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(इंडिया अलायंस)
(इंडिया अलायंस)

इंडिया अलायंस क्या अंतिम सांसें गिन रहा ?(इंडिया अलायंस)

नई दिल्‍ली. हिंदी भाषी तीन राज्यों में कांग्रेस पार्टी की बुरी हार ने राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया अलायंस (इंडिया अलायंस) को कोमा में डाल दिया है. चुनावी नतीजे आने के तुरंत बाद अलायंस के घटक दलों की ओर से विरोध के स्वर उठने लगे हैं. इसी कारण बुधवार को प्रस्तावित गठबंधन की बैठक भी स्थगित कर दिया गया है. गठबंधन के प्रमुख दलों के नेता इस बैठक में शामिल होने से कतराने लगे और फिर बैठक स्थगित हो गई. ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर यह गठबंधन बनने से पहले ही बिखरने लगा है.
कांग्रेस पार्टी भाजपा की तरह गठबंधन की आदी नहीं है. भले ही उसने 10 सालों तक यूपीए की सरकार चलाई हो लेकिन गठबंधन धर्म के बारे में उसको कोई खास जानकारी नहीं है. मध्य प्रदेश चुनाव इसका ताजा उदाहरण है. इस राज्य में पार्टी ने गठबंधन धर्म निभाने से स्पष्ट तौर इनकार कर दिया था. वह पार्टी के स्थानीय नेतृत्व यानी वरिष्ठ नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के दबाव में भोपाल में गठबंधन की बैठक तक नहीं होने दी. इतना ही नहीं, बीच चुनाव प्रचार के दौरान वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने गठबंधन के एक सबसे बड़े घटक दल समाजवादी पार्टी के मुखिया के बारे अपशब्द कहे. ऐसे में प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस गठबंधन के लिए जो घमंडिया शब्द का इस्तेमाल करते हैं वह काफी हद तक सही है.
राहुल के कंट्रोल में नहीं है कांग्रेस!
जहां तक इंडिया गठबंधन के भविष्य का सवाल है तो यह तो कहा ही जा सकता है कि माहौल खराब होने लगा है. गठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस की आलोचना कर रहे हैं. नीतीश कुमार से लेकर ममता बनर्जी तक नाराज बताए जा रहे हैं. लोकसभा चुनाव में चार-पांच महीने का वक्त बचा है और अब देखना होगा कि आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी कितना सक्रिय होती है. राहुल गांधी की भूमिका के बारे में सहाय कहते हैं कि निश्चिततौर पर राहुल गांधी की छवि बेहतर हुई है. ताजा चुनावी नतीजों के बावजूद उनकी छवि सुधरी है, लेकिन यह अब भी लगता है कि उनकी पार्टी उनके कंट्रोल में नहीं है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में स्थानीय नेताओं ने जिस तरह से चुनाव लड़ा उससे तो यही लगता है. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आगे पूरे पार्टी नेतृत्व को झुकना पड़ा. उनके चहेते उम्मीदवार को न चाहते हुए टिकट देना पड़ा. वहीं, मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने केंद्रीय लाइन से अलग अपने हिसाब से चुनाव लड़ा