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भारत में अपना राजदूत क्यों बदल रहा चीन, पुराने राजनयिक क्या बोले ?

ये ऐसे समय हो रहा है जब दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य गतिरोध बरकरार है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि आखिर तीसरी बार राष्ट्रपति बनते ही भारत के राजदूत को क्यों बदल रहे हैं शी जिनपिंग? पुराने राजनायिक ने जाते-जाते क्या बोला? चीन में शी जिनपिंग को तीसरी बार राष्ट्रपति चुन लिया गया है। इस बीच, भारत-चीन के रिश्तों को लेकर एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है।

सवाल उठ रहा है कि क्या दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव खत्म होंगे या पहले के मुकाबले अधिक बढ़ जाएंगे? इन सवालों के बीच चीन ने भारत में नए राजदूत की नियुक्ति का फैसला लिया है। ये ऐसे समय हो रहा है जब दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य गतिरोध बरकरार है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि आखिर तीसरी बार राष्ट्रपति बनते ही भारत के राजदूत को क्यों बदल रहे हैं शी जिनपिंग?

पुराने राजनायिक ने जाते-जाते क्या बोला? इसके कूटनीतिक मायने क्या हैं?पहले जानिए भारत में राजदूत क्यों बदल रहा चीन? इसे समझने के लिए हमने विदेश मामलों के जानकार डॉ. आदित्य पटेल से बात की। उन्होंने कहा, ‘चीन के किसी भी राजदूत का कार्यकाल तीन साल का होता है। मौजूदा राजदूत सुन वेइदोंग का तीन साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। यही कारण है कि अब उन्हें हटाकर किसी नए राजदूत की यहां नियुक्ति की जाएगी। हालांकि, ये प्रक्रिया ऐसे समय पर हो रही है, जब सीमा पर दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति है और चीन में शी जिनपिंग को तीसरी बार राष्ट्रपति चुना गया है।’

जाते-जाते क्या बोले पुराने राजदूत?

भारत में चीन के राजदूत सुन वेइदोंग का तीन साल का कार्यकाल पूरा होने पर वर्चुअल विदाई समारोह हुआ। इसमें भारत और चीन दोनों ही देशों के अफसर शामिल हुए। वेइदोंग ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने लिखा, ‘चीन में भारत के राजदूत के तौर पर काम करना मेरी जिंदगी का कभी न भुलाया जाने वाला समय रहा है। पिछले तीन साल की यादों को मैंने संजो रखा है। आपके समर्थन और मिलीजुली कोशिश से दोनों देशों के बीच की दोस्ती सदाबहार बनी रहेगी।’

राजदूत बदलने के क्या हैं मायने?

विदेश मामलों के जानकार डॉ. आदित्य कहते हैं, चीनी राजदूत सुन वेइदोंग ने जुलाई 2019 में अपना कामकाज भारत में संभाला था। इसके 11 महीने बाद गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए थे, जबकि चीन के 45 से ज्यादा जवानों की मौत हुई थी। हालांकि, चीन ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया।

चीन ने आधिकारिक तौर पर केवल पांच जवानों के मारे जाने की बात कबूली। इसके बाद दोनों देशों के बीच काफी तनाव बढ़ गया। दोनों देशों ने लाखों की संख्या में सैन्य जवानों की तैनाती एलएसी पर कर दी। इसके बाद दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत शुरू हुई। दोनों देशों ने पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 पर दोनों ओर से जवानों को हटाने पर सहमति जता दी।

इस बातचीत में सुन वेइदोंग ने अहम भूमिका निभाई। वेइदोंग का एक बयान भी आया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूदा हालात का हल बातचीत और विचार-विमर्श के जरिए निकालना चाहता है,

लेकिन उम्मीद है कि भारत भी चीन के ‘प्रमुख हितों’ पर ध्यान देगा। वेइदोंग का इशारा ताइवान और तिब्बत की तरफ था। डॉ. पटेल के अनुसार, अब वेइदोंग के बदले नए राजदूत आएंगे। ये सबकुछ ऐसे वक्त हो रहा है, जब शी जिनपिंग तीसरी बार राष्ट्रपति बन चुके हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि नए राजदूत के क्या तेवर होते हैं? क्या नए राजदूत दोनों देशों के बीच के रिश्तों में सुधार की कोशिश करेगा या फिर तनाव और बढ़ेगा?

क्या दोनों देशों के रिश्ते ठीक होंगे ?

विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी अभय श्रीवास्तव कहते हैं, ‘चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में जिस तरह से गलवान संघर्ष में शामिल रहे सैन्य अधिकारियों को बुलाया गया, उसे देखकर ऐसा नहीं लगता है कि दोनों देशों के रिश्तों में कुछ ठीक होने वाला है। शी जिनपिंग के बयानों से साफ लगता है कि वह चीन को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ताकत मानने लगे हैं। अब उनकी नजर अमेरिका को पछाड़ कर दुनिया का नंबर एक देश बनने पर है। शी ने तीसरा कार्यकाल हासिल कर लिया है। मतलब अब वह 2032 तक सत्ता में बने रहेंगे।’ अभय आगे कहते हैं, ‘पहले से ज्यादा ताकतवर हो चुके जिनपिंग के बयानों को सुनकर लगता है कि चीन का रवैया पड़ोसी देशों के खिलाफ ज्यादा सख्त होने वाला है। फिर वह भारत और चीन की बात हो या फिर ताइवान, तिब्बत या कोई दूसरा देश।’