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लैंगिक समानता
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लैंगिक समानता की पहचान है सामुदायिक रेडियो

अर्चना किशोर
छपरा, बिहार
लैंगिक असमानता की समस्या केवल महिलाओं को ही नहीं बल्कि पुरुषों को भी होती हैं। स्टेबल होने तक महिलाओं से ज्यादा परेशानी का सामना पुरुषों को करना पड़ता है क्योंकि समाज पुरुषों से अधिक उम्मीद रखता है समाज पुरुषों के कंधे पर जिम्मेदारियों का भारी भरकम बोझ डाल देता है यह कहना है छपरा शहर के पहले और एकमात्र कम्युनिटी रेडियो स्टेशन श्रेडियो मयूरश् के संस्थापक अभिषेक अरुण का एक आंकड़े के अनुसार दुनिया में महिलाओं से 3 गुना ज्यादा पुरुष सुसाइड करते हैं प्रत्येक तीन में से एक पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार है महिला दिवस या पुरुष दिवस मनाना तभी सफल होगा जब दोनों मिलकर एक दूसरे को आगे बढ़ाने में मदद करें बिहार के छपरा शहर के रहने वाले अभिषेक अरुण इसके उदाहरण हैं।

अभिषेक ने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की है। किसी बड़े शहर में जाकर अपना करियर बनाने के बजाए इन्होंने अपने शहर और वहां के लोगों के लिए कुछ करने को अपना जुनून बनाया अभिषेक कहते हैं, बड़े भाई आकाश अरुण जो कि खुद मीडिया में कार्यरत हैं उन्होंने एक आईडिया ‘कम्युनिटी रेडियो’ शेयर किया है। उसके बाद मेरे सिलेबस में भी एक टर्म था, ‘कम्युनिटी रेडियो’ इस शब्द ने मुझे अपने शहर के लिए कुछ खास करने के लिए प्रेरित किया सोचना शुरू किए कि इसे कैसे कर सकते हैं फिर हम दोनों भाईयों ने मिलकर प्रारूप तैयार किया कि छपरा में रेडियो स्टेशन कैसे शुरू की जाए? इसी के साथ रेडियो मयूर की नींव पड़ी।

अभिषेक बताते हैं कि रेडियो मयूर के शुरुआत के पीछे बहुत लंबी कहानी है यह छपरा की सबसे पुरानी सांस्कृतिक संस्था ‘मयूर कला केंद्र’ का परिवर्तित रूप है इसकी स्थापना 1979 में पशुपतिनाथ अरुण ने की थी यह संस्था छपरा शहर की सांस्कृतिक व नाट्य समिति थी साल 2016 में इसे कम्युनिटी रेडियो स्टेशन के रूप में पुनः शुरू किया गया कम्युनिटी रेडियो का मतलब है, ऐसा स्थानीय रेडियो स्टेशन जो आस-पास की कम्युनिटी को मिलाकर समाज के विकास के लिए प्रोग्रामिंग करे जिसमें वहीं के आम लोगों की भागीदारी हो, रेडियो जाकी, रिसर्चर या स्क्रिप्ट राइटर उसी शहर के लड़के-लड़की या महिला-पुरुष हों कम्युनिकेशन का यह माध्यम इसलिए और प्रभावशाली हो जाता है क्योंकि लोकल लेवल पर तुरंत फीडबैक मिल जाता है और लोगों के साथ जुड़ाव भी ज्यादा रहता है।

