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(चीन )
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चीन का कौन सा ‘खेल’ बिगड़ा ? (चीन )

इजरायल -: इजरायल और हमास की लड़ाई में चीन को ‘जोर का झटका धीरे से’ लगा है. चीनी (चीन )  राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने करीब 4 महीने पहले, जून में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मुलाकात की थी. दोनों की मुलाकात बीजिंग में हुई थी. इसके ठीक बाद जिनपिंग ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू को भी चीन की आधिकारिक यात्रा के लिए आमंत्रित किया था.

क्या था चीन का प्लान जो धरा रह गया?
बेंजामिन नेतान्याहू ने शी जिनपिंग का निमंत्रण स्वीकार भी कर लिया था. पश्चिम एशिया की राजनीति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स कहते हैं कि चीन की मंशा थी कि अगर वह फिलिस्तीन और इजरायल के संबंधों में सालों से घुली तल्खी कुछ हद तक भी दूर करवाने में कामयाब रहा तो, पश्चिमी एशिया में उसकी भूमिका और बड़ी हो जाएगी. इसी क्रम में उसने पहले फिलिस्तीनी प्रधानमंत्री को बुलाया था और फिर शी जिनपिंग की इजरायली प्रधानमंत्री से मुलाकात तय थी.

चीन की चुप्पी इजरायल को अखर रही
7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास के हमले के बाद बेंजामिन नेतान्याहू की चीन की यात्रा को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अब ज्यादा संभावना है कि नेतान्याहू, बीजिंग जाएं भी न या निकट भविष्य में चीन का कोई आमंत्रण स्वीकार करें. इसकी सबसे बड़ी वजह है इजराइल-हमास युद्ध में चीन की चुप्पी. हमास के हमले के बाद अमेरिका, ब्रिटेन, समेत तमाम पश्चिमी और यूरोपीय देशों ने खुलकर इजरायल का समर्थन किया. भारत भी इजरायल के साथ खड़ा नजर आया. लेकिन इजरायल और फिलिस्तीन को करीब लाने की मंशा पाले चीन ने एक शब्द नहीं कहा. पूरी तरह तटस्थ रहा. यह बात इजरायल को अखर रही है.

आखिर क्या है चीन की मंशा?
जो चीन कुछ वक्त पहले तक इजरायल के करीब आना चाहता था, हमास के हमले के बाद आखिर चुप क्यों हो गया? एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इसमें भी चीन की रणनीति है. चीन जानबूझकर तटस्थ है, क्योंकि वह हमास और फिलिस्तीन के करीबी माने जाने वाले अरब देशों को नाराज नहीं करना चाहता. अरब देशों के साथ संबंध बनाकर चीन को कई फ्रंट पर फायदा हो सकता है.

द्वि-राष्ट्र समाधान के पक्ष में चीन
चीन लंबे समय से द्वि-राष्ट्र समाधान की वकालत करता रहा है, जिसके तहत एक स्वतंत्र फिलिस्तीन बनाने की बात कही गई है. हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने एक बार फिर यही राग अलापा. वांग ने ब्राजील के राष्ट्रपति के एक सलाहकार के साथ बातचीत के दौरान कहा, ‘इस संघर्ष ने एक बार फिर साबित कर दिया कि फलस्तीन मुद्दे को हल करने का रास्ता जल्द से जल्द वास्तविक शांति वार्ता फिर से शुरू करने और फलस्तीनी राष्ट्र के वैध अधिकारों को साकार करने में निहित है.’