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छावनी

देश की गंगा-जमुनी तहजीब के विकास में छावनी !!

नई दिल्ली। दिल्ली छावनी स्थित रक्षा संपदा भवन में रक्षा भूमि सर्वेक्षण पुरस्कार समारोह के दौरान केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा देश की गंगा-जमुनी तहजीब के विकास में छावनी क्षेत्रों का अहम योगदान है। उन्होंने कहा कि उर्दू का भी सैन्य क्षेत्रों से काफी पुराना नाता रहा है। आगे चलकर हिंदी व उर्दू की मिलीजुली भाषा को हिंदुस्तानी भाषा कहा गया। गंगा-जमुनी तहजीब की प्रतिनिधि इस भाषा के गांधी जी काफी समर्थक थे और हमारी साझी विरासत को आगे बढ़ाने में इस भाषा ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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ब्रिटिश शासन से त्रस्त भारतीय जनता के मन में उसके खिलाफ जब चेतना जगी तो पहले पहल उसका उदगार बैरकपुर जैसे छावनी क्षेत्र में ही हुआ था। यहां के बिंदी तिवारी को अंग्रेजों की अवमानना के चलते फंसी भी दी गई थी। आगे चलकर यही घटना मंगल पांडे के साथ दोहराई गई और यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आधार बनी। ऐसे में छावनी क्षेत्र हमारे देश के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक विकास के साथ-साथ जन चेतना के केंद्र भी रहे है।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आम जनमानस के बीच छावनी क्षेत्र का जब जिक्र होता है तब हमारे दिमाग में एक ऐसे क्षेत्र की छवि उभरती है, जहां फौजियों का डेरा हाेता है। यह धारणा रहती है कि वे आम समाज से अलग व अपने में मस्ती में रहने वाले लोग होते है, पर वास्तविकता इससे काफी अलग है। सैनिकों के छावनी क्षेत्र जहां-जहां बसते गए वहां-वहां एक नया समाज, नई संस्कृति व आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनता चला गया। कार्यक्रम में रक्षा सचिव डा. अजय कुमार, वित्तीय सलाहकार संजीव मित्तल, रक्षा संपदा महानिदेशक अजय कुमार शर्मा मौजूद रहे।

छावनी क्षेत्र को सहेजना महत्वपूर्ण

राजनाथ सिंह ने 18 लाख एकड़ में फैली रक्षा भूमि के सर्वे पर कहा कि रक्षा भूमि का स्पष्ट सीमांकन इन क्षेत्रों की सुरक्षा व विकास की दिशा में मील का पत्थर साबित हाेगा। मुझे खुशी हुई है कि पहली बार इस तरह के सर्वे में ड्रोन, सैटेलाइट इमेजनरी व 3 डी माडलिंग तकनीक का उपयोग किया गया है। इन तकनीकों के इस्तेमाल ने सर्वे के परिणामों को और सटीक व विश्वसनीय बनाता है। किसी भी इलाके, प्रदेश व राष्ट्र के लिए भू-अभिलेख की बड़ी अहमियत होती है। गांव की छोटी छोटी सड़कों से लेकर स्कूल, कालेज, अस्पताल, हाई-वे और एयरफील्ड तक के निर्माण में सर्वे की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस कार्य में उन्होंने अपने जीवन में 35 वर्ष लगाए थे।

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बजट में रक्षा भूमि की चारदीवारी

पाश्चात्य सभ्यता के विश्वभर में फैलने के पीछे अनेक कारणों में एक मुख्य कारण उनका सर्वे का ज्ञान भी था। उन्होंने कहा कि बजट में रक्षा भूमि की चारदीवारी के लिए 173 करोड़ रुपये का आवंटन का अर्थ मात्र वित्तीय अनुदान नहीं है बल्कि छावनी क्षेत्र को सहेजना है। एक किसान का बेटा होने के नाते मैंने जमीन की समस्याओं को जमीनी स्तर पर देखा है। तहसीलों व राजस्व विभागों के कार्यालयों में भू-लेख, भू-नक्श, जमाबंदी, खसरा खतौनी की नकल की फाइलें दिन-प्रतिदिन इतनी बढ़ती चली आ रही है कि उनका एक जगह पर रख पाना अब बहुत मुश्किल हो गया है। इसे जमीन के मालिक के साथ विभाग के अधिकारी तक परेशान हो जाते है।

इसके कारण हमारे देश के न्यायालयों में दीवानी मुकादमें भी लगातार बढ़ते जा रहे है। रक्षा भूमि की समस्या भी इनसे कुछ अलग नहीं है। कई रिपोर्ट बताती हैं कि जितने दीवानी मुकादमें लंबित है, उसमें अधिकांश भूमि विवाद पर आधारित है। ऐसे मुकादमों के निपटारें में कम से कम 20 व उससे अधिक वर्ष का समय लग जाता है। ऐसे में रक्षा भूमि के स्पष्ट सीमांकन में तकनीक का प्रयोग इस तरह की समस्या से निजात दिलाएगा।