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Mahant Gyandas Saved A Masjid In Ayodhya.
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महंत ने जमींदोज होने से बचाई मुगलकालीन मस्जिद

अयोध्या विवाद की गूंज पूरे विश्व में है लेकिन इस बात को कम लोग जानते हैं कि अयोध्या में हिंदू-मुस्लिम एकता व सद्भाव की एक बड़ी मिसाल मुगल बादशाह शाह आलम की बनवाई आलमगिरी मस्जिद है।

रामनगरी के अति महत्वपूर्ण स्वर्गद्वार में स्थित यह मस्जिद हनुमानगढ़ी की जमीन पर बनी है। हाल में इस जर्जर मस्जिद को खतरनाक बताकर नगर पालिका ने ध्वस्तीकरण का नोटिस थमाया तो हनुमानगढ़ी के सागरिया पट्टी के महंत ज्ञानदास ने आगे बढ़कर नवनिर्माण का बीड़ा उठाया।

उन्हें कुछ कट्टरवादियों का विरोध भी झेलना पड़ा मगर वह अडिग रहे। इस बात से आम मुसलमान ही नहीं बल्कि मुस्लिम पक्षकार और बाबरी विध्वंस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक लड़ने वाले मुस्लिम भाई भी महंत के कायल हो गए। मंदिर-मस्जिद विवाद के दंश के चलते जो अयोध्या अन्य धार्मिक स्थलों से पर्यटन और तरक्की में सैकड़ों साल पीछे रह गई, उस बाबरी मस्जिद को बाबर ने बनवाया या उसके कारिंदे मीरबाकी ने, अभी तक इतिहास में यह भी साफ नहीं हो पाया है।

यदि आप अयोध्या के स्वर्गद्वार मोहल्ले के अड़गड़ा चौराहे पर जाएंगे तो एक आलीशान मस्जिद बरबस ही आपको अपनी ओर आकर्षित करती नजर आएगी। यह मस्जिद शाहजहां के बाद मुगल बादशाह बने शाह आलम द्वितीय (1728-1806) ने बनवाई थी। मस्जिद का नाम बादशाह ने अपने पिता आलमगिरी के नाम पर रखा। बाबरी विवाद में तमाम धर्मावलंबी सवाल उठाते हैं कि मस्जिद का नाम किसी के नाम से नहीं होता लेकिन यह भी अपने आपमें एक मिसाल है।

ऐसा नहीं है कि इस मस्जिद को लेकर विवाद नहीं हुआ। महंत ज्ञानदास बताते हैं कि 1803 में शाह आलम द्वितीय जिसे अली गौहर के नाम से भी जाना जाता था, की पूरी सल्तनत को ब्रिटिश साम्राज्य ने जीत लिया। हनुमानगढ़ी के महंतों ने अपनी जमीन वापस लेने का मुकदमा किया तब ब्रिटिश कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक इबादत होती रहेगी, जमीन वापस नहीं ले सकते। मगर 25 जुलाई 2016 को हनुमानगढ़ी को मौका मिला था जब नगर पालिका की ओर से बतौर भू-मालिक उनके नाम से नोटिस आया कि जर्जर भवन का तत्काल जीर्णोद्घार कराएं या ध्वस्तीकरण सुनिश्चित करें, ताकि कोई अप्रिय घटना न हो वरना सारा उत्तरदायित्व बतौर मालिक ज्ञानदास का होगा।

ज्ञानदास कहते हैं कि उन्होंने आलमगिरी मस्जिद को बचाने का बीड़ा उठाया। अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सादिक अली बाबू खां को बुलाया और हनुमानगढ़ी के धन से मस्जिद को भव्य रूप देने का आदेश दिया। हालांकि यह बात कुछ कट्टरपंथियों को नहीं पची। मस्जिद के नव निर्माण में भूमिका निभाने वाले बाबू खां कहते हैं कि महंत ज्ञानदास की पहल का आज भी हर मुस्लिम कायल है। अभी तक मस्जिद के नव निर्माण का काम जारी है। करीब 16 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। बगल में शाह इब्राहिम की मजार पर दोनों समुदाय के लोग मन्नतें मांगते हैं। स्वर्गद्वार का यह इलाका हिंदू-मुस्लिम एकता का जीता जागता उदाहरण है।

हाजी महबूब।

शानदार थी महंत की ये पहल
मामले पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब कहते हैं कि मुगल बादशाह शाह आलम की बनवाई आलमगिरी मस्जिद वाकई हनुमानगढ़ी की जमीन पर बनी थी। आसपास की जमीनें भी हनुमानगढ़ी की थी। कोर्ट के फैसले से मस्जिद बची हुई थी लेकिन, जब नगर पालिका का नोटिस आया तो एक बार लगा कि मस्जिद नहीं बचेगी। ऐसे में हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास ने शानदार पहल की, उन्होंने मस्जिद के नवनिर्माण की बात भी कही लेकिन मुसलमानों ने अपने पैसे से यह काम किया। केवल उनकी इजाजत मिलना ही बड़ी बात थी।

जहां साधु बसते हैं वहां शांति रहती है
बाबरी मस्जिद के एक अन्य पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना है कि जहां साधु बसते हैं वहां सदा शांति रहती है। अयोध्या ने यह बार-बार साबित किया है। यहां कारसेवक न आते तो अयोध्या की शांति और तरक्की को कभी नजर नहीं लगती। शाह आलम मस्जिद हिंदू-मुस्लिम एकता की बुनियाद है। यहां के हिंदू-मुसलमानों ने कभी लड़ने की बात नहीं सोची। महंत ज्ञानदास की पहल बहुत सराहनीय थी। यदि बाहर के लोग यहां टांग न अड़ाएं तो अयोध्या कभी अशांत हो ही नहीं सकती।