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दुनिया (world)में एक और खतरे की दस्तक!

नई दिल्ली: जोंबी वायरस का डर (world) वास्तविक हो सकता है. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण साइबेरियाई आर्कटिक में परमाफ्रॉस्ट (कई वर्षों तक जमीं रहने वाली सतह) का पिघलना उन प्राचीन विषाणुओं को जिंदा कर सकता है, जो जमी हुई सतह में लाखों वर्षों से निष्क्रिय पड़े हैं. हालांकि, आपको यह एक साइंस फिक्शन फिल्म या कहानी की तरह लग सकता है, लेकिन शोधकर्ताओं ने पहले से ही 48,000 साल से अधिक पुराने परमाफ्रॉस्ट से कई वायरस को पुनर्जीवित किया है, जिससे यह साबित करते हुआ है कि ये वायरस आज भी संक्रामक हो सकते हैं. एक विशेषज्ञ ने कहा, ऐसा नहीं है हमारा इम्युन सिस्टम इन वायरसों को संभालने में सक्षम नहीं हो सकता है, लेकिन प्रतिक्रियाशील होने के अलावा परिस्थिति का सम्मान करना और सक्रिय होना भी जरूरी है. किसी भी डर से लड़ने के लिए उसके बारे में जानकारी होना जरूरी होता है.

परमाफ्रॉस्ट क्या है?
परमाफ्रॉस्ट दो साल से अधिक समय से जमीन के नीचे पड़ी मिट्टी की स्थायी रूप से जमी हुई परत होती है, जो उत्तरी गोलार्ध के लगभग 15 प्रतिशत को कवर करती है. ऑक्सीजन और प्रकाश से रहित ठंडा वातावरण सेलुलर संरचनाओं और डीएनए के संरक्षण के लिए आदर्श स्थिति प्रदान करता है, जिससे यह प्राचीन रोगाणुओं के लिए एक अच्छा भंडारण माध्यम बन जाता है.

जोंबी वायरस क्या हैं?
परमाफ्रॉस्ट में कुछ रोगाणु यानी माइक्रोब्स एक निष्क्रिय अवस्था में जा सकते हैं, विज्ञान की भाषा में जिसे ‘क्रिप्टोबायोसिस’ कहते हैं. ये रोगाणु अनुकूल परिस्थितियों में जीवित हो सकते हैं, परमाफ्रॉस्ट का पिघलना भी शामिल है. शोधकर्ताओं द्वारा ‘जोंबी वायरस’ कहे जाने वाले ये रोगाणु सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक खतरा हैं, क्योंकि आर्कटिक का तापमान पृथ्वी के बाकी हिस्से की तुलना में 4 गुना तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे परमाफ्रॉस्ट पिघल रहा है.

फ्रांसीसी शोधकर्ता जीन-मिशेल क्लेवेरी जोंबी वायरस का अध्ययन कर रहे हैं और उन्होंने परमाफ्रॉस्ट से वायरस को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित किया है, जो केवल अमीबा को टारगेट करते हैं. सीएनएन में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि क्लेवेरी और उनकी टीम ने साइबेरिया में 7 अलग-अलग स्थानों से लिए गए परमाफ्रॉस्ट से जोंबी वायरस के कई स्ट्रेंस को अलग किया है, और दिखाया है कि वे प्रत्येक अमीबा कोशिकाओं को संक्रमित कर सकते हैं.

क्या जोंबी वायरस इंसानों के लिए खतरा बन सकते हैं?
आर्कटिक में मानव आबादी न के बराबर होने के कारण इंसानों के इन प्राचीन विषाणुओं के संपर्क में आने का जोखिम वर्तमान में कम है, लेकिन खतरा बढ़ना तय है क्योंकि तापमान बढ़ने के कारण परमाफ्रॉस्ट तेजी से पिघल रहे हैं. 1918 की महामारी के लिए जिम्मेदार इन्फ्लुएंजा स्ट्रेन को परमाफ्रॉस्ट में संरक्षित पाया गया था. इसी तरह साइबेरिया के 300 साल पुरानी ममी में चेचक का डीएनए मिला था. रूस में 2016 में बड़े पैमाने पर एंथ्रेक्स के प्रकोप को परमाफ्रॉस्ट के पिघलने से जोड़ा गया था.
मनुष्यों की प्रतिरक्षा प्रणाली इस प्रकार के प्राचीन रागाणुओं को संभालने में सक्षम नहीं हो सकती है, और परमाफ्रॉस्ट में एंटीबायोटिक-प्रतिरोध जीन पाए गए हैं. इसलिए, स्वीडन में उमिया विश्वविद्यालय के क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी विभाग में प्रोफेसर एमेरिटा, बिरगिट्टा इवनगार्ड का कहना है कि परमाफ्रॉस्ट पिघलने की वजह से पुर्नजीवित होने वाले जोंबी वायरसों के जोखिम की बेहतर निगरानी होनी चाहिए. इवनगार्ड कहती हैं कि अगर कोई वायरस परमाफ्रॉस्ट में छिपा हुआ है, जिसके साथ इसान हजारों सालों से संपर्क में नहीं हैं, तो हो सकता है कि हमारा इम्युन सिस्टम उसे संभालने में सक्षम न ​हो.