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(15 दिनों में ) 
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15 दिनों में 2 बार डोली दिल्ली-एनसीआर की धरती(15 दिनों में ) 

दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एनसीआर में आज भूकंप के जोरदार झटके महसूस किए गए. 15 दिनों के (15 दिनों में )  अंदर एनसीआर में भूकंप की ये दूसरी घटना है. इससे पहले रविवार को हरियाणा के फरीदाबाद में 3.1 क्षमता का भूकंप आया था. वहीं, नेपाल में 3 अक्टूबर को नेपाल में 6.2 तीव्रता वाले भूकंप के झटकों के आज यानी 15 अक्टूबर को भूकंप के झटके महसूस किए गए थे.
दिल्ली, भूकंप के मामले में काफी यूनिक है. हर, 3-4 महीनों में हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप आने के बाद से यहाँ की धरती भी डोलती है. आज दिल्ली में आये भूकंप का केंद्र फरीदाबाद में दिल्ली से 9 किमी पूर्व और 30 किमी दक्षिण पूर्व में था.
लेकिन वजह क्या है- इन क्षत्रों में इतना भूकंप आने के? एनसीआर इतना भूकंप प्रवण क्षेत्र कैसे बनता है. क्या है वजह? भारत कितने सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है. सभी सवालों के जवाब दे रहे हैं- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के निदेशक ओपी मिश्रा.

भूकंप आने की वजह?
हमारी पृथ्वी 7 प्रमुख प्लेटो से मिलकर बना है, इनके अलावा कई छोटी प्लेटें भी होती हैं. ये प्लेटें पृथ्वी के सतह के नीचे लगातार चलती रहती हैं. इनमें खिंचाव या फिर टकराव से पृथ्वी पर कंपन आता है, जिसे भूकंप कहते हैं. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, भूकंप बिना किसी चेतावनी के आता है.

भूकंप मूल रूप से टेक्टोनिक होते हैं, जिसका अर्थ है कि चलती हुई प्लेटें उनकी घटना और झटकों के लिए जिम्मेदार हैं. भूकंप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में लोगों की जान जा सकती है और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान हो सकता है. यह भारत के लिए विशेष रूप से सच है, इसकी बढ़ती जनसंख्या और बड़े पैमाने पर विकासशील देश में काफी जोखिम में लाता है.

भारत की भूकंपीय गतिविधि कैसी दिखती है?
एनडीएमए का कहना है कि भारत का 59 प्रतिशत से अधिक भूमि क्षेत्र “मध्यम से गंभीर भूकंपीय खतरे के खतरे में है.” पूरे हिमालय क्षेत्र को 8.0 से अधिक तीव्रता के भूकंपों के लिए संवेदनशील माना जाता है और, लगभग 50 वर्षों की अवधि में, चार बड़े भूकंप के झटके आए हैं: 1897 शिलांग (तीव्रता 8.7); 1905 कांगड़ा (तीव्रता 8.0); 1934 बिहार-नेपाल (तीव्रता 8.3); और 1950 असम-तिब्बत (तीव्रता 8.6).
भारत के कुल भूभाग को भूकंप भूकंपीय क्षेत्रों में कैसे विभाजित किया गया है:-

ज़ोन V: 11% (सबसे सक्रिय)जोन IV: 18%जोन III: 30%
जोन II: 41% (न्यूनतम सक्रिय)

दिल्ली ज़ोन IV में है शामिल
जैसा कि सबको मालूम है, हिमालय नवीन वलित पर्वत श्रृंखला है. यह प्लेट टेक्टोनिक की क्रियाएं लगातार चलती रहती है. जिसके वजह से ही हिमालय पर्वत की सबसे ऊंची छोटी एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ती जा रही है. भारतीय और नेपाल प्लेट एक दूसरे से टकराते हैं, जिसके वजह से इन क्षेत्रों में लगातार भूकंप अनुभव किए जाते हैं.
दिल्ली-एनसीआर का क्षेत्र भी हिमालयी ज़ोन में आता है. ये क्षेत्र भारत के भूकंपीय जोन IV में आता है, जहां भूकंप का खतरा काफी उच्च होता है. इसलिए इन क्षेत्रों में 4 से 4.5 की तीव्रता का भूकंप काफी आम है, लेकिन.. फरीदाबाद 7 प्लेट ज़ोन में आता है है यानी कि ज़ोन V, अगर कभी यहां भूकंप का केंद्र रहा तो तबाही ही आई समझो. पिछले 100 सालों में दिल्ली में 25 से 30 ऐसे भूकंप आ चुके हैं, जिनमें कोई खास नुकसान नहीं हुआ है.

दिल्ली में ये प्रमुख फाल्ट या भूकंपीय ज़ोन हैं

दिल्ली-हरिद्वार रिजमहेंद्रगढ़-देहरादून उपसतह दोषमुरादाबाद फाल्टसोहना फाल्टग्रेट बाउंडरी फॉल्ट

यमुना नदी रेखागंगा नदी लाइनमेंटजहाजपुर थ्रस्ट
विशेषज्ञों ने कहा कि दिल्ली और उदयपुर के बीच फैले अरावली रेंज के पहाड़ जो गुरुग्राम, जयपुर और अजमेर के माध्यम से पहाड़ी इलाकों से गुजरते हैं, इनमें व्यापक भूवैज्ञानिक गतिविधि देखी गई है, जिससे इन पहाड़ों में उत्थान और फॉल्ट का निर्माण देखा गया है, लेकिन, हाल फिलहाल उनमे कोई गतिविधि नहीं देखी गई है.