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(Gita Press)
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गीता प्रेस (Gita Press)गांधी शांति पुरस्कार करेगा स्वीकार.

गोरखपुर: दुनिया के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित धार्मिक किताबों के प्रकाशकों में से एक गीता प्रेस गोरखपुर को इस बार साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी. यह ऐलान संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी के निर्णय के बाद रविवार को किया गया था. इस बीच गीता प्रेस (Gita Press) ने कहा है कि वह सम्मान जरूर स्वीकार करेगा लेकिन इसके साथ मिलने वाली धनराशि नहीं लेगा.

गोरखपुर गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा, ‘हम लोग किसी भी तरह के आर्थिक सहायता या पुरस्कार नहीं लेते हैं, इसलिए इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं.’ बता दें कि इससे पहले भी गीता प्रेस ने कभी भी कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं किया था. प्रबंधन से जुड़े लोगों ने कहा कि हालांकि इस बार परंपरा को तोड़ते हुए सम्मान को स्वीकार किया जाएगा. लेकिन इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि नहीं ली जाएगी.

मालूम हो कि रविवार को गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा के बाद गीता प्रेस से जुड़े हुए लोग बेहद खुश हुए. साथ ही स्थानीय लोगों में भी खुशी की लहर दौड़ गई. पीएम मोदी और सीएम योगी ने जहां ट्वीट कर गीता प्रेस को बधाई दी. वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश के ट्वीट के बाद सियासत गर्मा गई.

गीता प्रेस के ट्रस्टी ने कहा कि गीता प्रेस से महात्मा गांधी का विशेष जुड़ाव था. उन्होंने कल्याण पत्रिका के लिए पहला लेख लिखा था. इससें गांधी जी ने स्वाभाविक शब्द के दुरुपयोग का जिक्र किया था. जिसके बाद उन्होंने कई बार कल्याण के लिए लेख या संदेश लिखे. गांधी जी के निधन के बाद गीता प्रेस में उनके विचार छपते रहे. महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 को गीता प्रेस की गीता प्रवेशिका के लिए भूमिका लिखी थी.
ऐसे हुई गीता प्रेस की शुरुआत
मालूम हो कि गीता प्रेस की स्थापना साल 1921 में जयदयाल गोयनका ने कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट में की थी, इसी ट्रस्ट से गीता का प्रकाशन होता था. छपाई के दौरान किताबों में त्रुटि रह जाती थी, जिसकी शिकायत गोयनका जी ने प्रेस के मालिक से की तो उन्होने कहा कि इतनी शुद्ध गीता का प्रकाशन चाहिए तो अपनी प्रेस की स्थापना कर लीजिए. जिसके बाद गीता प्रकाशित करने के लिए प्रेस लगाने की बात चली तो गोरखपुर में प्रेस की स्थापना का फैसला किया गया. इसके बाद 29 अप्रैल 1923 को हिन्दी बाजार में 10 रुपये महीने के किराए पर कमरा लेकर गीता का प्रकाशन शुरू किया गया. जिसके बाद धीरे-धीरे गीता प्रेस का निर्माण हुआ.

गीता प्रेस से श्रीमद्भागतगीता, रामचरित मानस, पुराण, उपनिषद सहित 15 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित की जाती हैं. इनमें हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, असमिया, उड़िया, उर्दू, तेलुगु, मलयालम, पंजाबी, अंग्रेजी, नेपाली आदि भाषाएं शामिल हैं. गीता प्रेस से अब तक लगभग 1850 प्रकार की 92.5 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.