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चीतों की मौत (death ) को पर क्यों लग रहा है इल्जाम

नई दिल्ली. मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में शुक्रवार की सुबह पालपुर ईस्ट फ़ॉरेस्ट रेंज के मसावनी बीट में एक गश्ती दल को एक और चीता मृत(death )  मिला. मरने वाला चीते का नाम सूरज था. जिसके बाद प्रोजेक्ट चीता को बड़ा झटका लगा है. इसके साथ मरने वाले चीतों की संख्या 8 हो चुकी है, जिसमें 3 शावक भी शामिल हैं. चार महीनों से भी कम वक्त में यह मौतें हुई हैं. पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 20 वयस्क चीतों में से पांच की मौत की वजह प्राकृतिक थी. मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि “नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से भारत लाए गए 20 वयस्क चीतों में से, पांच वयस्क चीतों की मृत्यु की सूचना मिली है, प्रारंभिक विश्लेषण के अनुसार, सभी मौतें प्राकृतिक कारणों से हुईं हैं.”

बयान में कहा गया है कि केंद्र की चीता परियोजना संचालन समिति परियोजना की प्रगति पर पैनी नज़र बनाए हुए है और उनके कार्य संतोषजनक हैं. सरकार ने क्षेत्रीय अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की एक समर्पित टीम तैनात की है.

क्या है चीता परियोजनाछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्यप्रदेश में कूनो नेशनल पार्क में विंडहोएक, नामीबिया से लाए गए 8 चीते (तीन नर, पांच मादा) छोड़े थे. आज़ादी के बाद पहली बार जंगली बिल्लियों की प्रजाति के जानवर का अंतरमहाद्वीपीय स्थानांन्तरण किया गया है.

भारत में इन प्रजातियों को फिर से स्थापित करने के लिए इसके बाद, 12 और चीतों को दक्षिणी अफ्रीका से कूनो राष्ट्रीय उद्यान में सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया गया, जिससे उनकी संख्या बढ़कर बीस हो गई. कुछ दिनों तक क्वारेन्टाइन मे रखने के बाद चीतों को बड़े अनुकूलन बाड़ों में ले जाया गया. वर्तमान में, 11 चीते स्वतंत्र परिस्थितियों में हैं, जबकि भारत में पैदा हुए एक शावक सहित पांच, एक क्वारेन्टाइन बाड़े में हैं

11 अन्य चीतों के साथ अफ्रीका से पहले भारत आने के लिए तैयार एक चीता
इस परियोजना का मकसद कानूनी रूप से संरक्षित क्षेत्रों में 100,000 वर्ग किमी तक का आवास और प्रजातियों के लिए अतिरिक्त 600,000 वर्ग किमी रहने योग्य माहौल मुहैया कराना है ताकि वैश्विक स्तर पर चीता संरक्षण की कोशिश को फायदा पहुंच सके. एक सरकारी बयान में कहा गया है कि चीते मांसाहारी पदानुक्रम के भीतर एक अहम पारिस्थितिक भूमिका निभाते हैं और उनकी मौजूदगी से भारत में पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem ) की सेहत में सुधार होने की उम्मीद है.

क्या सैटेलाइट कॉलर चीता की मौत के लिए जिम्मेदार हैं ?

मध्य प्रदेश वन्यजीव अधिकारियों का दावा है कि एक निगरानी दल ने ‘सूरज’ को पालपुर पूर्वी क्षेत्र के मसावनी बीट में सुबह 6.30 बजे के करीब सुस्त हालत में देखा था. द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, निगरानी टीम ने चीता की गर्दन के चारों ओर एक मक्खी देखी और जब उन्होंने करीब जाने की कोशिश की, तो वह उड़ गई.

प्रकाशन ने एक वन्यजीव अधिकारी के हवाले से बताया कि, निगरानी दल ने जब चीता को बुरे हाल में देखा तो उसने तुरंत वायरलैस के जरिए पालपुर कंट्रोल रूम को सूचित किया. एक वन्यजीव चिकित्सा दल और क्षेत्रीय अधिकारी सुबह 9 बजे मौके पर पहुंचे. चीता के स्थान का पता लगने पर जब वहां पहुंचे तो चीता मृत था.

दोनों मौतों में गर्दन के पास घाव पाया गया था, कॉलर के नीचे त्वचा पर बने घाव की वजह से मक्खियां उस पर भिनभिना रहीं थी जिसकी वजह से जीवन के लिए खतरनाक सेप्टीसीमिया हो गया.

प्रिटोरिया विश्वविद्यालय, दक्षिण अफ्रीका के एसोसिएट प्रोफेसर एड्रियन टॉर्डिफ़ ने कथित तौर पर कहा कि उमस और नम मौसम की वजह से बैक्टिरियल इन्फेक्शन भी हो सकता है. उमस भरे और नम मौसम की वजह से कॉलर के नीचे त्वचा लगातार गीली बनी रहती है. इस वजह से मक्खियां उस पर बैठती हैं और वहीं पर अंडे दे देती हैं और मक्खियों का लार्वा या मैगोट्स टिश्यू को खाने लगते है और घाव कर देते हैं जो संक्रमण का कारण होता है.

दक्षिण अफ़्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वैन डेर मेरवे का भी कहना है कि अत्यधिक गीली स्थितियों की वजह से रेडियो कॉलर में संक्रमण पैदा हुआ और संभवतः यही चीतों की मौत का कारण था

मध्य प्रदेश में वन्यजीव अधिकारी कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 10 मुक्त चीतों से रेडियो कॉलर हटाने की कवायद कर रहे हैं.रिपोर्ट में कहा गया है कि वन्यजीव अधिकारियों ने यह पाया था कि नामीबिया से लाए गए चीता भाइ- गौरव और शौर्य में भी इसी तरह की समस्या दिखाई दी है.

सरकार ने चीता की मौत में रेडियो कॉलर की भूमिका से इंकार किया

पर्यावरण मंत्रालय ने रेडियो कॉलर जैसी वजहों को चीतों की मौत के लिए जिम्मेदार बताने वाली रिपोर्टों को साफ तौर पर खारिज किया है और इसे ” अटकले और अफवाह ” बताया जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है . मंत्रालय ने कहा कि चीता परियोजना अभी भी प्रगति पर है और एक वर्ष के भीतर इसकी सफलता या असफलता के बारे में फैसला करना जल्दबाजी होगी. “

चीता परियोजना संचालन समिति के प्रमुख राजेश गोपाल ने कहा कि चीतों की मौत का कारण रेडियो कॉलर के उपयोग से सेप्टिसीमिया (बैक्टीरिया द्वारा रक्त विषाक्तता) हो सकता है.“यह बेहद असामान्य है, मैंने भी इसे पहली ही बार देखा है. यह चिंता का कारण है और हमने (एमपी वन कर्मचारियों को) सभी चीतों की जांच करने का निर्देश दिया है।” उन्होंने कहा कि यह संभव है कि उमस भरे मौसम में रेडियो कॉलर के उपयोग से संक्रमण हो सकता है.