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(रणनीति )
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न्योता ठुकराना कांग्रेस की रणनीति या मजबूरी?(रणनीति )

नई दिल्ली: अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठाके कार्यक्रम का न्योता ठुकराने वाले विपक्षी दलों पर बीजेपी हमलावर है. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे जैसे नेता ये कहते हुए नहीं जा रहे हैं कि चुनावी फायदे के लिये आधे बने मंदिर का उद्घाटन बीजेपी-आरएसएस करा रही है. कांग्रेस ने कहा है कि ये कार्यक्रम बीजेपी ने राजनीतिक लाभ के लिए आयोजित किया है. हालांकि, इस आयोजन का विरोध करके कांग्रेस ने इस मामले को पूरी तरह से सियासी बना दिया है. ऐसे में आइए समझते हैं कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का न्योता ठुकराना कांग्रेस की रणनीति (रणनीति )  है या कोई मजबूरी…

कांग्रेस को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में का न्योता कुछ दिन पहले मिला था. पार्टी ने 10 जनवरी को सोशल मीडिया पर एक लेटर शेयर किया, जिसमें उसने राम मंदिर के उद्घाटन में न जाने के फैसले का कारण बताया है. कांग्रेस ने लिखा है कि धर्म निजी मामला है, लेकिन BJP/RSS ने मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम को अपना इवेंट बना लिया है.

कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोग बताते हैं कि कांग्रेस लीडरशिप ने ये फैसला 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर ही लिया है. इस बारे में इन 6 खास पहलुओं का ध्यान रखा गया है:-

1) कांग्रेस ने सबसे पहले INDIA ब्लॉक में बात की. सहयोगियों का पक्ष जाना. विपक्षी गठबंधन के ज्यादातर पार्टियों के नेता 22 जनवरी में शिरकत करने में इच्छुक नहीं थे.

2) लेफ्ट पार्टियां, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, एमडीएमके पहले ही राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम से दूरी बनाने का ऐलान कर चुके थे.

3) कांग्रेस को लगता है कि उत्तर भारत में तो पार्टी पहले ही कमजोर है. राम मंदिर के कार्यक्रम में जाकर कहीं वो दक्षिण भारत में अपने बढ़ते वोट बैंक का नुकसान ना कर ले.

4) दक्षिण भारत खासकर तमिलनाडु और केरल की राजनीति में सनातनी परंपराओं को आगे बढ़ाने वाली पार्टियों को कम ही पसंद किया जाता है. ऐसे में 22 जनवरी के आयोजन में अयोध्या का दौरा पार्टी की चुनावी सेहत पर विपरीत साबित होता.

5) कांग्रेस ये माहौल बनाना चाह रही है कि प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हिंदू धर्म की आस्था को फैलाने का नहीं, बल्कि पीएम मोदी की छवि चमकाने का आयोजन है.

6) अपने इसी तर्क को साबित करने के लिए 15 जनवरी को यूपी कांग्रेस के नेता अजय राय अयोध्या में राम लला के अस्थाई मंदिर में दर्शन करेंगे.

अब तक विपक्षी गठबंधन INDIA के कई नेताओं ने 22 जनवरी के कार्यक्रम के लिये अपने पत्ते खोल दिये हैं. राम मंदिर को लेकर लगभग वैसा ही माहौल हो गया, जब संसद के नये भवन का उद्घाटन हुआ था और पूरा विपक्षी गठबंधन उससे दूर रहा था. विपक्षी गठबंधन के ज्यादातर नेता अयोध्या के 22 जनवरी के कार्यक्रम का बॉयकॉट कर रहे हैं.

न्योता ठुकराने के बाद दो धड़ों में बंटी कांग्रेस
वैसे कांग्रेस के बॉयकॉट के फैसले के सियासी नुकसान भी दिखने लगे हैं. बुधवार को प्राण प्रतिष्ठा का न्योता ठुकराते हुए कांग्रेस ने ऐलान किया कि उनका कोई भी नेता प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा. वहीं, INDIA अलायंस के कुछ नेता निजी तौर पर देश में बने राम-मय माहौल के विरोध में दिखना नहीं चाहते हैं.

कांग्रेस के इस फैसले पर पार्टी के कई नेताओं ने असहमति जताई है. कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि राम किसी पार्टी के नहीं है. हमारी लड़ाई राम या अयोध्या से नहीं, बीजेपी से है. कुछ लोग कांग्रेस को वामपंथी रास्ते पर ले जा रहे हैं. मैं चाहता हूं कि कांग्रेस नेतृत्व को अयोध्या न जाने के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.

कांग्रेस में भी असमंजस
पूरे मामले को लेकर कांग्रेस में भी असमंजस दिख रहा है. कांग्रेस लीडरशिप कहती आई है कि राम मंदिर का निर्माण तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो रहा है, तो फिर आज वो कैसे इसे बीजेपी- आरएसएस का आयोजन कह रही है. वहीं, कांग्रेस का एक धड़े का तर्क है कि अयोध्या में राम लला के मंदिर का ताला तो राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए खुला, तो आज उसका राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का विरोध करना आशंका पैदा करता है.