Breaking News

ममता, केसीआर, उद्धव और स्टालिन कर रहे गठबंधन के चर्चे

नई दिल्ली:तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव ने रविवार को महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे से उनके आवास पर मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ एक मोर्चा बनाने को लेकर सहमति बनी। बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी आने वाले दिनों में केसीआर से मुलाकात करने वाली हैं। इसके अलावा तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन से भी उनकी पिछले दिनों बात हुई थी। एमके स्टालिन ने ट्विटर पर इसकी पुष्टि करते हुए कहा था कि ममता बनर्जी से मेरी बात हुई है और उन्होंने गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की मीटिंग बुलाने की बात कही है।

ममता बनर्जी बंगाल में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से ही भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर मुखर हैं और लगातार विकल्प देने की बात कर रही हैं। हालांकि वह इसमें कांग्रेस को शामिल करने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस अपना रास्ता चुन सकती है और हमारी राह अलग है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कांग्रेस को साथ लिए बिना विपक्षी एका की कोशिशें कितनी सफल होंगी और उससे भाजपा को आखिर कितनी चुनौती मिलेगी। राजनीतिक जानकारों की मानें तो भले ही इससे राष्ट्रीय स्तर पर कुछ हलचल हो और मीडिया में सुर्खियां भी बनें। लेकिन इसका जमीन पर उतना असर कांग्रेस को साथ लिए बिना संभव नहीं है।तेलंगाना में केसीआर बेहद लोकप्रिय हैं और सत्ता में हैं। इसी तरह बंगाल में ममता बनर्जी ने खुद को साबित किया है। तमिलनाडु की सत्ता पर बड़े बहुमत के साथ एमके स्टालिन काबिज हैं, जबकि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के ऐसे पहले सीएम हैं, जो ठाकरे फैमिली के सदस्य हैं। ये चारों नेता अपने राज्यों में दबदबा रखते हैं, लेकिन सवाल यह है कि इननी एकता दूसरे राज्यों में कैसे एक-दूसरे को मदद कर पाएगी। इसके अलावा इन सभी दलों और नेताओं का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड समेत उत्तर भारत के तमाम राज्यों में कोई अस्तित्व नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह है कि इस एकता से राष्ट्रीय स्तर पर कैसे भाजपा को चुनौती मिल पाएगी।

कांग्रेस का जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक में संगठन है, लेकिन मजबूत लीडरशिप के अभाव में उसकी वोट कैच करने की क्षमता फिलहाल कम है। हालांकि किसी अन्य दल के साथ मिलकर वह एक मजबूत विकल्प दे सकती है। ऐसे में कांग्रेस को अलग रखकर टीएमसी, डीएमके, शिवसेना और टीआरएस आखिर क्या हासिल कर पाएंगे। यही वजह है कि क्षेत्रीय दलों की इस एकता के बाद भी भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत विकल्प न होने की स्थिति में बेफिक्र है।