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(glaciers )
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विशाल ग्लेशियरों(glaciers ) को सफेद चादर से क्यों ढंक रहा चीन

बीजिंग. चीन के वैज्ञानिक दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में समुद्र तल से 3 मील ऊपर डागु ग्लेशियर (glaciers ) की चोटी के पास बर्फ को बचाने के लिए भरसक कोशिश कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का एक समूह सफेद कपड़े के मोटे रोल से 4,300 वर्ग फुट (400 वर्ग मीटर) फैले बर्फ के चादरों के पहाड़ को ढंकने की योजना बना रहा है. इस सफ़ेद चादर की खासियत ये है कि ये सूर्य की किरणों को वापस वायुमंडल में रेफ़्लेट कर देगा. ये चादर ग्लेशियर को गर्मी से प्रभावी ढंग से बचाने और इसकी बर्फ को संरक्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

यह डागु पर्वत दशकों से आसपास रहने वाले हाजरों लोगों के जीवनदायिनी साबित हुआ है. ग्लेशियर का पिघला हुआ पानी इन निवासियों को पीने का पानी प्रदान करता है और जलविद्युत (Hydroelectric) उत्पन्न करने में मदद करता है. इस ग्लेशियर की खूबसूरती देखने के लिए हर वर्ष तक़रीबन 2 लाख से अधिक पर्यटक इस तिब्बती पहाड़ का दीदार करने आते हैं. अब हमारे पृथ्वी के तापमान बढ़ने के कारण से यह खतरे में पद गया है. पिछली आधी सदी में ग्लेशियर पहले ही अपनी 70% से अधिक बर्फ खो चुका है. लेकिन चीनी वैज्ञानिक अब इसे सफ़ेद चादर से ढंक कर इसके जीवनकाल बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, ये योजना अल्पकालिक हो सकती है लेकिन इसको अगर बचाना है तो ग्लोबल वार्मिंग की मुख्य वजह कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में भारी कटौती करना होगा, चीन दुनिया में इसका मुख्य स्रोत है.

वहीं, इस अभियान के नेतृत्व कर रहे 32 वर्षीय नानजिंग विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर झू बिन ने कहा, ‘हम उन सभी मानव तरीकों का उपयोग कर रहे हैं, जिनसे बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया को धीमा कर सकता है, लेकिन हमारी पृथ्वी इसी रफ़्तार से गर्म होती रही तो ग्लेशियरों को हमेशा के लिए सुरक्षित रखने का कोई रास्ता नहीं है. उन्होंने बताया कि बर्फ को सफ़ेद परावर्तक चादर से ढंकने की क्रिया कोई नया विचार नहीं है. लगभग दो दशक पहले यूरोपीय स्की रिसॉर्ट बर्फ बचाने के लिए सफ़ेद चादर से इसे ढंका था. साल 2020 में झिंजियांग और डागु में एक ग्लेशियर पर छोटा परीक्षण किया गया था. लेकिन वैज्ञानिकों की डागु पर्वत पर वापसी काफी धीमी प्रक्रिया है.

झू बिन की टीम जिस चादर का उपयोग डागु के ग्लेशियर से ढंकने की प्रक्रिया कर रहे हैं, वह सूर्य की 93% रोशनी को प्रवर्तित करने में सक्षम है. सूर्य की प्रभाव को खत्म करने के लिए इस सफ़ेद चादर की फिल्म को सेलूलोज़ एसीटेट, पौधों से बने प्राकृतिक फाइबर से बनाया गया है. इन चादरों को ड्रोन की मदद से ग्लेशियर पर बिछाया जा सकता है.

ग्लेशियर पर चादर बिछाने की प्रक्रिया आसान काम नहीं है. समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर स्थित वैज्ञानिकों को सर दर्द , मिचली और ऑक्सीजन की कमी से काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा स्टीम ड्रील, लकड़ी के फ्रेम और नेल गन से बर्फ की चादरों को सुरक्षित करना ही उनका मुख्य उद्देश्य था. जैसे-जैसे वे ग्लेशियर में गहराई तक गए, उनके कमर तक बर्फ इतनी मोटी हो गई कि आगे बढ़ना बहुत खतरनाक हो गया. जिसके कारण उन्हें वापस अपने कैम्प में लौटना पड़ा.

वहीं, ईटीएच ज्यूरिख में ग्लेशियोलॉजी के प्रोफेसर मैथियास हस ने बताया कि, ‘चादरों से बर्फ के पिघलने को 50% से 70% तक कम किया जा सकता है. लेकिन इनसे निकलने वाले रसायन या प्लास्टिक के कण स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और डाउनस्ट्रीम पानी की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं. उन्होंने कहा कि, ‘स्थानीय स्तर पर ये कार्य काफी सराहनीय है लेकिन प्रभावी समाधान का एकलौता उत्तर है ”जलवायु की रक्षा.”
लेकिन कई जलवायु विज्ञानी इस योजना अव्यावहारिक माना है. उनका मानना है कि अगर चादर से बर्फ को ढंक दिया जाये तो नीचे का स्थान काली पड़ जाएगी और उनकी सूर्य की रोशनी को प्रतिबिंबित करने की क्षमता कम हो जाएगी. उन्होंने बर्फ की चादरों को बचाने के लिए ‘कृत्रिम बर्फ’ के उपयोग की वकालत की है.