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दिखावटी किसान आंदोलन कर रहे टिकैत?

नई दिल्ली: किसान संगठनों ने कृषि कानूनों के खिलाफ बंद बुलाया था. सड़क से रेल की पटरियों तक किसान संगठनों के नेता और कार्यकर्ताओं ने धरना दिया. किसान आंदोलन का नारा देकर देश को ठप करने की कोशिश की गई. ये सब हुआ देश के अन्नदाता के नाम पर और ये पहली बार नहीं हुआ है. नवंबर 2020 से लगातार यानी 10 महीने से किसान आंदोलन चल रहा है. दिल्ली बॉर्डर को किसान संगठनों ने घेर रखा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिन किसान नेताओं के भरोसे भोले भाले किसान धूप, सर्दी और बारिश में सड़कों पर खड़े होकर आंदोलन करते हैं,
आजादी के 75 साल में पहली बार देश की राजधानी की सीमाएं 10 महीने से बंद हैं. दिल्ली के बॉर्डर किसान आंदोलन के नाम पर बंधक हैं. सैकड़ों फैक्ट्रियां, दुकान और दूसरे कारोबार बंद पड़े हैं. हजारों लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जले लेकिन आंदोलनजीवियों ने बुझे चूल्हों की राख से भी किसानों को उकसाने की चिंगारी ढूंढ़ निकाली. किसानों की रहनुमाई का दावा करने वाले लोगों ने नेशनल हाईवे पर हठ के खूंटे गाड़ कर विरोध के तंबू लगा दिए. रेल की पटरियों को आंदोलन का अखाड़ा बना दिया. फिर 26 जनवरी को किसानों की दुहाई देने वालों ने दिल्ली में उपद्रव किया. लाल किले पर चढ़कर गणतंत्र का अपमान किया. और ये सब हुआ केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर, जिन्हें किसान विरोधी बता कर पूरे देश में आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की गई. अन्नदाताओं को सरकार के खिलाफ एकजुट करने की मुहिम चलाई गई. किसान आंदोलन के नाम पर देश को बदनाम करने की कोशिश तक की गई.

राकेश टिकैत इस आंदोलन का बड़ा चेहरा हैं. राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन यानी बीकेयू के प्रवक्ता हैं. राकेश टिकैत को आप किसान आंदोलन का अघोषित ब्रांड एम्बैसेडर कह सकते हैं, वो कृषि कानून वापस लेने के लिए सरकार को बेधड़क चेतावनी देते हैं. भारतीय किसान यूनियन किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठनों में प्रमुख है. टिकैत परिवार इस संगठन का सर्वेसर्वा है. राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं. नरेश टिकैत भी सरकार को कृषि कानून खत्म करने का अल्टीमेटम देते रहे हैं. नरेश टिकैत की अगुवाई में भारतीय किसान यूनियन ने पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में कृषि कानूनों के खिलाफ बड़ी महापंचायत की.

राकेश टिकैत और नरेश टिकैत जैसे नेताओं का दावा है कि नए कृषि कानूनों से किसान बर्बाद हो जाएंगे और वो देश के अन्नदाताओं को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन क्या वाकई ऐसा है. सवाल उठता है कि किसानों के हितों का दम भरने वाले और कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले टिकैत बंधु अपने विचारों को लेकर कितने ईमानदार हैं, कितने प्रतिबद्ध हैं. क्या जो उनकी जुबान पर है वो उनके दिल में भी है.

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत अपनी जमीन एक ऐसे व्यक्ति को लीज पर देने के लिए तैयार हैं, जिसे वो उद्योगपति समझ रहे हैं. बस उन्हें मनचाही कीमत चाहिए. टिकैत बंधु किसान आंदोलन के मंच से कहते हैं कि नए कृषि कानूनों के तहत बड़े कारोबारी और उद्योगपति किसानों की जमीन हड़प लेंगे. हालांकि नए कृषि कानूनों में एक भी लाइन ऐसी नहीं है, जो किसानों को उनकी जमीन से बेदखल करती हो फिर भी टिकैत जैसे किसान नेता भोले भाले किसानों को डराने की मुहिम में जुटे हैं. लेकिन खुद नरेश टिकैत अपनी जमीन एक उद्योगपति को देने के लिए फटाफट राजी हो गए.
असल में इस खुलासे से साफ हो गया है कि डर के इस खेल में नरेश टिकैत जैसे किसान संगठनों के नेता रस्सी को सांप बताकर किसानों को डराते हैं. वो खौफ की खेती कर नेतागीरी की फसल काटते हैं. टिकैत भी इस तथ्य को जानते और समझते हैं कि नए कृषि कानूनों से देश के करोड़ों अन्नदाताओं का फायदा होगा. किसानों की जमीन भी सुरक्षित रहेगी और और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी. लेकिन वो किसानों को उल्टा पाठ पढ़ाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं. शायद उन्हें लगता है कि किसान डरेगा तभी उनकी नेतागीरी चलेगी. इसलिए वो किसानों को जमीन खोने का भय दिखाते हैं, किसानों को गुमराह कर सरकार के खिलाफ भड़काते हैं.