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मानवाधिकार से जुड़े प्रस्ताव का विरोध करेगा श्रीलंका !

श्रीलंका इस समय गंभीर आर्थिक संकटों का सामना कर रहा है। वहां आलम यह है कि लोगों को खाने तक के लाले पड़े हुए हैं। वहीं, इसी बीच श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्र में श्रीलंका अपनी अर्थव्यवस्था की जवाबदेही के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावित प्रस्ताव का विरोध करेगा। इसमें आर्थिक अपराधों की जिम्मेदारी भी शामिल होगी। साबरी ने कहा कि श्रीलंका मानवाधिकारों के हनन की जांच के लिए एक बाहरी तंत्र के लिए सहमत नहीं है क्योंकि यह देश के संविधान का उल्लंघन होगा।

उन्होंने कहा कि हम बाहरी ताकतों को यह बताने की अनुमति नहीं देंगे कि हमारी अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कैसे किया जाए। हमने आर्थिक सुधार के लिए अपने उपाय किए हैं। उन्होंने ये बातें जेनेवा से एक वीडियो जारी कर कहीं हैं। दरअसल, श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी इन दिनों जेनेवा में हैं, जहां वह यूएनएचआरसी के 51 वें सत्र में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। दरअसल, एक नया मसौदा प्रस्ताव सात अक्टूबर को मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में मतदान के लिए रखा जाना है। इस मसौदे का मकसद द्वीप राष्ट्र में चल रहे आर्थिक संकट पर उसकी जवाबदेही का आह्वान करना है।

विदेश मंत्री साबरी ने कहा कि  आर्थिक मामलों को तय करने के लिए विशेषज्ञों की कमी है। वहीं, उन्होंने श्रीलंका मानवाधिकार संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय तंत्र का विरोध करते हुए आर्थिक संकट को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के प्रति सहिष्णु होने के सवाल पर कहा कि जब विश्व के अन्य देश मानवाधिकारों को लेकर सामने आए तब श्रीलंका ने अपने आर्थिक सुधारों पर मैत्रीपूर्ण सहयोग किया था।

इस दौरान उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों के नेतृत्व वाले देशों के मुख्य समूह को श्रीलंका के खिलाफ कदम उठाने के लिए वहां रहने वाले तमिल प्रवासी भारी पैरवी कर रहे हैं।

साबरी ने कहा कि हमें अपनी संप्रभुता की रक्षा करनी होगी क्योंकि यह साफ है कि ये समूह हमें कमजोर करने के लिए इन आरोपों को कायम रखना चाहते हैं। साबरी ने कहा कि हमने 94 प्रतिशत निजी संपत्तियां (लिट्टे के साथ युद्ध के दौरान सैन्य उद्देश्यों के लिए रखी गई) जारी कर दी हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अधिकार निकाय ने 2013 के बाद से अधिकारों की जवाबदेही के लिए प्रस्तावों को अपनाया है। युद्ध अपराधों के लिए सरकारी सैनिकों और लिट्टे समूह दोनों पर आरोप लगाया गया, जिन्होंने उत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में तमिल अल्पसंख्यकों के लिए एक अलग राज्य बनाने के लिए एक हिंसक अभियान चलाया था।

अपदस्थ पूर्व राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने उस समय श्रीलंका के लगभग 30 साल के गृहयुद्ध को 2009 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (छळळए) के सुप्रीमो वेलुपिल्लई प्रभाकरन के खात्मे के साथ कठोरता से समाप्त कर दिया था। पूर्व रक्षा सचिव रहे राजपक्षे मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से इनकार करते हैं। गोतबाया के बड़े भाई तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने 18 मई, 2009 को 26 साल के युद्ध की समाप्ति की घोषणा की थी जिसमें 1,00,000 से अधिक लोग मारे गए थे और लाखों श्रीलंकाई, मुख्य रूप से अल्पसंख्यक तमिल शरणार्थी के रूप में विस्थापित हुए थे।