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चंद्रशेखर आजाद (CSA) कृषि एवं प्रौद्योगिकी

CSA का ये नवीन प्रयोग कराएगा किसानों को लाखों की कमाई !!

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद (CSA) कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के विज्ञानियों ने पहली बार स्ट्राबेरी की पैदावार शुरू की है। इसके लिए विवि के सब्जी विज्ञान विभाग में पालीहाउस तैयार किया गया है। यहां मल्चिंग (पलवार) तकनीकी से करीब एक हजार से ज्यादा पौधे लगाए गए हैं। वर्तमान में पुष्प खिल रहे हैं और फलों का आना शुरू हो गया है। प्रयोग सफल होने के बाद विवि प्रशासन किसानों को इसकी खेती के प्रति जागरूक करेगा और किसान भी इसकी पैदावार करके लाखों की कमाई कर सकेंगे।

आम तौर पर स्ट्राबेरी का उत्पादन अधिकतर पहाड़ी इलाकों में होता है, लेकिन अब मैदानी इलाकों में भी सर्दियों के मौसम में इसकी खेती शुरू हुई है। सब्जी विज्ञान विभाग के प्रमुख डा. डीपी सिंह ने बताया कि कानपुर व आसपास के जिलों में किसानों को भी जागरूक करने के लिए विभाग के फार्म में पहली बार उत्पादन शुरू किया गया है। मौसम और कीड़े मकोड़ों से बचाने के लिए पालीहाउस में इसका उत्पादन किया जा रहा है।

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हालांकि खेतों में भी पैदावार की जा सकती है, लेकिन उसके लिए पौधों का विशेष ख्याल रखने की जरूरत है। डा. सिंह ने बताया कि स्ट्राबेरी के पौधे बारिश के बाद अक्टूबर में लगाए जाते हैं। यह मौसम काफी उपयुक्त माना गया है। इस दौरान खेती के लिए जरूरी 15 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान बना रहता है। अगर तापमान ज्यादा हो जाता है तो फसल प्रभावित हो सकती है। करीब ढाई से तीन माह में फल तैयार हो जाते हैं। अगर सही तरीके से खेती की जाए तो पांच गुना तक मुनाफा कमाया जा सकता है।

पौधे लगाने से पहले मल्चिंग (पलवार) जरूरी-

विभाग के विज्ञानी डा. राजीव कुमार ने बताया कि स्ट्राबेरी के उत्पादन के लिए खेत को विशेष प्रकार से तैयार करना पड़ता है। 20 सेंटीमीटर ऊंची व तीन फुट चौड़ी मेड़ बनाकर धान की पुआल बिछाकर मल्चिंग (पलवार) लगाते हैं या फिर पालीथिन से उसे कवर करते हैं। ताकि स्ट्राबेरी के फूल व फल मिट्टी को न छुएं। पलवार से खरपतवार भी नहीं होते और फसल सुरक्षित रहती है।

ड्रिप या स्प्रिकंलर विधि से सिंचाई –

स्ट्राबेरी के पौधों को पर्याप्त नमी देने के लिए समय-समय पर खाद व पानी देना पड़ता है। इसके लिए मल्चिंग के दौरान ही पालीथिन के नीचे पाइप बिछा दी जाती हैं। इसकी मदद से ड्रिप व स्प्रिंकलर प्रणाली से खाद व पानी दिया जाता है। फल आने के बाद और ज्यादा ध्यान देना पड़ता है और फल का रंग जब आधे से अधिक लाल हो तो उन्हें तोड़कर एकत्र किया जाता है।