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(बिहार में)
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बिहार में यादव या फिर भूमिहार हैं दबंग?(बिहार में)

पटना. बिहार में  (बिहार में) जाति आधारित सर्वे के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद से ही प्रदेश की दबंग जातियों को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. खासतौर पर बिहार की दो जातियां भूमिहार और यादव को लेकर विशेष चर्चाएं हो रही हैं. लोगों की जुबान पर एक ही बात है कि इन दोनों जातियों में कौन दबंग है? नीतीश सरकार ने जातिगत सर्वे रिपोर्ट जारी कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मंशा है कि विपक्षी I.N.D.I. A गठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को प्रमुख एजेंडा बनाए. ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि बिहार में जाति आधारित सर्वे रिपोर्ट आने के बाद यादव और भूमिहार में कौन जाति ज्यादा ताकतवर है और किस जाति का वर्चस्व राजनीति के साथ-साथ जमीन पर भी ज्यादा है?
बिहार में पिछड़ी जातियों और दलितों की आबादी ज्यादा होने के बावजूद सवर्ण जातियों का राजनीति में वर्चस्व रहा है. साल 1947 से 1967 तक बिहार में सवर्ण जातियों का बोलबाला रहा. उसके बाद भी समय-समय पर सवर्ण जाति सत्ता में जरूर आई, लेकिन भूमिहार जाति का वर्चस्व राजनीति में कमता चला गया. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह 1961 तक सीएम रहे. इसके बाद 1961 में पहली बार विनोदानंद झा के तौर पर बिहार को ब्राह्मण सीएम मिला.

बिहार की दो दबंग जातियां
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बिहार में जातिगत सर्वे रिपोर्ट सामने आने के बाद आनेवाले दिनों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर भी असर पड़ना तय है. खासकर सवर्णों के प्रतिनिधित्व पर इसका असर देखने को मिल सकता है. सवर्णों में राजनीतिक रूप से सर्वाधिक सबल जाति भूमिहार की जनसंख्या 2.86 प्रतिशत है. उनसे अधिक जनसंख्या ब्राह्मणों व राजपूतों की है. हालांकि, बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह से लेकर वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा तक राजनीति में भूमिहार समाज का प्रभुत्व रहा है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी इसी जाति से आते हैं. इसका कारण इस जाति की बौद्धिक और मानसिक चेतना को माना जाता है.

कौन किस पर कब तक भारी रहा?
बता दें कि बिहार बीजेपी के कद्दावर नेता रहे कैलाशपति मिश्र भी भूमिहार जाति से ही आते थे. वर्तमान में कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी इसी जाति से आते हैं. बिहार की तीन वामदलों की बात करें तो भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय और भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल भी इसी जाति से आते हैं. वहीं, जेडीयू में राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह भी इसी जाति से आते हैं. जेडीयू नेता और बिहार के वित्त मंत्री विजय चौधरी भी इसी जाति से आते हैं. इसके साथ ही भूमिहार जाति के कुछ अन्य नेता भी अलग-अलग इलाकों में अपना वर्चस्व बना रखा है.
लालू यादव बन गए हैं यादवों के नेता?
अब अगर यादव जाति की बात करें तो बिहार में यह जाति हाल के दिनों में सबसे ज्यादा ताकतवर होकर उभरी है. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और शरद यादव का इस जाति में विशेष वर्चस्व रहा. शरद यादव वैसे तो मध्य प्रदेश के थे, लेकिन उनकी कर्मभूमि बिहार रही. लालू प्रसाद यादव पिछले तीन दशकों से बिहार में इस जाति के नेता बनकर उभरे हैं. लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाला में जेल जाने के बाद भी इस जाति के लोगों में उनके प्रति भरोसा बरकरार रहा है. लालू यादव के बाद उनके बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव का भी जलवा इस जाति पर बरकरार है.

क्‍या कहते हैं विश्‍लेषक?
राजनीतिक विश्लेषक संजीव पांडेय कहते हैं, ‘बिहार में यादव जाति की आबादी 14 प्रतिशत हो गई है. सर्वे रिपोर्ट में भूमिहार जाति सर्वणों की आबादी में भी तीसरे नंबर यानी राजपूत और ब्राह्मण के बाद आ गई है. 2.86 प्रतिशत होने के बावजूद इस जाति का बिहार के कुछ इलाकों में काफी विशेष दबदबा रहता है और यह आगे भी बना ही रहेगा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि यादव संख्याबल में भूमिहार से कई गुना ज्यादा हैं. जमीन और रुतबे में भी यादव जाति भूमिहारों से तकरीबन आगे ही हैं, लेकिन भूमिहार जाति के बौद्धिक और मानसिक चेतना में वह पीछे हैं. इस लिहाज से देखें तो राजनीतिक तौर पर भूमिहार जाति की अहमियत हमेशा बरकरार रहेगी.