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दूसरों पर अटेंशन देने से, अन्दर चलने वाले टेंशन को नहीं देख पाते है

मनोज श्रीवास्तव सहायक सूचना निदेशक देहरादून

स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक 

स्वमान और फरमान में रहने से हिम्मतवान बन जाते हैं। स्वमान में स्थित रहें और मर्यादा के फरमान पर भी चलते रहें। यदि स्वमान में रहते हैं तब मर्यादा के फरमान पर चलने में कोई परेशानी नहीं होती है। यदि स्वमान में स्थित नहीं होंगे तब फरमान पर चलने में कोई न कोई कमी अवश्य पड़ जाती है। इसलिए दोनों बातों में अपने को स्थित करते हुए सदैव इसी स्थिति को बनाये रखना चाहिए।

श्रेष्ठ स्वमान में स्थित होने से भिन्न-भिन्न प्रकार के ईगो, देहभिमान स्वतः ही और सहज ही समाप्त हो जाता है। सर्व गलतियों का कारण एक शब्द की कमजोरी है, स्वमान में से स्व शब्द को निकाल देना। स्वमान को भूल जाते हैं तब मान में आकर फरमान को भूल जाते हैं। जबकि फरमान है कि स्वमान में स्थित रहना। अर्थात स्व को भूलकर मान में आ जाने से फरमान खत्म हो जाता है। एक शब्द की गलती से अनेक गलतियाँ शुरू हो जाती हैं। फिर मान में आकर हमारा बोलना, चलना और करना सभी कुछ बदल जाता है।

एक शब्द कट होने से वास्तविक स्टेज से भी कट हो जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप हम जो कार्य करते हैं। उसमें मेहनत अधिक और परिणाम कम निकलता है। अधिक मेहनत करते-करते हम थक जाते हैं, हमारा उल्लास कम हो जाता है और आलस्य आ जाता है। जहाँ आलस्य आता है वहाँ उसके अन्य साथी स्वतः आ जाते हैं। क्योंकि आलस्य अकेला नहीं आता है, सर्व साथियों सहित आता है।

फरमान उल्लंघन होने से कोई न कोई बात की अरमान रह जाती है। इससे हम न स्वयं संतुष्ट रहते हैं और न दूसरों को ही संतुष्ट कर पाते हैं। इसलिए अपनी उन्नति के लिए हम जो प्लान बनाकर प्रैक्टिकल में लाते हैं, इसके पूर्व स्वमान मंे स्थित होते हैं, फिर अपने प्लान बनाकर उसको प्रैक्टिकल में लायें।

स्व स्थिति को छोड़कर प्लान नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि जबकि स्व स्थिति को छोड़कर प्लान बनाते हैं तब उसमें शक्ति नहीं रहती है। बिना शक्ति के प्लान का प्रभाव प्रैक्टिकल मंे बहुत कम हो जाता है। हम कार्य तो बहुत करते हैं, कार्य का विस्तार करते जाते हैं लेकिन बीज रूप अवस्था को छोड़ देते हैं। विस्तार में जाने से सार को निकाल देते हैं। अधिक क्वांटिटी में चले जाने से क्वालिटी गायब हो जाती है। विस्तार में एक बीज ही पावरफुल होता है। ऐसे ही क्वांटिटी के बीज क्वालिटी मौजूद रहती है।

विस्तार में जाने से अर्थात दूसरों का कल्याण करते-करते अपना कल्याण करना भूल जाते हैं। जब हम दूसरों के प्रति अधिक अटेेंशन देने से अपने अन्दर चलने वाले टेंशन को नहीं देख पाते हैं। इसलिए सबसे पहले अपने आप को देखना है। अपनी सर्विस फस्र्ट है, अपनी सर्विस किया तब दूसरों की सर्विस स्वतः हो जाती है।

अपनी सर्विस छोड़कर दूसरों की सर्विस छोड़कर समय और संकल्प अधिक खर्च हो जाता है। इस कारण हमारे अन्दर जो शक्ति भरनी चाहिए वह नहीं आ पाती है। अन्दर शक्ति जमा नहीं होने के कारण जो नशा और खुशी होने चाहिए वह नहीं मिलती है। अभी कमाया और खाया यह अल्पकालीन सुख है, जबकि बहुत काल के लिए बचाना जरूरी होता है। अभी कमाया और अभी बांटा लेकिन खाने के बाद समाना भी चाहिए और बांटना भी चाहिए। यदि कमाया और बांट दिया लेकिन समया नहीं तब शक्ति नहीं बढ़ती है।

दान करने से खुशी तो होती है जो मिला सो बांट दिया लेकिन स्वयं को समाने की शक्ति नहीं मिलती है। खुशी के साथ शक्ति भी चाहिए।
शक्ति न होने के कारण, हम कमा नहीं सकते हैं, निर्भिघ्न नहीं बन सकते हैं। छोटे-छोटे विघ्न हमारे लघ्न को डिस्टर्ब कर देते हैं। इसलिए समाने की शक्ति धारण करनी चाहिए। यदि समाने की शक्ति और सहन करने की शक्ति नहीं तब सरलता भी नहीं आती हैै।

जहाँ व्यर्थ है वहां समर्थ स्थिति नहीं बन सकती है। समर्थ स्थिति में रहते हुए कोई बोल व्यर्थ नहीं बोलते हैं। अपने को चेक करना है ऐसा नहीं कर्म कर लिया फिर पश्चाताप कर लिया, माफी मांग ली और छुट्टी हो गयी। कितनी भी माफी मांग लें लेकिन जो पाप और व्यर्थ है उसका धब्बा मिट नहंी सकता है। इसलिए अपना रजिस्टर साफ रखना है।