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गुरु पर्वत का हथेली पर नहीं होना गुलामी (slavery)का प्रतीक

गुरु पर्वत: हस्तरेखा शास्त्र में हाथ की रेखाओं व चिह्नों के अलावा अंगुलियों के नीचे उभरे पर्वतों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इन पर्वतों की उंचाई व इनसे जुड़ी रेखाओं व अंगुलियों के आकार के आधार पर व्यक्ति के चरित्र और भाग्य के बारे में पता लगाया जाता है. इन्हीं में एक गुरु पर्वत है, जो इंडेक्स यानी तर्जनी उंगली के नीचे स्थित होता है. हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार गुरु पर्वत व्यक्ति की बुद्धि, चतुराई, महत्वाकांक्षा, व्यवहार व भविष्य का संकेत देता है. इस पर्वत का हथेली पर नहीं होना गुलामी (slavery) व सामान्य होना लीडरशिप की निशानी है. आइए इस पवर्त के शुभ व अशुभ फलों पर चर्चा करते हैं

गुरु पर्वत व व्यक्ति का चरित्र
गुरु पर्वत के महत्व व फल को इस तरह समझा जा सकता है:
1. हाथ में गुरु पर्वत का नहीं होना महत्वाकांक्षाहीन व दासता के जीवन का संकेत होता है. ऐसे व्यक्तियों में नेतृत्व क्षमता नहीं होती, जबकि विकसित गुरु पर्वत उचित महत्वाकांक्षा, स्वाभिमान, आत्मगरिमा, प्रभावशीलता व आदर्शप्रियता का प्रतीक है.

ऐसे लोगों में नेतृत्व और संचालन की सहज प्रवृत्ति होती है. उन्हें समाज में अच्छा महत्व मिलता है. वे चिंतन- मननशील, विशाल ह्रदय वाले, दयालु तथा दूसरों का भला सोचने व करने वाले होते हैं. उनके कार्य व व्यवहार दोनों में आदर्श झलकता है. महापुरुष गुरु प्रधान ही हुआ करते हैं.

2. यदि गुरु पर्वत के पास मानस रेखा यानी गुरु पर्वत व जीवन रेखा के बीच स्पष्ट रेखा है तो गुरु पर्वत की प्रभावशीलता और बढ़ जाती है. यदि वह कटी-फटी और अस्त-व्यस्त है तो जातक के स्वभाव में अहंकार और कामना बढ़ती है.

3. गुरु पर्वत अत्यधिक विकसित हो तो भी व्यक्ति में घमंड, प्रभुत्व की भावना, स्वार्थ और शेखी के दुर्गुण आ जाते हैं.

4. सामान्य रूप से विकसित गुरु सफलता प्राप्ति का संकेत है. यदि हथेली पर मानसिक विश्व की प्रधानता हो तो व्यक्ति की महत्वाकांक्षा साहित्य क्षेत्र में होती है. यदि उसका व्यवहारिक विश्व प्रधान हो तो वह व्यावसायिक और आर्थिक क्षेत्र में नेतृत्व करता है.
5. यदि गुरु पर्वत का झुकाव शनि की ओर हो तो व्यक्ति के स्वभाव में गंभीरता व उदासी होती है. दर्शन, पुरातत्व और निश्चित विज्ञान उन्हें आकर्षित करते हैं.

6. यदि पर्वत ह्रदय की रेखा को अपनी और खींच रहा हो तो ऐसे व्यक्ति प्रेम और यौन संबंधों को लेकर आदर्शों से संचालित होते हैं. अपने साथी का चुनाव भी ये बहुत सावधानी से करते हैं.

7. यदि गुरु की अंगुली यानी तर्जनी लंबी हो तो व्यक्ति निरंकुश होता है. वह अपने अधीनस्थों पर आतंकपूर्ण ढंग से शासन करना चाहता है. यदि अंगुली छोटी हो तो गुरु के सहज गुण समाप्त हो जाते हैं.

8. टेढ़ी-मेढ़ी तर्जनी स्वभाव में चालाकी और नीचता लाती है. यदि अंगुली का सिरा कोनिक हो तो व्यक्ति आदर्शप्रिय, वर्गाकार हो तो व्यावहारिक और यदि फैला हुआ हो तो अनुचित रूप से महत्वकांक्षी होता है.

9. धनु का गुरु यात्रा, विवेक और विचारधारा से संबंधित होता है, जबकि मीन का गुरु व्यक्ति को आत्मिक पवित्रता देता है.

10. गुरु पर्वत पर खड़ी रेखाएं, तारे, त्रिकोण या त्रिशूल का निशान अच्छे प्रबंधक व आड़ी रेखाएं, रेखाओं का जाल या धब्बा हो तो वह अशुभकारी व कमजोर नेतृत्व क्षमता का प्रतीक है.