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( Muslim League) 
( Muslim League) 

इसमें पहले कांग्रेस और फिर बाद में मुस्लिम लीग ( Muslim League) के भी सदस्य मंत्री बने

द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद अंग्रेजों ने तय कर लिया था कि वे भारत को आजाद कर अपने देश लौट जाएंगे. 1946 में जब संविधान सभा का निर्वाचन हुआ तो उसके बाद ही 2 सितंबर को एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ जिसके प्रधानमंत्री यानि प्रमुख जवाहर लाल नेहरू बनाए गए. शुरू में मुस्लिम लीग( Muslim League)  इस अंतरिम सरकार में शामिल नहीं हुई लेकिन बाद में उसके कुछ सदस्य भी इस सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए.

पहले संविधान सभा का हुआ गठन
विश्वयुद्ध खत्म होने पर ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन के सभी कैदियों को रिहा कर दिया. इसके बाद कांग्रेस ने संविधान संभा के चुनाव में भाग लेने का फैसला किया. मुस्लिम लीग ने भी इस चुनाव में हिस्सा लिया. यह चुनाव सीधा चुनाव नहीं था यानि संविधान सभा के सदस्यों को राज्यों की असेंबली के सदस्यों ने चुना था.

नेहरू को मिली प्रधानमंत्री की शक्तियां
इस चुनाव में कांग्रेस ने हिंदु बहुल इलाकों की ज्यादातर सीटें जीतीं तो वहीं मुस्लिम लीग ने मुस्लिम बहुल इलाकों की सीटें जीतीं. 1946 में ही ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने कैबिनेट मिशन हिंदुस्तान भेजा जिससे ऐसी सरकार बन सके जो आजाद भारत को संभाल ले. शुरू में इसका प्रमुख वायसराय को बनाया गया, लेकिन बाद में इसे एक मंत्रिमंडल में बदल दिया गया. इसके उपाध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू थे जिनका प्रधानमंत्री की सारी शक्तियां थी.

अंतरिम सरकार को सौंपी गई बड़ी जिम्मेदारी
तय यह हुआ कि आजादी के बाद वायसराय को छोड़कर काउंसिल के सभी सदस्य भारतीय होंगे और वायसराय आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल होंगे. इस अंतरिम सरकार को यह काम सौंपा गया कि वह अंग्रेजों से भारत और पाकिस्तान के बीच सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया में मदद करेगी.

इस सरकार में सरदार वल्लभ भाई पटेल को गृह विभाग, बलदेव सिंह को रक्षा विभाग, सी राजगोपालाचारी को शिक्षा एवं कला विभाग, आसिफ अली को रेलवे परिवहन और डाक और वायु विभाग, जॉन मथाई को वित्त, सीएच भाभा को व्यवसाय, डॉ राजेंद्र प्रसाद को खाद्य और कृषि विभाग में मिला था. विदेश विभाग नेहरू तो सूचना एवं प्रसारण विभाग सरदार पटेल के जिम्मे गया था.

मुस्लिम लीग के नेताओं को क्या मिला
बाद में इस सरकार में मुस्लिम लीग भी शामिल हो गई थी. इसके लियाकतअली खान को वित्त को मंत्रालय, इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर को व्यवसाय, गजनफर अली खान को स्वास्थ्य, अब्दुल राब निश्तार को रेलवे और संचार, पोस्ट और वायु और मुस्लीम लीग केही जोगेंद्रनाथ मंडल को कानून विभाग सौंपे गए थे.

अंतरराष्ट्रीय राजनयिक संबंध भी
इस सरकार ने केवल भारत में ही काम नहीं किया बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका सहित कई देशों से राजनयिक संबंध भी बनाए. इस बीच 20 फरवरी को ब्रिटिश सरकार ने वायसराय बदला और ऐलान भी किया कि अंग्रेज जून 1948 तक सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी कर भारत छोड़ देंगे. लेकिन अंतरिम सरकार कायम ही रही और आजादी तक अपना काम करती रही.

जब यह अंतरिम सरकार बनी थी. उससे पहले से ही देश में हिंदू मुस्लिम तनाव बढ़ने लगा था और मुस्लिम लीग की मांगें भी बढ़ने लगी थी. पहले तो जिन्ना ने इस सरकार में शामिल होने में झिझक दिखाई, लेकिन फिर वह शामिल भी हो गई. इसके बाद कांग्रेस और मुस्लिम लीग में तालमेलन नहीं हो पाया और फरवरी 1947 में ही नेहरू ने ही कहा कि मुस्लिम लीग को सरकार से हट जाना चाहिए.

हालात यह बन गई कि अंतरिम सरकार भंग ही होने वाली थी. लेकिन अंग्रेजों के जून 1948 तक जाने के ऐलान और वायसराय बदलने के बाद हालात बदल गए. लॉर्ड माउंटबेटन के आने के बाद भी यह सरकार कायम रही और 15 अगस्त 1947 तक काम करती रही. इसी बीच संविधान सभा भी अपना काम करती रही और नए संविधान अपनाने के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत ने नया संविधान अपनाया और पंडित नेहरू भारत के प्रधानमंत्री और डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बने.