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सेवा में स्वार्थ ही हमारे जीवन में दुखों का कारण

स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक

परिस्थितियों को हम स्वयं जन्म देते हैं उन्हे पालते हैं उनकी परवरिश करते हैं बाद में वही हमारे दुखों का कारण बनती हैं तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा, हानि लाभ, जीवन, मरण, जस, अपजस विधि हाथ!! ये 6 बाते विधि यादि न्यायालय के हांथों में हैं कौन सा न्यायालय ? . परमपिता परमेश्वर की अदालत में ये 6 मुकदमें विचाराधीन रहते हैं इनमें सुख और दुःख नहीं है क्यों कि ये हमारे ही हांथों में है हम सेवा में निष्काम भाव ना रखकर स्वार्थ रखते हैं बच्चों को अच्छी सुविधाएं व शिक्षा देने के पीछे हम अपनी बुढ़ापे की सेवा की कामना बच्चों से करते हैं जब कि हमारे बुढ़ापे में सुख समृद्धि होगी या नहीं वह हमारे व्दारा किये गये निष्काम कर्मों का परिणाम तय करेंगे भगवान ने मानव जाति ही नहीं विभिन्न जीव जंतुओ को जीवंत बनाये रखने के लिए जल, वायु, पृथ्वी प्रकृति आदि तो जन्म दिया इसके पीछे उसका कोई स्वार्थ नहीं था लेकिन हम मंदिर बाद में जाते हैं पहले मंदिर में भगवान को सौंपने हेतु मांग पत्र तैयार कर लेते हैं !

अगर किसी को सेवा में आनंद न मिले तो इसका मतलब यह नहीं कि सेवा में आनंद नहीं है, बल्कि इसका सीधा-सा अर्थ है कि आपकी सेवा में कहीं कमी है, मन के किसी कोने में स्वार्थ है सेवा के भाव में कमी है निष्ठा में कमी है, आप अपनी सेवा के बदले में सम्मान चाहते इसलिए आनंद का अनुभव आपको नहीं हो पा रहा है। प्रभु कृपा आपसे नहीं जुड़ पा रही है, समर्पण में कुछ कमी है। इसलिए चाहे सेवा कीजिए या सिमरन, दोनों स्थितियों में प्रदर्शन और आडंबर से बचिए। पूरे मन से समर्पित भाव से सेवा कीजिए, फिर आपको सेवा में आनंद आएगा, आप आनंद की अनुभूति करने लगेंगे ।

आनंदमय जीवन के सूत्र क्या हैं ?
घर में जब आप आते हैं तो एक अच्छे सरल, सहज और प्रेम से भरे हुए इनसान बनकर आइए। रात होते ही अपने सारे कामों को भूल जाइए, निश्चिंत हो जाइए । जितना शांत अपने को कर पाएंगे उतना ही आपके जीवन में आनंद आएगा। उल्लास से भरपूर होने के लिए आपकी सुबह अच्छी होनी चाहिए और इसके लिए आपकी शाम का अच्छा होना बहुत जरूरी है। जैसे मौसम बदलते हैं तो आप मौसम के पीछे डंडा लेकर नहीं खड़े हो जाते कि इतनी गर्मी या सर्दी क्यों है, क्‍योंकि यह सब स्वाभाविक है। ऐसे ही सुख-दु:ख, हानि-लाभ, हारना-जीतना भी स्वाभाविक है। यह तो आता जाता रहेगा। जब आप ऐसा स्वभाव बनाकर सोचेंगे, समझेंगे, जिएंगे, तब आप आनंदमय जीवन अवश्य जिएंगे।