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चीन को श्रीलंका ने दिया बड़ा झटका

कोलंबो:कर्ज जाल में फंसाकर शोषण करने वाले चीन को श्रीलंका ने बड़ा झटका दिया है। श्रीलंका की ओर से खराब क्वालिटी के ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर (जैविक खाद) की खेप को खारिज किए जाने के बाद दोनों देशों में दुर्लभ कूटनीतिक जंग छिड़ गई है। श्रीलंका को दुनिया का पहला पूर्ण जैविक खेती वाला देश बनाने की कोशिश के तहत कोलंबो ने चीनी कंपनी किंगदाओ सीविन बायो-टेक ग्रुप से समझौता किया था। लेकिन 20 हजार टन की पहली खेप को श्रीलंका की ओर से खारिज किए जाने की वजह से दोनों देशों के बीच रणनीतिक तनाव बढ़ गया है।

श्रीलंका सरकार की एजेंसी नेशनल प्लांट क्वॉरन्टीन सर्विस (एनपीक्यू) ने माल लेने से इनकार कर दिया है। इसने कहा है कि कार्गो से लिए गए सैंपल में रोगाणु मिले हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका कृषि विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉ. अजंता डी सिल्वा ने कहा कि कार्गो से लिए गए नमूनों की जांच से पता चलता है कि उर्वरक जीवाणुरहित नहीं हैं। उन्होंने कहा, ”हमें ऐसे बैक्टीरिया मिले हैं, जो गाजर और आलू जैसी फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।”

चूंकि माल को श्रीलंका में अनलोड करने की इजाजत नहीं मिली, सरकारी उर्वरक कंपनी को कोर्ट से आदेश मिला कि सरकारी पीपल्स बैंक को 90 लाख डॉलर का पेमेंट रोक दिया जाए। यह स्पष्ट नहीं है कि समझौते के मुताबिक, खरीदार पेमेंट रोक सकता है या नहीं। इस बीच कोलंबो में स्थित चाइनीज दूतावास ने पेमेंट रोकने की वजह से बैंक को ब्लैकलिस्ट करके जवाब दिया है। अक्टूबर के अंत में चाइनीज दूतावास के ट्विटर हैंडल ने श्रीलंका के सरकारी बैंक को ब्लैक लिस्ट करने की घोषणा करते हुए घटनाक्रम के टाइमलाइन को ट्वीट किया था।
हालांकि, दूतावास ने उर्वरक की क्वालिटी पर कोई सफाई नहीं दी है। चीनी विदेस मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि कार्गो थर्ड पार्टी टेस्टिंग से गुजर चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन हमेशा निर्यात की क्वालिटी को बहुत अधिक तवज्जो देता है। किंगदाओ सीविन ने श्रीलंकाई मीडिया पर “चीनी उद्यमों और चीनी सरकार की छवि को बदनाम करने” के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। इसने विवाद के बाद हुई प्रतिष्ठा के नुकसान के लिए एनपीक्यू से $ 8 मिलियन के मुआवजे की भी मांग की।

कंपनी ने कहा कहा है कि श्रीलंका के एनपीक्यू की ओर से अपनाया गया जांच का तरीका अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के मुताबिक नहीं है। विशेषज्ञ इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि चीन के कर्ज जाल में फंसे होने की वजह से श्रीलंका कितने समय तक बीजिंग के सामने डटा रहेगा। श्रीलंकाई अधिकरियों के हवाले से बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा नियमों का पालन ना करने वाले उर्वरक किसी कीमत पर देश में नहीं आने दिया जाएगा।