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महासमुंद जिले में अकाल की स्थिति निर्मित

महासमुंद. अवर्षा की स्थिति में महासमुंद जिले में अकाल की स्थिति निर्मित हो रही है । रोपाई का कार्य पूर्ण हो चुका है, बियासी के लिये खेतों में पानी की आवश्यकता है । ऐसी स्थिति में बांधों को खोलकर किसानों को पानी देने की मांग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भेंटकर बीज अनुसंधान उप समिति के संचालक दाऊलाल चंद्राकर ने की ।

श्री चंद्राकर ने बताया मुख्यमंत्री निवास में महासमुंद जिले के कांग्रेस जनों ने मुख्यमंत्री के साथ सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा किया । जिला अध्यक्ष डॉ. रश्मि चंद्राकर के नेतृत्व में जिले भर से पदाधिकारी एवं कांग्रेस जन पहुंचे । चर्चा के दौरान श्री चंद्राकर ने बताया कि शासन की राजीव गांधी किसान न्याय योजना, छत्तीसगढ़ गोधन न्याय योजना, छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा, मनरेगा वनोपज संग्रह और खरीदी, नरवा गरवा घुरवा बारी जैसे महत्वकांक्षी योजना छ.ग. में कांग्रेस सरकार द्वारा लागू किया गया है । इससे छ.ग. में किसानों की आय बढ़ेगी । वे आर्थिक रुप से सक्षम होंगे । उपरोक्त योजनायें किसान एवं मजदूरों के विकास के लिये मील का पत्थर साबित होगा इसीलिये सभी कहते हैं ? भूपेश है तो भरोसा है ।

श्री चंद्राकर ने बताया कि शासन की इन प्रोत्साहित करने वाली योजनाओं के कारण किसान परंपरागत धान की खेती से सब्जी बाड़ी, फल-फूल एवं उद्यानिकी की ओर अग्रसित हो रहे हैं ।

विसंगतियों पर चर्चा करते हुये दाऊलाल चंद्राकर ने मुख्यमंत्री को बताया कि शासन की उपरोक्त लाभकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में शासकीय मिशनरी ठीक से सहयोग नहीं कर पा रही है । इच्छा शक्ति के अभाव के कारण धरातल पर योजनाओं का परिणाम कम दिख रहा है। किसानों को कृषि यंत्रों की अनुदान नहीं मिल रहा है । राजस्व के मामले नामांतरण, सीमांकन का कार्य राजस्व अधिकारियों के अन्य कार्यों में व्यस्त होने के कारण प्रगति पर नहीं है । पिथौरा, बसना क्षेत्र दुग्ध उत्पादक क्षेत्र है । यहां एक शीत गृह की आवश्यकता है । नरवा योजना के अंतर्गत नये चेकडेम, टारबांध के निर्माण के साथ पुराने अस्थायी टारबांधों को मरम्मत कर पुन: प्रारंभ भी किया जा सकता है ।

बीज अनुसंधान की चर्चा करते हुये श्री चंद्राकर ने बताया कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा परंपरागत देशी धान की सुगंधित किस्मों को विकिरण आधारित म्यूटेशन ब्रीडिंग विधि द्वारा सुधार किया जा रहा है । इसी तारतम्य में 100 से अधिक परंपरागत किस्मों के धान का चयन किया गया है । वर्तमान में 5 देशी किस्मों के धान नगरी दुबराज, जवांफूल, विष्णुभोग, सफरी-17, सोनागाठी में सुधार कर छ.ग. के किसानों को दिया जा चुका है । लाईचा किस्म के धान की विशेषता यह है कि इसके चावल को केंसर के ईलाज के लिये प्रयोग किया जाता है । उपरोक्त सभी किस्मों के धान के उपज में 25 प्रतिशत वृद्घि होती है । पौधा बौना होता है एवं पकने की अवधि 110 दिन की होती है। यह विधि छ.ग. के किसानों के लिये वरदान सिद्घ होगा ।