।
– भारत के पीएम रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने फाइटर को ‘तेजस’ नाम दिया।
– जनवरी 2011 में इसे पहली बार मल्टी रोल और फाइटर परपज में लाने की बात हुई।
– दिसंबर 2013 में सिंगल इंजन वाले तेजस को शुरुआती ऑपरेशनल क्लियरेंस मिली।
क्यों पड़ी जरूरत?
– एयरफोर्स के पास महज 33 स्क्वॉड्रन बची हैं। एक स्क्वॉड्रन में 16-18 फाइटर प्लेन्स होते हैं।
– इन 33 में से 11 स्क्वॉड्रन्स में MiG-21 और MiG-27 फाइटर हैं।
– इनमें से भी सिर्फ 60 फीसदी ही ऑपरेशन के लिए तैयार हैं।
– मिग-21 और मिग-27 की हालत बहुत अच्छी नहीं है। इनमें हादसे होते रहे हैं।
– एक्सपर्ट्स की मानें तो चीन-पाकिस्तान के खतरे को देखते हुए भारत को 45 स्क्वॉड्रन चाहिए।

क्या है खास?

– तेजस एयर-टू-एयर और एयर-टू-सरफेस मिसाइल दागने में कैपेबल है।
– साथ ही, इससे एंटीशिप मिसाइल, बम और रॉकेट भी निशाना साध सकते हैं।
– तेजस 42% कार्बन फाइबर, 43% एल्युमिनियम अलॉय और टाइटेनियम से मिलकर बनाया गया है।
– तेजस फाइटर सिंगल सीटर और इसका ट्रेनर वेरिएंट 2 सीटर है।
– अब तक यह कुल 3184 बार उड़ान भर चुका है।
– तेजस 50 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है।
– तेजस के विंग्स 8.20 मीटर चौड़े हैं। इसकी लंबाई 13.20 मीटर और ऊंचाई 4.40 मीटर है। वजन 6560 किलोग्राम है।
किससे है टक्कर?
– 2016 की शुरुआत में तेजस ने बहरीन के इंटरनेशनल एयर शो में पार्टिसिपेट किया था।
– शो में पाकिस्तान के JF-17 थंडर फाइटर ने भी भाग लिया था। JF-17 को पाकिस्तान ने चीन की मदद से तैयार किया है।
– माना जा रहा है कि तेजस का मुकाबला JF-17 थंडर से ही होगा।
सबसे हल्का सुपरसोनिक?
– तेजस को अपनी तरह का सबसे हल्का सुपरसोनिक (साउंड की स्पीड से तेज उड़ने वाला) माना जा रहा है।
– फाइनल ऑपरेशन क्लियरेंस (FOC) वर्जन में इसकी मैक्सिमम स्पीड 2205 किमी/घंटे और इनिशियल ऑपरेशन क्लियरेंस (IOC) में स्पीड 2000 किमी/ घंटे होगी।
2018 में मिलेगा मार्क-1ए स्टैंडर्ड
– तेजस में एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) राडार और एडवान्स्ड इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) की फैसिलिटी दी गई है। इसके अलावा, इसमें मिड-एयर रिफ्यूलिंग भी की जा सकती है।
– IAF को तेजस का मार्क-1ए वर्जन चाहिए। 2018 तक इसे मार्क-1ए स्टैंडर्ड मिल जाएगा।
– एचएएल चीफ टी. सुवर्णा राजू के मुताबिक, तेजस को पूरी तरह से तैयार होने में 2 से 3 साल लगेंगे।
– प्रोजेक्ट से करीब से जुड़े एक अफसर के मुताबिक, “सिंगल इंजन तेजस अभी फाइट के लिए तैयार नहीं है। लेकिन इसकी फ्लाइट शुरू करने और IAF के बेड़े में शामिल होने के लिए पूरी तरह तैयार है।”
– दुनिया में आर्म्स सेलिंग के बड़े नाम मसलन रेथियॉन, इजरायल की एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज, थेल्स, SAAB और कई अन्य कंपनियों ने तेजस को बनाने में मदद की है।
एयर चीफ मार्शल ने मई में में उड़ाया था ट्रेनर वर्जन
– एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने 17 मई को 30 मिनट तक तेजस का ट्रेनर वर्जन उड़ाया था।
– राहा ने बेंगलुरु के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लि. (HAL) के एरोड्रम से उड़ान भरी थी।
– राहा ने कहा था, “तेजस एयरफोर्स के ऑपरेशन के लिए बेहतर साबित होगा।”
क्या कहते हैं HAL के एमडी?
– तेजस का मेन्युफैक्चरर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड है।
– HAL के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर टी. सुवर्णा राजू के मुताबिक, “बेंगलुरु में एक साल में 8 प्लेन के प्रोडक्शन के लिए ही मैन्युफैक्चरिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया गया है।”
– “लेकिन यह कैपिबिलिटी तभी हासिल होगी, जब एडीए (एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी) स्टैंडर्ड ऑफ प्रिपरेशन (एसओपी) को स्टेबल रखेगा।”
– “एसओपी में प्लेन के साइज, डिजाइन और टेक्निकल स्पेसिफिकेशन को रखा जाता है। जब तक इन्हें फाइनल नहीं किया जाएगा, प्लेन का लगातार प्रोडक्शन चालू नहीं हो सकेगा।”