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(कमलनाथ)
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कमलनाथ और अशोक गहलोत के बेटों को टिकट(कमलनाथ)

दिल्ली : इंसान गलतियां करके सीखता है लेकिन दशकों तक सरकार चलाने वाली कांग्रेस शायद सीखना नहीं चाहती है. ऐसे समय में जब कहा जा रहा है कि लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना जरूरी है. कांग्रेस कुछ लोगों या कहें कि परिवारों के बीच फंसकर रह गई है. अब लोकसभा उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में गहलोत और कमलनाथ  (कमलनाथ) के बेटे को टिकट देकर कांग्रेस ने परिवारवाद पर अपने लिए चुनौती बढ़ा दी है. ऐसे वह बीजेपी से कैसे लड़ेगी?

लगता है कांग्रेस अपने पुराने ढर्रे पर ही चलना चाहती है. पिछले 10 साल में मोदी लहर के चलते भाजपा का जहां ग्राफ बढ़ता गया वहीं, कांग्रेस सिकुड़ती ही जा रही है. हाल यह है कि 15 पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत 50 बड़े नेता पार्टी छोड़कर चले गए. ’24 अकबर रोड’ किताब लिखने वाले रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व ने कभी इसकी वजह जानने की कोशिश नहीं की और न ही रवैये में बदलाव किया. कल सुबह उन्होंने लेख लिखा और शाम में कांग्रेस उम्मीदवारों की लिस्ट आई तो बात सच साबित होती दिखी.

पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा शुरू से ही परिवारवाद, एक परिवार की पार्टी, अपने बच्चों को सेट करना लक्ष्य जैसी बातें करते हुए कांग्रेस पर हमले करती रही है. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ऐसा लगता है कि मुख्य विपक्षी दल BJP को सही साबित करना चाहता है. कल आई कांग्रेस उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट पर गौर कीजिए. कई नाम ऐसे हैं जो दिखाते हैं कि कांग्रेस में नेता अपने बच्चों को कैसे सेट करते हैं. हालांकि यह कोई दावा नहीं कर सकता कि दूसरे दलों में ऐसा नहीं है लेकिन कम से कम भाजपा को गलत साबित करने की कोशिश तो की जा सकती थी.

वैसे भी, परिवारवाद चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ भाजपा का मुख्य और बेहद आसान हथियार रहा है. भाजपा के नेता बड़ी आसानी से नेहरू से लेकर सोनिया-राहुल का नाम लेते हैं और आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस अब सिर्फ गांधी परिवार की पार्टी बनकर रह गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ और राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को लोकसभा का टिकट देना कहां तक सही है?

गौरव गोगोई को भी मिला टिकट
इतना ही नहीं, असम के पूर्व सीएम तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई को फिर से लोकसभा का टिकट दिया गया है. आपको याद होगा 2014-15 में तरुण गोगोई से नाराज होकर ही हिमंता बिस्वा सरमा ने कांग्रेस छोड़ी थी. उसके बाद हिमंता ने नॉर्थ ईस्ट में भाजपा को जबर्दस्त सफलता दिलाई. बताते हैं कि तब राहुल गांधी ने हिमंता की काबिलियत की जगह गोगोई परिवार को सपोर्ट किया था. हिमंता सीएम पद के प्रबल दावेदार थे. आज करीब 9 साल बीत चुके हैं. कांग्रेस अब भी नेताओं की नई पीढ़ी को आगे करने की जगह परिवार की नई पीढ़ी को आगे करने में जुटी है. कल की लिस्ट से यही संदेश गया है.

3 सीटें जीत गई कांग्रेस तो भी…
भले ही चुनाव में नकुलनाथ, गौरव गोगोई और वैभव गहलोत जीत जाएं लेकिन उनका नाम लेकर भाजपा कई सीटों पर कांग्रेस का नुकसान करेगी. अच्छा होता परिवारवाद के आरोपों को धोने के लिए कांग्रेस तय करती कि किसी भी नेता के बेटे को टिकट नहीं मिलेगा. गनीमत यह है कि बेटों को टिकट देकर पूर्व सीएम चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. अंदरखाने नेता यह भी जानते हैं और पहले देखा गया है कि जब अपना बेटा चुनाव लड़ रहा होता है तो पिताजी पार्टी की जगह अपने लाल को चुनाव जिताने पर ज्यादा फोकस करते हैं. अच्छा होता तो गहलोत और कमलनाथ जैसे दिग्गज अपने दम पर 25-25 सीटों का प्लान बनाते और कांग्रेस को रिवाइव करने का दावा करते. यह भी याद दिला दें कि पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह मध्य प्रदेश की राघोगढ़ सीट से विधायक हैं.

