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सिंथेटिक दूध कहीं न बन जाये लिवर कैंसर का कारण,खाध्य विभाग सो रहा कुम्भकरणी नींद

किशनी।क्षेत्र में जनसंख्या बढने के साथ साथ दूध की मांग भी लगातार बढती जा रही है। दूध का व्यापार करने बाले जब दूध की आपूर्ति नहीं कर पाते है तो वह नकली सिंथेटिक दूध बनाकर लोगों को बेचने लगते हैं। जिससे दूध की आपूर्ति भी हो जाती है तथा पैसे भी ठीकठाक मिल जाते है।

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कस्बे में बहुत कम लोग ऐसे हैं जिनके घरों में दुग्ध का उत्पादन होता है। इसलिये अधिकांश लोग बाजार के दूध पर निर्भर हैं। दुग्ध व्यापार में लगे लोग गांवों से दूध खरीद कर उचित कीमत पर लोगों के घरों तक पहुंचा देते हैं। पर सारे दूधिये अच्छा दूध बेचते हों येसा भी नहीं है। कई बार दूध गर्म करते ही फट जाता है। शिकायत पर दूधिये उपभोक्ता की ही गलती बता कर उनका मुंह बंद कर देते है। सूत्रों की माने तो अधिकांश दूध विक्रेता अपने घरों में सिंथेटिक दूध का निर्माण कर दूध बेच कर भारी मुनाफा कमाने में लगे हैं। उक्त खतरनाक दूधिये कैमल या इसी प्रकार के पेंट को पानी में घोल कर दूध बना लेते है। उसकी गंध को सेक्रीन डाल कर कम करते तथा स्वाद को मीठा बना देते है। इसकेे बाद दूध में घटिया और सस्ती रिफाइन मिलाई जाती है। दूध में कुछ फैन या झाग पैदा हो जाय इसके लिये उसमें कपडे धोने बाली ईजी मिलाई जाती है। इसमें गर्म पानी का प्रयोग कर उपभोक्ता को यह कह कर भ्रमित किया जाता है दूध अभी अभी भैंस से निकलवा कर लाया है। अब गडबडी तब होती है जब ईजी अथवा किसी चीज कर अनुपात कम या ज्यादा हो जाता है। इससे दूध का स्वाद बिगड जाता है तथा गर्म करते ही फट जाता है। प्रशासन को सोचना होगा जब नौनिहाल,बुजुर्ग या बीमार जिनका मुख्य भोजन दूध ही होता है इस दूध को पियेगा तो उसके स्वास्थ्य पर कितना बुरा प्रभाव पडेगा। इतनी जालसाजी के बाद भी खाध्य विभाग के अधिकारी कुम्भकरणी नींद सो रहे हैं। वह सिर्फ त्यौहार के समय चैकिंग के नाम पर खानापूर्ति कर चुप हो जाते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक दूध व्यवसाई ने बताया कि उनसे समय समय पर बिभाग के एजेन्ट पैसे लेकर चले जाते है। इसीलिये वह वेखौप होकर दूध के धन्धे में लगे हैं। स्वास्थ्य बिभाग को भी पैसे लेकर केंसर बांट रहे ऐसे दूध विक्रेताओं पर कार्यवाही करनी चाहिये ताकि विषैला दूध पीकर लोग असमय काल के गाल में न समायें।