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कोरोना काल में भी नहीं रुके अपराध

लगभग सभी घरों में करीबी लोगों का आना-जाना भी बंद है। ऐसे में बहुत से कार्यों की रफ़्तार बेशक थम गई हो, परंतु अपराधी अधिक सक्रिय हो गए हैं जिसके लिए हर व्यक्ति को सजग रहने की आवश्यकता है। इस आपदा के समय में भी मनुष्य लालच की प्रवृत्ति को छोड़ नहीं पाया है। अपराध का बोलबाला ब़दस्तूर जारी है। अपराधी घर बैठे-बैठे भी मुख्यतः दो-तीन तरह के अपराधों में संलिप्त हैं जिनमें पहला तो यह है कि अपराध के शिकार को मालूम भी नहीं हो पाता कि वह शिकार हो गया है। सामाजिक रूप से ऐसे अपराधों के शिकार लोगों के सामान्य सामजिक या पारिवारिक जीवन में कोई अंतर मालूम नहीं पड़ता। इसका सबसे बड़ा नुक्सान यह है कि इनसान बार-बार ऐसे शिकारियों के चंगुल में फंसकर अपना समय और धन लुटाता रहता है। इस मॉडल पर फर्जी सामाजिक संस्थाएं या फर्जी समाजसेवी काम करते हैं। नकली बाबा भी यही रास्ता अपनाते हैं।

मनुष्य की दया, करुणा या परोपकार की मृदु भावना का फायदा उठाकर उनका शोषण इसी से करते हैं शातिर लोग! ये अक्सर सज्जन साधु बनकर ही समाज में मौजूद रहते हैं तथा इंटरनेट पोर्टल के जरिए ये लगातार दान-पुण्य का नाम लेकर ही धन की मांग करते हैं। ये फर्जी लोग बाकायदा विज्ञापन भी देते हैं जिनका इंटरनेट पर पता लगाना बहुत मुश्किल है। अपराधियों में दूसरी किस्म के वे लोग हैं जो अपनी पहचान छुपाकर, किसी और का लबादा ओढ़कर अपने आपको प्रस्तुत करते हैं। कभी ये लोग बैंक कर्मी, कभी इंश्योरेंस कम्पनी के एजेंट या कभी किसी अन्य तरह के सेवा प्रदाता के रूप में अपने आपको प्रस्तुत करते हैं। ज़रा सी लापरवाही के चलते ये आम आदमी से उसकी बैंक डिटेल या व्यक्तिगत डिटेल प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। इनका सीधा निशाना अपने शिकार का बैंक खाता होता है जिसे ये लोग पलक झपकते खाली करने में देर नहीं लगाते। आए दिन कहीं न कहीं से खबर मिल ही जाती है कि किसी को फर्जी फोन कॉल से हजारों या लाखों का चूना लग गया। तीसरी तरह के अपराधी शिकार की किसी कमजोरी को पकड़कर उसी से उसके गले की फांस तैयार करते हैं। कई बार तो मनुष्य की साधारण सी कमजोरियां उसे आर्थिक और सामजिक रूप से पंगु बना देती हैं।

हम खबरों में देखते-सुनते हैं कि किसी के साथ झूठे प्रेम की पींगें पड़ी और अंतरंग क्षणों के वीडियो बन गए जिनका इंटरनेट पर वायरल होने की धमकी के साथ ब्लैकमेल करने के लिए प्रयोग होना शुरू हो गया। कहीं-कहीं परेशानी में आत्महत्या जैसी नौबत भी हो गई। पैसे के लालच में भी कई बार आदमी खुद शिकार हो जाता है। ऐसा नहीं है कि ऐसे अपराध पहली बार हुए हैं। समय के साथ अपराधी नए-नए हथकंडे अपनाते आए हैं। टेक्नोलोजी का जितना विकास हुआ है, चोर उचक्के उतने ही अपडेट हो जाते हैं। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भोली-भाली जनता की अपेक्षा शातिर लोग ज्यादा अध्ययनशील होते हैं और व्यवस्थाओं में कहां कमजोर कड़ी है, उसे जल्दी ढूंढ कर अपना काला कारनामा शुरू कर देते हैं। आदमी जहां जरा सा भी लापरवाह हुआ या चीजों को समझने में चूक गया, समझो बस शिकार हो गया।

सूचना क्रांति और डिजिटल युग का सबसे बड़ा नुकसान उन लोगों को उठाना पड़ रहा है जो कहीं इसके उपयोग के लिए पूर्ण रूपेण तैयार नहीं हुए हैं। इस दिशा में सुरक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को इसके उपयोग का ज्ञान प्राप्त करना तथा यह समझना कि व्यक्तिगत दस्तावेज जैसे आधार संख्या, पैन कार्ड संख्या, बैंक से संबंधित दस्तावेजों या क्रेडिट-डेबिट कार्ड की संख्या या उनके फोटो बहुत ही विश्वनीयता के साथ उपयोग किए जाने चाहिए। पहला नियम यह कि यदि कोई बैंक का अधिकारी कह कर फोन करे तो समझो वह फ्रॉड कॉल है क्योंकि कोई भी बैंक अपने ग्राहकों को कभी भी फोन नहीं करता, न ही कोई डिटेल पूछता है। इंटरनेट पर यदि कोई अनावश्यक अथवा अश्लील विज्ञापन फ्लैश हो तो सचेत हो जाना चाहिए। ऐसे में सजग रहना तथा आदर्श मूल्यों का निर्वहन करना ही बचे रहने का साधन बन सकता है। कुल मिलाकर समझें तो समय यही कह रहा है कि हम अपनी कमजोरियों पर ध्यान दें, सजग रहें और इस तरह सुरक्षित भी रहें।