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JAMNAGAR, SEP 14 (UNI):- Gujarat Chief Minister Bhupendra Patel visiting the flood affected area of Jamnagar on Tuesday. UNI PHOTO-86U

सिख वास्तुकला की विरासत को संरक्षित और उचित डाक्यूमेंटेशन की आवश्यकता : विशेषज्ञ

 

जालंधर। विशेषज्ञों ने इस इस बात पर बल दिया कि है की सिख वास्तुकला की विरासत को संरक्षित करने और उनकी उचित दस्तावेजीकरण (डाक्यूमेंटिड) करने की आवश्यकता है जिससे की आने वाली पीढ़ियों संबंधित कार्यक्षेत्र में इस मेल के साथ वास्तुकला में नये आयाम स्थापित कर सकें। यह भाव मंगलवार को सिख आर्किटेक्चर पर पहली बार वर्चुअल रुप से आयोजित की जा रही अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठि के दूसरे सत्र के दौरान प्रकट हुये जिसमें भारत के साथ साथ पाकिस्तान के लगभग एक हजार से भी अधिक आर्किटेक्ट सिख वास्तुकला पर मंथन कर रहे हैं। साकार फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस संगोष्ठि को सिख चेंबर आॅफ कामर्स द्वारा समर्थन प्राप्त है। पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाशोत्सव के उपलक्ष्य में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है जिसमे उत्तरी भारत के आठ आर्किटेक्ट काॅलेज, आशरे, एसोचैम-जैम, फायर एंड सिक्योरिटी ऐसोसियेशन आॅफ इंडिया, चंडीगढ और पंजाब चैप्टर के इंडियन इंस्टीच्यूट आॅफ आर्किटेक्ट्स का भरपूर सहयोग है। संगोष्ठि के संयोजक सुरेन्द्र बाहगा ने देश विदेश के जुड़े प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुये संगोष्ठि के उद्देश्यों से अवगत करवाया।

अमृतसर स्थित गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर डॉ. बलविंदर सिंह की ‘कनजरवेशन ऑफ सिख आर्किटेक्चरल हेरिटेज’ नामक प्रेजेंटेशन में उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सिख वास्तुकला की विरासत को संजोये रखने के लिये न केवल हमें कनजरवेशन प्रोफेशनल्स की सेवाएँ लेने की जरूरत है बल्कि आर्किटेक्ट्स को संरक्षण तकनीकों और पारंपरिक सामग्रियों, हेरिटेज बिल्डिंग्स के डाक्यूमेंटेशन और उनकी नियमित इंस्पेक्शन के विषय से भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिये। उन्होंने बताया कि सरकार के स्तर पर सूचीबद्ध इमारतों और हेरिटेज ऐरियाज को कानूनी समर्थन के साथ पेश करने की आवश्यकता है। उत्तरी पश्चिमी भारत की वास्तुकला पर ऐतिहासिक शोध के लिये विख्यात डाॅ सुभाष परिहार ने अपनी प्रेजेंटेशन ‘आर्किटेक्टचर आॅफ फरीदकोट स्टेट’ के माध्यम से निष्कर्ष निकाला है कि पंजाब की वास्तुकला, 19वीं और 20वीं शताब्दी के मध्य तक का अब तक का पढ़ाई नहीं जा सकी है। इसी उद्देश्य से उन्होंनें फरीदकोट स्टेट को अपनी रिसर्च के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया है। उन्होंनें बताया कि इस क्षेत्र की अन्य रियासतों में भी भव्य रुप से निर्माण किया लेकिन अभी तक लोगों तक अपनी पहुंच बनाने के लिये वे उचित दस्तावेज और शोध की प्रतीक्षा कर रहे है।

पाकिस्तान स्थित लाहौर से जाने माने आर्किटेक्ट परवेज वंडल और उनकी पत्नी प्रोफेसर साजिदा वंडल ने महान वास्तुकार भाई राम सिंह के आर्किटेक्चरल कार्यो पर चर्चा की। आर्किटेक्ट परवेज ने बताया कि भारतीय उपमहाद्वीप का उत्तर पश्चिम क्षेत्र पंजाब कई धर्मो और लोगों की भूमि है लेकिन पंजाबी भाषा और संस्कृति में एक साथ जुड़े हुये हैं। वास्तुकला कार्यक्षेत्र की क्षेत्रीय संस्कृति की एक अभिव्यक्ति है। उनके अनुसार भाई राम सिंह इस क्षेत्र के पहले वास्तुकार है उन्होंने पंजाब व सिख वास्तुकला को अलग से परिभाषित करते हुये पश्चिमी और स्थानीय वास्तुकला के समावेश को एक साथ लाये। वंडल दम्पति ने इस बात पर बल दिया कि पंजाब में वास्तुकला की वर्तमान अभिव्यक्तियों को चित्रित करने के लिये उनके काम की पहचान और अध्ययन करने की आवश्यकता है। स्कूल आॅफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के आर्किटेक्चर विभाग की ऐसोसियेट प्रोफेसर डाॅ जतिंदर कौर ने समापन्न सत्र में टिप्पणी करते हुये कहा कि सिखों के पास अन्य धर्मो की तरह वास्तव में महान वास्तुशिल्प विरासत है। इसे अगली पीढ़ियों के लिये संरक्षित और सही तरीके से संजोये रखने की आवश्यकता है। इस अवसर पर अन्य आर्किटेक्ट गुनीत खुराना, रमनीक घडियाल, दीपिका शर्मा और डाॅ हरवीन भंडारी ने भी संबंधित विषयों पर अपने विचार व्यक्त किये।