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( Qutub Minar)
( Qutub Minar)

‘बाहुबली’ रॉकेट, ऊंचाई कुतुबमीनार( Qutub Minar) से भी ज्यादा

चंद्रयान-3 को बाहुबली रॉकेट लेकर जाएगा और चंद्रमा की कक्षा में स्थापित कराएगा, वो वही रॉकेट है, जिसने सफलतापूर्वक ये काम करीब साढ़े तीन साल पहले चंद्रयान-2 के लिए किया था. ये लंबा, चौड़ा और ऊंचा राकेट है. नीचे से खड़े होकर देखने पर इसके लिए सिर को पूरा आसमान की ओर उठाना होगा. ये भारत और भारतीय अंतरिक्ष संस्थान द्वारा खुद तैयार किया गया बहुत स्पेशल रॉकेट है.

अगर इसे बाहुबली कहा जा रहा था तो गलत भी नहीं है. आखिर इसका वजन 642 टन है यानि 130 हाथियों को एक साथ खड़ा कर दें तो उनके भार के बराबर. ऊंचाई कुतुबमीनार ( Qutub Minar) से कहीं ज्यादा. करीब 43.5 मीटर यानि 15 मंजिला मकान के बराबर. इससे इसरो अपने कई अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है.

दरअसल इसका नाम जियोसिंक्रोनस स्टैडिंग सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल मार्क 3 यानी GSLV Mk3 है. इसरो के वैज्ञानिक इसे बाहुबली कह रहे हैं. इसे LVM3 M4 भी कहा जाता है. इसमें ईंधन भरा चुका है. इसका ईंधन भी खास होता है, जो पेट्रोल और डीजल नहीं होता. ये बाहुबली रॉकेट करीब 3.9 टन वजनी चंद्रयान चांद की कक्षा तक ला जाएगा.

रॉकेट की खासियतों को आप इन बिंदुओं के जरिए समझ सकते हैं-

-ये अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्चर है. जिसे पूरी तरह से देश में बनाया गया है.
-ये अब तक का सबसे भारीभरकम लॉन्चर है. इसका वजन 642 टन है.
-ये अब तक का सबसे ऊंचाई वाला लॉन्चर है. इसकी ऊंचाई 15 स्टोरी बिल्डिंग के बराबर है. इसकी ऊंचाई 43.3 मीटर है. यानि कुतुबमीनार से भी करीब 70 मीटर और ज्यादा.
-ये 4 टन वजनी सेटेलाइट को ले आसमान में ले जाने में सक्षम है. लो अर्थ ऑर्बिट में ये 10 टन वजनी सेटेलाइट ले जा सकता है.
-ये चंद्रायन मिशन-2 को भी सफलतापूर्वक मून ऑर्बिट में स्थापित कर चुका है.
-इसमें सबसे शक्तिशाली क्रायोजेनिक इंजन C25 लगा है जिसे CE-20 पावर देगा.
-इसमें S200 रॉकेट बूस्टर लगे हैं जो रॉकेट को इतनी शक्ति देगा कि वो आसमान में छलांग लगा सके. S200 को विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में बनाया गया है.
-GSLV Mk 3 के अलग-अलग मॉडल का अब तक तीन बार सफल प्रक्षेपण हो चुका है.

LVM3 को तीन चरणों के वाहन के तौर पर कांफिगर किया गया है. इसमें दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन मोटर्स (S200), एक लिक्विड कोर चरण (L110) और एक हाई थ्रस्ट क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (C25) हैं.
इस रॉकेट से जब इसरो को भारी संचार उपग्रहों को लांच करता है तो ये उनकी सफलता की गारंटी देता है. ये महज 974 सेकंड में 180×36000 किमी की यात्रा कर लेता है.

इस रॉकेट को इसरो ने पहली बार वर्ष 2014 में टेस्ट करते हुए अंतरिक्ष में भेजा था. इसके साथ इसरो ने अपने अंतरिक्ष अभियानों के नए युग में छलांग लगा दी. बाद में इस रॉकेट में कई तरह के और बदलाव किए गए. इसे करीब 155 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था.