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(प्रधानमंत्री )
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मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक ?(प्रधानमंत्री )

वीपी सिंह :‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है…’ दिसंबर 1989 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने तो यह नारा उनका पर्याय बना गया. पीएम की कुर्सी संभालने से पहले वीपी सिंह, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र में तमाम अहम मंत्रालय संभाल चुके थे, लेकिन कहीं ज्यादा दिन नहीं टिक पाए थे. प्रधानमंत्री  (प्रधानमंत्री ) के तौर पर भी उनका कार्यकाल महज 11 महीनों का रहा. और यह भविष्यवाणी उनके पारिवारिक ज्योतिषी ने पहले ही कर दी थी.

पिता थे ज्योतिषी, लेकिन वीपी सिंह की जरा दिलचस्पी नहीं: ‘राजा ऑफ मांडा’ वीपी सिंह के परिवार की ज्योतिष और हस्तरेखा में गहरी दिलचस्पी थी. खासकर उनके पिता और बड़े भाई, दोनों का ज्योतिष में अटूट विश्वास था. पिता तो ठीक-ठाक ज्योतिषी भी थे. देबाशीष मुखर्जी अपनी किताब ‘द डिसरप्टर: हाउ विश्वनाथ प्रताप सिंह शुक इंडिया’ में लिखते हैं कि वीपी सिंह का परिवार ज्योतिष को फॉलो करता था. हर छोटे-बड़े काम में पारिवारिक ज्योतिषी की सलाह लिया करता था, लेकिन खुद वीपी सिंह की इसमें जरा भी दिलचस्पी नहीं थी. वह कहते थे, ‘ये लोग जो भी भविष्यवाणी करते हैं, ज्यादातर गलत साबित होती है…’।

सच हुई ज्योतिषी की वो भविष्यवाणी: लेकिन एक मौका ऐसा आया जब वीपी सिंह के पारिवारिक ज्योतिषी ने जो भविष्यवाणी की, वो बिल्कुल सच साबित हो गई. देबाशीष मुखर्जी, वीपी सिंह की पत्नी सीता कुमारी सिंह के हवाले से लिखते हैं, ”हमारे पारिवारिक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि मेरे पति तमाम ऊंचे ओहदों पर पहुंचेंगे, लेकिन किसी पर ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएंगे…और हुआ भी ठीक ऐसा ही’।

1980 के दशक में वीपी सिंह के सियासी करियर ने रफ्तार पकड़ी. यूपी के मुख्यमंत्री रहे. केंद्र में वाणिज्य, वित्त और रक्षा मंत्रालय जैसा अहम पोर्टफोलियो संभाला और फिर पीएम की गद्दी मिली. लेकिन सभी पदों पर, सारा कार्यकाल महज 10 सालों का रहा.

10 महीने के अंदर CM से PM तक का सफर: वीपी सिंह के सियासी जीवन से जुड़े तीन किस्से सर्वाधिक मशहूर हैं. यूपी के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा, राजीव गांधी से सीधी लड़ाई और प्रधानमंत्री रहते मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करना, जिसके जरिये ओबीसी आरक्षण का रास्ता खुला था. वीपी सिंह ने अपनी सियासत का ज्यादा वक्त कांग्रेस के साथ बिताया और कांग्रेस में रहते हुए ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

उन दिनों उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर था. खासकर, डाकुओं के आतंक से सब त्रस्त थे. वीपी सिंह ने वादा किया कि 2 साल के अंदर डाकुओं का खात्मा कर देंगे और अपराध पर लगाम लगा देंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उल्टा उनके जज भाई की ही डाकुओं ने जान ले ली. इसके बाद वीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया.

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो पहले वीपी सिंह को वित्त मंत्री बनाया और फिर रक्षा मंत्रालय जैसा भारी-भरकम जिम्मा सौंपा. लेकिन बोफोर्स के मसले पर वीपी सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ खुलेआम मोर्चा खोल दिया और बाद में कांग्रेस से अलग होकर ‘राष्ट्रीय मोर्चा’ के नाम से साल 1988 में अपनी अलग पार्टी बना ली. इसके ठीक अगले साल, यानी 1989 में लोकसभा चुनाव हुए.

और फिर पीएम की कुर्सी का सफर…1989 के लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. गठबंधन की सरकार बनी और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं और ओबीसी आरक्षण का रास्ता खोल दिया. यह सिफारिश 10 साल से धूल फांक रही थी. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के साथ ही एक वर्ग ने वीपी सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. महज 11 महीने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रह पाए.