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अहा कितना सुन्दर प्रभात

विहग सुनाते गीत नया ,
कुछ तो नवीन है आज ,
सरयू के जल से करतीं ,
सूरज की किरणेँ बात ,
अहा ! कितना सुन्दर प्रभात I

पौधों में खिलतीं नव कलियां,
कर जीवन का संचार ,
चीर आवरण , अंगडाई ले ,
सदियों बाद जगी है रात ,
अहा ! कितना सुन्दर प्रभात I

संसृति ने खोले हैं बंधन ,
मानवता के जगते भाग ,
सत्य नाम है , राम का ,
करूनानिधान साक्षात ,
अहा ! कितना सुन्दर प्रभात I

रचनाकार =
“रत्नेश” गुरूग्राम (हरियाणा)