तब राहुल ने सुनाया था

कांग्रेस को फिर से याद कर लेना चाहिए राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते समय दो पूर्व सीएम पर क्या आरोप लगाए थे. मीडिया में स्पष्ट तौर पर गहलोत, कमलनाथ और पी चिदंबरम का नाम आया था. राहुल ने आरोप लगाया था कि इन लोगों ने अपने बेटों को पार्टी हितों से ऊपर रखा. आज भी वो स्थिति बदली नहीं दिख रही है. अगर ये लोग पार्टी छोड़ने का दबाव बनाते तो भी कांग्रेस को अपने भविष्य के लिए इनके प्रेशर में नहीं आना चाहिए था.

जैसा कई एक्सपर्ट सवाल कर रहे हैं कि जालौर से बेटे को टिकट दिलाने के लिए अशोक गहलोत जोर लगाते रहे लेकिन वह आधा दर्जन सीटों पर भी कांग्रेस प्रत्याशियों को जिताने की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं. पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राजस्थान की एक सीट नहीं जीत सकी थी. इस बार गहलोत अपने बेटे को सीट जिताने के लिए जरूर पूरा जोर लगाते दिखेंगे. इससे कांग्रेस का कहां फायदा होने वाला है.

कार्यकर्ताओं में कैसे भरेंगे जोश?
मीडिया में इन नेताओं को GenNext leaders लिखा जा रहा है. जबकि आज स्थिति यह है कि 1969, 77, 89 या 96 की तुलना में कांग्रेस को ज्यादा विश्वसनीय नेतृत्व, चुनावी सफलता और आत्मविश्वास की जरूरत है. जब नेताजी के परिवार के लोग ही आगे बढ़ेंगे तो कार्यकर्ताओं में क्या संदेश जाएगा. आप देखिए भाजपा में जब अचानक किसी नेता को सीएम पद दिया जाता है या चुनावी टिकट या मंत्री आदि पद दिए जाते हैं तो कैसे उनके आंसू छलक पड़ते हैं. वह कहते हैं कि भाजपा ही ऐसी पार्टी है जो मुझ जैसे गरीब मां के बेटे, जमीन से उठे (छोटे बैकग्राउंड से आए) नेता को आगे बढ़ा सकती है.

रशीद किदवाई ने कांग्रेस के इतिहास को करीब से देखा है. वह अपने लेख में कहते हैं कि यह पहला अवसर नहीं है जब कांग्रेस का भविष्य अंधकार में दिख रहा है या गांधी परिवार पर हमले हो रहे हैं. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने विरोधियों को परास्त कर बाजी पलट दी थी. कांग्रेस कई बार टूटी लेकिन आज की स्थिति बिल्कुल अलग है. उन्होंने राजस्थान से राज्यसभा सांसद केसी वेणुगोपाल को लोकसभा चुनाव का टिकट देने पर भी सवाल उठाए हैं. अगर वह लोकसभा चुनाव जीतते हैं तो राज्यसभा सीट छोड़नी होगी. इससे वह सीट भाजपा के पास चली जाएगी. हो सकता है वेणुगोपाल नेता प्रतिपक्ष बनने की उम्मीद कर रहे हों.

इस तरह से देखें तो किस्मत के भरोसे बैठने की बजाय अगर कांग्रेस को सच मायने में भाजपा का मुकाबला करना है तो उसे रणनीतिक स्तर पर आमूलचूल बदलाव के लिए तैयार होना चाहिए. बड़ी बात कि वह राज्यसभा एमपी के भरोसे पार्टी चलाने की बजाय लोकप्रिय चेहरों या कहें लोकसभा सांसदों को आगे कर पार्टी का कामकाज चलाए तो ज्यादा बेहतर होगा. लेकिन जिस तरह के संकेत हैं उससे यही लगता है कि आगे लिस्ट में और नाम ‘घरवालों’ के हो सकते हैं.