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टूटती रूढ़िवादी मान्यताएं – एक पिता की पहल

मासिक धर्म के बारे में चुप्पी साधे रखना और इस पर खुली बातचीत को अभद्रता की तरह देखना पीढ़ियों से परंपरा की तरह चला आ रहा है। आज भी इस बारे में जानकारी और शिक्षा का अभाव इस कदर है कि मासिक धर्म को शर्म का कारण माना जाता है। नतीजतन, मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन में समाज की भागीदारी, विशेष रूप से पुरुषों की, न के बराबर रही है। ऐसे में महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन या अन्य स्वच्छता उत्पादों की खरीद करने की तो बात ही छोड़ दें, पुरुष तो मासिक धर्म के बारे में बात तक नहीं करते हैं । महिलाओं और बालिकाओं के स्वास्थ्य के लिए अति महत्वपूर्ण होने के बावजूद इसे अनदेखा किया जाता है। समाज में ये धारणा इतनी प्रबल है कि अगर टेलीविजन पर सैनिटरी नैपकिन का विज्ञापन आता है, तो या तो चैनल जल्दी से बदल दिया जाता है या फिर परिवार एक-दूसरे से नजरें चुराते हुए जल्दी से तितर-बितर हो जाता है।

पुरुष कर रहे मासिक धर्म वर्जनाओं को तोड़ने की कोशिश – सौभाग्य से आज ऐसे कुछ पुरुष उदाहरण के तौर पर हमारे सामने हैं जो मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाओं को तोड़ने और स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्रयास कर रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण बूंदी जिले के एक छोटे से गाँव के एक पिता का हैं, जिन्होंने न केवल मासिक धर्म के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाने की आवश्यकता को महसूस किया, बल्कि अपनी बेटी को भी मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में शिक्षित किया।

अशोक ने दी बेटी की मासिक धर्म की जानकारी – अशोक राजस्थान के बूंदी के लक्ष्मीपुरा गांव में रहते हैं। पेशे से किसान अशोक की पत्नी कुछ साल पहले इस दुनिया को छोड़ चली गई और बेटी प्रीति के पालन-पोषण की जिम्मेदारी पूरी तरह अशोक पर आ गई। प्रीति उस वक्त छठी कक्षा में पढ़ रही थी। जब बेटी ने किशोरावस्था में प्रवेश किया, तो अशोक के सामने बड़ी समस्या थी अपनी युवा हो रही बेटी को सयानेपन और मासिक धर्म की प्रक्रिया के बारे में समझाना। मासिक धर्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होने से अशोक ने खुद को इसमें असहाय महसूस किया। वह मासिक धर्म की स्वच्छता से जुड़ी सामान्य चीज़ों जैसे कपड़े के पैड या सैनिटरी नैपकिन के उपयोग के बारे में नहीं जानता था। उसकी बुजुर्ग मां भी कविता के साथ इस बारे में बात करने की स्थिति में नहीं थी।

FAYA ने की अशोक से बदलाव पर चर्चाऐसे में संयोग से अशोक को मदद मिल ही गई। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया बूंदी में शिव शिक्षा समिति के साथ, FAYA (नारीवादी किशोर एवं युवा अभियान) कार्यक्रम चला रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य किशोरों के बीच उनके यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और सेवाओं की उपलब्धता के बारे जानकारी देना है। FAYA की एक फील्ड कार्यकर्ता की ग्रामीणों के साथ एक बैठक के दौरान अशोक से मुलाकात हुई, जहां किशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक बदलाव पर लोगों के साथ चर्चा की जा रही थी। किसान अशोक पर उस बातचीत का गहरा असर पड़ा और उसने इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए ।

स्कूल में दी जानी चाहिए इसकी जानकारी – अशोक बताते हैं कि ‘जब प्रीति को मासिक धर्म शुरू हुआ, तो उसके पेट में असहनीय दर्द होता था और उल्टी भी होती थी। मैं तब अपने आप को बड़ा असहाय महसूस करता था क्योंकि ना तो मैं उसके लिए कुछ कर पा रहा था और ना मुझे समझ में आ रहा था कि मेरी बेटी के साथ ऐसा क्यों हो रहा है। अगर स्कूलों में मासिक धर्म के बारे में जानकारी दी गई होती तो मेरी बेटी जैसी किशोरियों को इतनी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। FAYA कार्यक्रम के प्रतिनिधियों को सुनने के बाद मुझे पता चला कि मासिक धर्म पूरी तरह से सामान्य प्रक्रिया है और इसमें शर्म करने जैसी कोई बात नहीं है।’

इसमें शर्म जैसी कोई बात नहीं, ये एक सामान्य प्रक्रिया है।’ – मासिक धर्म के बारे में जानकारी मिलने के बाद, प्रीति भी आभार जताते हुए कहती है कि ‘जब मैं कक्षा नौ में थी तो मासिक धर्म के दौरान पेट में होने वाली ऐंठन के कारण मैं कई बार स्कूल नहीं जा पाती थी। हालांकि मेरी कुछ सहेलियां थीं लेकिन फिर भी, चूंकि मेरी मां नहीं थी ऐसे में मुझे अपने पिता से अपने मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं के बारे में बात करने में मुश्किल हो रही थी। एक दिन उनका खुद का नजरिया बदला और उन्होंने मासिक धर्म के प्रति मेरी समझ को पूरी तरह से बदल दिया। आज जब मुझे पीरियड्स होते हैं, तो मेरे पिता ही मेरे लिए सैनिटरी नैपकिन लातें हैं और मुझे भरोसा दिलाते हैं कि जो कुछ भी हो रहा है इसमें शर्म करने जैसी कोई बात नहीं है, ये एक सामान्य प्रक्रिया है।’

पिता-बेटी में बना दोस्ती का रिश्ता –  प्रीति और उसके पिता के बीच एक दोस्ती का रिश्ता कायम हो गया है और अब प्रीति अपने मुद्दों पर पिता के साथ खुलकर चर्चा कर पाने में सक्षम है। अशोक भी अपनी बेटी की समस्याओं के प्रति संवेदनशील है, खास तौर से उस वक्त जब वो मासिक धर्म की अवधि से गुजर रही होती है।

समाज में जागरूकता फैला रहे अशोक – पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की सीनियर स्टेट प्रोग्राम मैनेजर दिव्या संथानम कहती हैं कि ‘अशोक मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता रखने जैसे विषयों पर समाज में जागरूकता पैदा करने में जुटे हुए हैं । अशोक एक ऐसे नायक और बदलाव के समर्थक के रूप में उभरे हैं जिन्होंने न केवल अपनी बेटी की जिंदगी में बल्कि पूरे समाज में जेंडर आधारित मान्यताओं को चुनौती दी है। बदलाव की इस मुहिम में नायक बनने के लिए अशोक को हाल ही में उनके गांव के सरपंच ने सम्मानित भी किया है। अशोक अब व्यापक स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने के लिए पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की FAYA पहल से भी जुड़ चुके हैं और किशोर किशोरियों को सत्रों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह कहानी माता-पिता, शिक्षकों, पीआरआई सदस्यों जैसे प्रमुख हितधारकों को अपने साथ जोड़ने के महत्व को दर्शाती है ताकि किशोरों को उनके स्वास्थ्य अधिकार हासिल करने के लिए एक सक्षम वातावरण का निर्माण किया जा सके और साथ ही इससे हमें भी प्रोत्साहन मिलता है कि जो काम हम कर रहे हैं, उसे जारी रखें।’