शहर में रेडियो स्टेशन खुलने से यहां के बच्चों को खघ्ुद को साबित करने का अच्छा अवसर मिला जो बच्चे फिल्म या पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं उनके लिए रेडियो मयूर अच्छा विकल्प है या जो लड़कियां घर से बाहर बोलने में झिझकती थी, रेडियो पर अपनी आवाज को पहचान बना ली है इस संदर्भ में अभिषेक कहते हैं, यहां लड़कियां बहुत प्रतिभावान हैं लेकिन अपना निर्णय नहीं ले पाती हैं। हमारा उद्देश्य है कि हम उन्हें निर्भीक बनाएं ताकि वह अपना करियर खुद चुन सकें। अच्छा लगता है जब लड़कियां यहां से सीखकर बाहर जाती हैं और रेडियो के क्षेत्र में आगे की पढ़ाई या बेहतर जाब करती हैं रेडियो स्टेशन में काम कर चुकी जयश्री कहती हैं रेडियो मयूर छपरा जैसे छोटे शहर में हम जैसी लड़कियों को एक सपना दिखाने आया खुद अपनी बात करूं तो वहां जाना किसी सपने का सच होने जैसा रहा मैंने साल 2017 से 2018 के बीच रेडियो मयूर में काम किया वहां जाने से जो सबसे ज्यादा फायदा हुआ वो था मेरे शब्दों के प्रयोग और बोलने की शैली में सुधार मैं वहां श्गुड मार्निंग छपराश् और दोपहर गपशप इन दो शो का हिस्सा थी। पब्लिक स्पीकिंग और अपने आप को एक अलग तरह से प्रेजेंट करना मैंने रेडियो मयूर जा कर ही सीखा है आज भी वहां के अनुभव मेरे जीवन में काम आ रहे हैं।

चार साल से काम कर रही नेहा कहती हैं, मैंने 2017 में रेडियो मयूर ज्वाइन किया था। तब मैं पुराने रेडियो जाकी को सुन कर गयी थी मेरा बचपन से शौक था, रेडियो पर बोलने का। जब अपने शहर में मुझे मौका मिला तो मैंने इंटरव्यू दिया मेरा सिलेक्शन भी हो गया आज मुझे यहां काम करते 3 साल से ज्यादा हो गए हैं, यह काफी अच्छा अनुभव है मैंने सबसे पहले दोपहर गपशप, जो कि एक लाइव प्रोग्राम होता था वो करना शुरू किया फिर जैसे-जैसे टाइम बीता, मुझे मार्निंग लाइव शो भी मिला। मुझे रेडियो मयूर में काम करके कान्फिडेंस के साथ खुद को लोगों के सामने एक बेहतर इंसान के रूप में पेश करने का भी मौका मिला हैष् कोविड महामारी के दौरान जब प्रत्येक व्यक्ति मानसिक तनाव में था, तब रेडियो मयूर ने अपने स्तर से लोगों को जानकारी देने और जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम किये। टीकाकरण जागरूकता का भी संदेश दिया. इस विषय पर अभिषेक बताते हैं, ष्एक महिला श्रोता ने फोन पर हमें बताया कि उनके घर के पुरुष सदस्य वैक्सीन लेने से मना कर रहे तब हमने उन्हें समझाया, टीका लेते समय की अपनी फोटो दिखाई और आश्वस्त किया कि टीकाकरण में कोई नुकसान नहीं है कोविड जागरूकता के लिए हेल्थ मिनिस्ट्री ने भी रेडियो मयूर की सराहना की।

हम अक्सर गांव और छोटे शहरों में सुख सुविधा न होने की शिकायत करते हैं लेकिन उसे दूर करने की कोशिश कभी नहीं करते और अगर कोई बदलाव के लिए कदम उठाता है, तो हम उसका पैर खींचने से भी पीछे नहीं रहते। अभिषेक के लिए भी यह सब आसान नहीं था जब इन्होंने रेडियो स्टेशन शुरू किया तब अक्सर ही लोग पूछ बैठते थे, ष्रेडियो चलाते हो, ठीक है और क्या करते हो कुछ सोचे हो। लेकिन अच्छी बात यह है कि अभिषेक को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा। अभिषेक के लिए करियर का मतलब केवल पैसा कमाना ही नहीं है बल्कि यह उनका शौक और जुनून है। सामुदायिक रेडियो के माध्यम से आज उनका यही जुनून न केवल नौजवानों को स्थानीय स्तर पर करियर प्रदान करने में मदद कर रहा है बल्कि समाज को दिशा दिखाने का काम भी कर रहा है। (चरखा फीचर)