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भारत की मेंबरशिप के लिए चीन को खुद मनाएंगे मोदी, बेनतीजा रही NSG की मीटिंग

वियना. न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की मेंबरशिप को लेकर अमेरिका के पूरे सपोर्ट के बावजूद वियना प्लेनरी (मीटिंग) में कुछ हासिल नहीं हो पाया। अब ये मुद्दा 24 जून को एनएसजी की सिओल में होने वाली प्लेनरी (मीटिंग) में ही रखा जाएगा। इस बीच, भारत की दावेदारी का लगातार विरोध कर रहे चीन को मनाने का जिम्मा खुद नरेंद्र मोदी संभालेंगे। वे इसी महीने ताशकंद में होने वाली मीटिंग में चीन के प्रेसिडेंट शी जिनपिंग से मुलाकात कर सकते हैं। चीन लगातार कर रहा है विरोध…
– भारत की एनएसजी में एंट्री को लेकर चीन लगातार विरोध कर रहा है।
– चीन का कहना है कि भारत बिना नॉन-प्रोलिफिरेशन ट्रीटी (परमाणु अप्रसार संधि-NPT) पर साइन किए एनएसजी का मेंबर नहीं बन सकता।
– चीन के अलावा कई अन्य देश भी भारत के बिना एनपीटी पर साइन किए हुए ग्रुप में आने का विरोध कर रहे हैं।
– सूत्रों की मानें तो न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका, आयरलैंड, तुर्की और ऑस्ट्रेलिया भारत का विरोध कर रहे हैं।
– भारत के मुद्दे पर अब 24 जून को सिओल में होनी वाली प्लेनरी में ही बात होगी।
– हालांकि, भारत को उम्मीद है कि चीन उसे सपोर्ट दे देगा।
चीन को लेकर भारत नहीं करेगा बयानबाजी
– बताया जा रहा है कि एनएसजी मसले पर भारत की ओर से चीन पर ज्यादा बयानबाजी नहीं की जाएगी।
– भारत को लग रहा है कि कहीं इससे चीन का मूड खराब न हो जाए।
– सूत्रों के मुताबिक, भारत नहीं चाहता कि चीन इस मामले में कोई सख्त कदम न उठा ले।
– इसके अलावा, अगर भारत शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) के लिए तय सीमा में जरूरी प्रॉसेस पूरी कर लेता है तो बैठक में पाक के साथ शामिल हो सकता है।
– सूत्रों की मानें तो मोदी के पास 23-24 जून को SCO की मीटिंग में हिस्सा लेने का मौका होगा।
– अगर मोदी चीन जाते हैं तो वे प्रेसिडेंट शी जिनपिंग से पर्सनली मिलकर एनएसजी के मुद्दे पर लॉबिंग कर सकते हैं।
– SCO जनरल सेक्रेटरी राशिद आलिमोव के मुताबिक, “भारत और पाकिस्तान ने समिट में शामिल होने की मुख्य शर्तों पर सहमति जताई है।”
भारत ने कहा- एंट्री के लिए NPT पर साइन जरूरी नहीं
– भारत का तर्क है कि एनएसजी की मेंबरशिप के लिए एनपीटी पर साइन करना जरूरी नहीं है। भारत ने इसके लिए फ्रांस का एग्जाम्पल भी दिया था।
– अमेरिका के अलावा जापान, मेक्सिको और स्विट्जरलैंड ने भी भारत को सपोर्ट करने की बात कही है।
– वियना में मीटिंग में यूएस फॉरेन मिनिस्टर जॉन कैरी ने मेंबर देशों को लेटर लिखकर भारत को सपोर्ट करने की बात कही थी।
क्या है NSG, क्या है काम?
– एनएसजी की स्थापना मई 1974 में भारत के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद की गई थी और इसकी पहली बैठक नवंबर 1975 में हुई। भारत के टेस्ट से साबित हुआ कि कुछ देश, जिनके बारे में माना जाता था कि उनके पास एटमी वेपन्स बनाने की टेक्नोलॉजी नहीं है, वो इसे बनाने के रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं।
– एनएसजी ऐसे 48 देशों का संगठन है, जिनका मकसद न्यूक्लियर वेपन्स और उनके प्रोडक्शन में इस्तेमाल हो सकने वाली टेक्नीक, इक्विपमेंट, मटेरियल के एक्सपोर्ट को रोकना या कम करना है।
– 1994 में स्वीकार की गई एनएसजी गाइडलाइन्स के मुताबिक, कोई भी सप्लायर कंट्री उसी वक्त ऐसे इक्विपमेंट के ट्रांसफर की परमिशन दे सकता है, जब उसे इत्मीनान हो कि ऐसा करने पर एटमी वेपन्स का प्रसार नहीं होगा।
– एनएसजी की वेबसाइट के मुताबिक, एनएसजी की गाइडलाइन्स परमाणु अप्रसार की विभिन्न संधियों के अनुकूल हैं।
– ये संधियां हैं- NPT, ट्रीटी फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ न्यूक्लियर वेपन्स इन लैटिन अमेरिका, साउथ पैसिफिक न्यूक्लियिर फ्री जोन ट्रीटी, अफ्रीकन न्यूक्लियर वेपन फ्री जोन ट्रीटी (पलिंदाबा समझौता), ट्रीटी ऑन द साउथ-ईस्ट एशिया न्यूक्लियर वेपन फ्री जोन (बैंकॉक समझौता) और द सेंट्रल एशियन न्यूक्लियर वेपन फ्री जोन ट्रीटी (सेमीपैलेटिंस्क समझौता)।
– एनएसजी गाइडलाइन्स की प्रोसीडिंग्स हर मेंबर देश के नेशनल लॉ और वर्किंग प्रॉसेस के मुताबिक होता है।
– इस संगठन में फैसले सर्वसम्मति के आधार पर होते हैं। सभी फैसले एनएसजी प्लेनरी बैठकों में होते हैं। हर साल इसकी एक बैठक होती है।
– भारत को अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, मेक्सिको, स्विट्जरलैंड जैसे देशों का सपोर्ट हासिल है, वहीं चीन पाकिस्तान के साथ है।
– भारत ने एनपीटी पर साइन नहीं किए हैं, जिसके कारण एक धड़े में भारत को शामिल करने को लेकर संशय है।