Breaking News

हिंदी रंगमंच दिवस पर गोष्ठी का हुआ आयोजन

गोरखपुर। सांस्कृतिक संस्था दर्पण गोरखपुर द्वारा हरिहर निवास माधोपुर में हिंदी रंगमंच दिवस के अवसर पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का विषय “रंगमंच साधन अथवा साधना युवा कलाकारों के परिपेक्ष्य में किया गया। इस गोष्ठी में शहर के प्रतिष्ठित रंगकर्मियों ने हिस्सा लिया और अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर दर्पण संस्था के रंगमंडल प्रमुख रवीन्द्र रंगधर ने बतौर मुख्य वक्ता बोलते हुए कहा कि गोरखपुर रंगमंच का इतिहास 100 साल से भी अधिक पुराना है। इतने वर्षों में बहुत कुछ बदला है। टेक्नोलॉजी के बदलते प्रभाव ने आज भी युवा पीढ़ी को पूर्णत्या व्यवसायिक सोच का बना दिया है। जिससे बगैर साधना के साध्य को पूर्ण करने का प्रयास उनको पूर्णता प्रदान नहीं करने देता । आगे श्री रंगधर ने कहा कि किसी भी विषय की विशेषज्ञता के लिए साधना अत्यंत आवश्यक है। रंगकर्मी मानवेंद्र त्रिपाठी एवं अमित सिंह पटेल ने रंगमंच दिवस पर विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, कि रंगमंच की साधना का उसे जीविका जीविकोपार्जन हेतु साधन बना लेना कहीं से भी अनुचित नहीं है। इससे साधना जीवन पर्यंत चलती रहती है और समाज और राष्ट्र को भी लाभ होता है। उन्होंने कहा रंगमंच को स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना कहीं से भी उचित नहीं है। आगे जाकर इससे सब की क्षति होती है, स्वयं की समाज की और राष्ट्र की भी।
लेखक और निर्देशक मोहन आनंद आजाद ने कहा कि रंगमंच की सार्थकता तभी है जब समाज को उसका फायदा पहुंचे। उद्देश्य परक और स्तरीय नाटकों का प्रदर्शन युवा पीढ़ी को जोड़ने का कार्य करता है। जिसे समाज भी जुड़ता है संबंधों की प्रगाढ़ता ही साधना हेतु प्रेरित करता है। बस यही रंगमंच की उपलब्धता है।
युवा रंगकर्मी नंदाराम चौधरी ने भी अपने शोधपत्र के माध्यम से आयोजित विषय पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर महेश शुक्ला, आकांक्षा, गौरव खरे, रीना जायसवाल, शरद श्रीवास्तव आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।