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वही परमात्मा जो है निरंतर नया

मुरथल:सोनीपत:अध्यात्मवादी और भौतिकवादी में एक ही फर्क है। अध्यात्मवादी रोज अपने को नया करने की चिंता में संलग्न है, क्योंकि उसका कहना यह है कि अगर मैं नया हो गया तो इस जगत में मेरे लिए कुछ भी पुराना न रह जाएगा। क्योंकि, जब मैं ही नया हो गया तो पुराने का स्मरण करने वाला भी न बचा, हर चीज नई हो जाएगी। और, भौतिकवादी कहता है कि चीजें नई करो, क्योंकि स्वयं के नए होने का तो कोई उपाय नहीं है। सब नया कर लो, लेकिन अगर आदमी पुराना है और चीजों को पुराना करने की तरकीब उसके भीतर है, तो वह सब चीजों को पुराना कर ही लेगा। फिर हम इस तरह धोखे पैदा करते हैं।
चाहिए ऐसा कि रोज नया चित्त हो सके। कैसे हो सकता है, यह थोड़ी सी बात मैं आपसे करूं। तब नया साल न होगा, नया दिन न होगा; नए आप होंगे। और तब कोई भी चीज पुरानी नहीं हो सकती। जो आदमी निरंतर नए में जीने लगे, उस जीवन की खुशी का हिसाब आप लगा सकते हैं? अगर एक दिन को नया करने की तरकीब पता चल जाए, तो हम हर दिन को नया क्यों नहीं कर सकते?

एक फकीर के पास कोई आदमी गया था और उसने उससे पूछा कि मैं कितनी देर के लिए शांत होने का अभ्यास करूंउस फकीर ने कहा, एक क्षण के लिए शांत हो जाओ। बाकी की तुम फिकर मत करो।उस आदमी ने कहा, एक क्षण में क्या होगा?

उस फकीर ने कहा, जो एक क्षण में शांत होने की तरकीब जान लेता है, वह पूरी जिंदगी शांत रह सकता है, क्योंकि एक क्षण से ज्यादा किसी आदमी के हाथ में दो क्षण कभी होते ही नहीं। एक क्षण ही हाथ में आता है, जब आता है। अगर एक क्षण को मैं जादू कर सकूं और नया कर सकूं, और शांत कर सकूं, और आनंद से भर सकूं, तो मेरी पूरी जिंदगी आनंदित हो जाएगी, क्योंकि एक ही क्षण मेरे हाथ में आने वाला है सदा। और उतनी तरकीब मैं जानता हूं कि एक क्षण को मैं कैसे नया कर लूं।

एक क्षण को नया करना जो जान ले, उसकी पूरी जिंदगी नई हो जाती है। लेकिन हम क्षण को पुराना करना जानते हैं, नया करना जानते नहीं। और जिंदगी वैसी ही हो जाती है, जैसा हम कर लेते हैं। पुराना करने की तरकीबें हमें पता हैं। हम प्रत्येक चीज में पुराने को खोजने के इतने आतुर होते हैं, जिसका हिसाब नहीं।

पहली तो बात यह है कि प्रतिपल नए की खोज की हमारी दृष्टि होनी चाहिए कि क्या नया है? और अगर हमारे मन में यह प्रश्न हो, तो ऐसा कोई भी क्षण नहीं है, जिसमें कुछ नया न आ रहा हो। सुबह सूरज को उठ कर देखें, जो सूर्योदय आज हुआ है, वह कभी भी नहीं हुआ था। सूर्योदय रोज हुआ है, लेकिन जो आज हुआ है, वह कभी भी नहीं हुआ था।

लेकिन हो सकता है आप कह दें- सूर्योदय रोज होता है, नया क्या है? लेकिन यह सूर्योदय जो आज हुआ है, यह न कभी हुआ था, न कभी होगा। न ऐसे बादलों के रंग कभी पहले हुए थे, न आगे कभी होंगे। न सूरज जैसा आज की सुबह उगा है, ऐसा कभी उगा था, न उग सकता है। नए को खोजें, थोड़ा देखें कि यह सूरज कभी उगा था? और आप चकित खड़े रह जाएंगे कि आप इस भ्रम में ही जी रहे थे कि रोज वही सूरज उगता है। वही सूरज रोज नहीं उगता।

अगर कल मुझसे प्रेम मिला था तो जरूरी नहीं कि आज भी मिले। आज को खुला छोड दें, जो मिलेगा उसे देखें। यह आकांक्षा न करें कि जो कल मिला था, वह आज भी मिलना ही चाहिए। जहां ऐसी आकांक्षा आई कि हमने चीजों को पुराना करना शुरू कर दिया। जिंदगी को एक थ्रिल, एक पुलक में जीने दें, एक अनिश्चय में रहने दें। क्या होगा, कहा नहीं जा सकता। आज प्रेम मिलेगा, नहीं मिलेगा, कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इस असुरक्षा को स्वीकार कर लें।

लेकिन हम सुरक्षित होने की इतनी व्यवस्था करते हैं, इसलिए हमारा सारा जीवन बासी और पुराना हो गया है। जिंदगी में नए का स्वागत नहीं है हमारा। नए का स्वागत करें, नए का सम्मान करें और नए को खोजें—कि नया क्या है? खोज पर बहुत कुछ निर्भर करता है कि हम क्या खोजने जाते हैं, वही खोज लेंगे। अगर एक आदमी गुलाब के पास कांटों को खोजने जाएगा तो कांटे खोज लेगा, कांटे वहां हैं। और अगर एक आदमी फूल खोजने जाएगा तो यह भी हो सकता है कि कांटों का उसे पता ही न चले, वह फूल खोज ले। फूल भी वहां हैं। और जिस व्यक्ति को नए से सम्बंध जोड़ना हो, उसे उगते फूलों को देखना चाहिए। उसे कांटे गिनना छोड़ देना चाहिए। उसे नए का स्वागत और सम्मान, नए की अपेक्षा में जीना चाहिए। उसे अनजान और अज्ञात के अपने भीतर प्रवेश के लिए खुला द्वार रखना चाहिए। तब प्रतिदिन नया है, प्रत्येक सम्बंध नया है, प्रत्येक मित्र नया है, पत्नी नई है, पति नया है, बेटा नया है, बेटी नई है, तब सारी जिंदगी नई है।

मैं आपसे यह कह रहा हूं कि तीन सौ पैंसठ दिन ही नए हो सकते हैं। प्रतिपल नया हो सकता है। जो व्यक्ति एक बार नए के लिए अपने मन के द्वार को खोल लेता है, आज नहीं, कल वह पाता है कि नए के पीछे परमात्मा प्रवेश कर गया। क्योंकि परमात्मा अगर कुछ है, तो जो निरंतर नया है,उसी का नाम है।