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37 हजार Km कर चुका यात्रा​, 20 साल से मां को कांवड़ में लेकर घूम रहा ये शख्‍स

आगरा. मध्‍य प्रदेश से कांवड़ पर अपनी मां को लेकर निकले कैलाश गिरी ब्रह्मचारी 37 हजार किलोमीटर की यात्रा पूरी कर मंगलवार को आगरा पहुंचे। कैलाश पिछले 20 साल से अपनी अंधी मां को कांवड़ में बैठाकर तीर्थों की यात्रा करवा रहे हैं। वृंदावन के दर्शन के बाद वह वापस अपने निवास जबलपुर जाएंगे।

जानें कैलाश की मां ने क्‍या मांगी थी मन्‍नत

– कैलाश गिरी जबलपुर के हैं।
– इनके पिता छिकोंडि श्रीपाल का बचपन में ही देहांत हो गया था।
– 25 साल की उम्र में बड़े भाई की भी मौत हो गई।
– इसके बाद मां कीर्ति देवी के आंखों की रोशनी चेचक की बीमारी के चलते चली गई।
– कैलाश बचपन से ही ब्रह्मचारी थे। एक बार 1994 में उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। बचना मुश्किल था, तो मां ने उनके ठीक होने पर नर्मदा परिक्रमा करने की मन्नत मांगी।
– बेटा के ठीक होने पर आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण मां परिक्रमा के लिए नहीं जा सकी।
– इसके बाद कैलाश ने मां की इच्‍छा को पूरा करने के लिए उन्‍हें कांवड़ में तीर्थ यात्रा करवाने का फैसला किया।

16 राज्‍यों अौर 23 से ज्‍यादा धामों का कर चुके हैं भ्रमण
– कैलाश अबतक काशी, अयोध्या, इलाहाबाद, चित्रकूट, रामेश्वरम, तिरुपति, जगन्नाथपुरी, गंगासागर, तारापीठ, बैजनाथधाम, जनकपुर, नीमसारांड, बद्रीनाथ, केदारनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार, पुष्कर, द्वारिका, रामेश्वरम, सोमनाथ, जूनागढ़, महाकालेश्वर, मैहर, बांदपुर आदि जगहों की यात्रा करने के बाद आगरा पहुंचे। यहां से वह वृंदावन जाएंगे।
– कैलाश की इच्छा नासिक त्रयम्बकेश्वर, भीमशंकर, घुसमेश्वर जाने की भी है। लेकिन उनकी मां अब तीर्थ यात्रा नहीं करना चाहती हैं।

क्या होता है शेड्यूल
– सुबह तड़के मां का आशीर्वाद लेने से दिन की शुरुआत होती है।
– इसके बाद प्रभु इच्छा तक वो कांवड़ में मां को बिठाकर चलते रहते हैं।
– इसके बाद एक स्‍थान पर रुककर खाना और आराम करते हैं।
– मां के आराम के समय उनके पैर दबाते हैं।
– धूप कम होते ही वो फिर चल देते हैं और देर रात तक चलते रहते हैं।
– इस दौरान रास्‍ते में मिलने वाले भक्त उनके रहने-खाने की व्यवस्था करा देते हैं।
– कैलाश के कंधे पर गहरे घाव हो गए हैं, जिसपर रोजाना औषधि लगानी पड़ती है।

क्या कहती है मां
– कैलाश की मां कीर्ति किसी के सामने बेटे को आशीर्वाद नहीं देती और न ही तारीफ करती हैं।
– वह सभी को माता-पिता की सेवा करने की सीख देती हैं।