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जिसके पास शक्ति ही न हो वह कैसा देवता ?

सूर्य…संसार में जन्मी हर सभ्यता ने उन्हें देवता के रूप में पूजा है कहीं आदित्य, कहीं एटन, कहीं रे, कहीं सूर्यस भारत में मिश्र में, यूनान में, मेसोपोटामिया में केवल इसलिए क्योंकि उनकी शक्ति प्रत्यक्ष दिखती है गर्मी में जब वे प्रचंड रूप में दिखते हैं तब मनुष्य त्राहि त्राहि करता है शीत में जब वे नहीं दिखते तब मनुष्य त्राहि त्राहि करता है मनुष्य की सारी व्यवस्था उनकी दिनचर्या पर टिकी है इसीलिए मनुष्य उन्हें देवता कहता है उन्हें पूजता है…
पूजा वस्तुतः शक्ति की ही होती हैऔर पूजा शक्ति की ही होनी चाहिये जिसके पास शक्ति ही न हो वह कैसा देवता? जो स्वयं की ही रक्षा न कर सके उसमें कैसा ईश्वरीय अंश? कैसा देवत्व? देवता वह होता है जिसकी शक्ति स्पष्ट दिखे मनुष्य को पवन की शक्ति दिखी वे सबकुछ तहस-नहस कर सकते थे, सो उन्हें देवता कहा गया मनुष्य को अग्नि की शक्ति समझ में आयी वह जान गया कि अग्नि विपरीत हों तो सबकुछ स्वाहा हो जाएगा और साथ हों तो जीवन सुखमय होगा उसने अग्नि को भी देव कहा मनुष्य को वर्षा की शक्ति दिखी उसने वरुण को देवता माना और उसने माना इन समस्त प्राकृतिक शक्तियों के स्वामी इंद्र को इंद्रदेव देवत्व की सबसे वैज्ञानिक व्यवस्था यही थी,|

कवियों को जब भी किसी व्यक्ति के अतुलित शौर्य के लिए उपमा ढूंढनी पड़ी, उन्होंने सूर्य को चुना शक्ति का सूर्य से बड़ा साक्षात प्रतीक और कौन होगा? दिनकर का पुरुरवा कहता है “मर्त्य मानव के विजय का तुर्य हूँ मैं, उर्वशी अपने समय का सूर्य हूँ मैं” महर्षि वेदव्यास के कर्ण स्वयं को सूर्य का अंश कहते हैं और उनके शौर्य से प्रभावित तात्कालिक विश्व उन्हें सूर्यपुत्र स्वीकार करता है और महर्षि वाल्मीकि के राम अपने जीवन के सबसे बड़े संग्राम में विपरीत परिस्थितियों में शक्ति और आत्मविश्वास पाने के लिए उसी सूर्य की आराधना करते हुए आदित्य हृदय स्त्रोत पढ़ते हैं भगवान राम का महान यशश्वी कुल तो उन्हें कुल देवता के रूप में पूजता रहा है ज्योतिषी लोग कहते हैं सूर्य की पूजा से यश और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है |

गाँव के पुरनिये अपने बच्चों को सूर्य सा तेज और यश पाने का आशीष देते रहे हैं सही भी है यश, प्रतिष्ठा और तेज का सूर्य से बड़ा मानक और कौन है संसार में… मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भी अपने युग के सूर्य ही थे, और भगवान श्रीकृष्ण भी अपने युग के सूर्य ही थे वे युग नायक थे, उन्होंने देश को गढ़ा, सभ्यता गढ़ी, और लोक में देवता के रूप में स्थापित हो गए दिनकर की भाषा में कहें तो मनुष्यों में भी हर युग का अपना सूर्य होता है हर युग में हर गाँव का अपना सूर्य होता है, हर राज्य का अपना सूर्य होता है, हर देश का अपना सूर्य होता है जो उस गांव, राज्य या देश की प्रतिष्ठा का ध्वज उठाता है और मनुष्यों के बीच उदय हुए आदित्य की पूजा भले न हो, उन्हें प्रतिष्ठा अवश्य दी जानी चाहिये सूर्य के साथ साथ अपने युग के सूर्य को भी प्रतिष्ठा अवश्य दी जानी चाहिये