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(Sanjay Gandhi)
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आपातकाल के आसपास ही संजय गांधी (Sanjay Gandhi)राजनीति में सक्रिय हुए

नई दिल्ली :भारतीय राजनीति में एक समय एक शक्तिशाली व्यक्ति उभरा था. उसे कई लोग अप्रत्यक्ष रूप से देश का प्रधानमंत्री तक मानते थे. यह शख्स कोई और नहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे संजय गांधी थे. बताया जाता है कि संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने अपनी मां इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री रहते एक तरह से कांग्रेस और शासन में भी एक तरह से शासक की तरह हो गए थे. कई विवादों में रहे संजय गांधी एक कौतूहल का व्यक्तित्व रहे हैं. उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि वे बचपन में मशीन वाले खिलौनों को बहुत पसंद करते थे और मशीनों को लेकर उनकी यह पसंद ताउम्र कायम भी रही.

मशीनों में ज्यादा रुचि
संजय गांधी का जन्म नई दिल्ली में 14 दिसंबर 1946 को हुआ था. वे इंदिरागांधी और फिरोज गांधी के दूसरे बेटे और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के छोटे भाई थी. उनकी शुरुआती पढ़ाई देहरादून और उसके बाद स्विट्जरलैंड के इंटरनेशल बोर्डिंग स्कूल ‘इकोल डी ह्यूमेनाइट’ में हुई थी. लेकिन उनकी दिलचस्पी पढ़ाई में कम और मशीनों में ज्यादा थी. बचपने से ही उन्हें मशीनें ठीक करने का बहुत जुनून था.

मशीनों में खासी दिलचस्पी
पढ़ाई में हमेशा ही औसत ही रहे संजय गांधी को मशीनों के अलावा खेलों में भी खासी रुचि थी. वे किसी यूनिवर्सिटी में तो नहीं पढ़े लेकिन उन्होंने इंग्लैंड में रोल्स रायस ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग में तीन साल की इंटर्नशिप की. उनकी स्पोर्ट्स कारों और विमानों के एक्रोबैट्स में गहरी रुचि थी. उनके पास पायलट का लायसेंस भी थी. यहां तक कि भारत में मारुति उद्योग की शुरुआत के लिए उनकी बड़ी भूमिका मानी जाती है.

इंदिरागांधी के सत्ता संभालते ही
1966 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं और फिर संजय गांधी अपनी इंटर्नशिप बीच में ही छोड़ कर देश वापस आ गए. इंदिरा गांधी के सत्ता संभालने के बाद कांग्रेस में बहुत सारे बदलाव आए और जैसे जैसे इंदिरा गांधी की पार्टी में पकड़ मजबूत होती गई, संजय गांधी का भी पार्टी में भी रुतबा बढ़ता गया.
इंदिरा गांधी की ओर से खुली छूट
इंदिरा गांधी के बारे में माना जाता है कि वे संजय गांधी की किसी भी बात को अनसुना नहीं करती थीं और ना ही वे संजय गांधी के किसी फैसले के खिलाफ जाती थीं या उसे रद्द करतीं थी. यही वजह थी की इस तरह से संजय गांधी को एक तरह की समांतर सत्ता मिल गई थी और औपचारिक पद ना होने के कारण वे पूरी तरह से निरंकुश भी हो गए थे.

मारूति कार आगमन
1971 में इंदिरा गांधी की कैबिनेट ने लोगों की कार के उत्पादन का प्रस्ताव दिया, जो भारत का मध्यम वर्ग के लिए मुफीद हो सके. इसी की वजह से मारुति मोटर्स लिमिटेड नाम की कंपनी अस्तित्व में आई. संजय गांधी इसके के मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए और कंपनी को कार बनाने और बेचने का लायसेंस आसानी से मिल गया. इस पूरे मामले में इंदिरा गांधी की भी आलोचना हो रही थी, लेकिन 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध ने सभी का ध्यान इससे हटा दिया.

मजेदार बात यह है कि जब तक संजय गांधी जिंदा रहे तब तक कंपनी ने एक कार का भी उत्पादन नहीं किया और बाद यही कंपनी देश की एक बड़ी और सफल कार निर्माता कंपनी के रूप में उभरी. दरअसल आपातकाल के पहले ही संजय गांधी राजनीति में सक्रिय हो गए और यह परियोजना एक तरह से ठंडे बस्ते में चली गई. लेकिन अगले चुनाव तक सत्ता से बाहर रहते हुए संजय गांधी पार्टी में फिर सक्रिय हुए.

संजय गांधी ने इस बार अपने कौशल से दिखा दिया कि वे एक मां के लाड़ प्यार में बिगड़े बच्चे नहीं हैं और ना ही कोई सनकी तानाशाह मानसिकता वाले व्यक्ति. उन्होंने कांग्रेस में पार्टी स्तर पर जान फूंकी और 1980 के चुनाव में उनकी ही चतुर रणनीति इंदिरा गांधी की प्रचंड जीत से सत्ता में वापसी हुई जिस इंदिरा गांधी के खिलाफ तीन साल पहले पूरा देश खड़ा हो गया था. लेकिन 23 जून 1980 को ही उनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई.