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प्रेम, भावनाओं से वशीभूत दलीलें कानूनी बहस नहीं हो सकती’

नयी दिल्ली उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि भावनाओं और प्रेम के वशीभूत होकर दी गयी दलीलें कानूनी बहस का हिस्सा नहीं हो सकती। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने जाने-माने वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ करीब 11 साल पुराने अदालत की अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी उस वक्त की, जब पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने खुद को मामले में पक्षकार बनाने संबंधी अर्जी पर विचार करने का अनुरोध किया।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “मिस्टर (शांति) भूषण आप इतने वरिष्ठ हैं कि आपको इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता। हम नहीं चाहते कि आपको कोई असुविधा हो।’’
सीनियर भूषण ने कहा कि उनकी वादकालीन याचिका को विस्तृत तौर पर सुना जाना चाहिए और उन्हें मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “आपकी अर्जी यह कहती है कि प्रतिवादी संख्या-1 आपका बेटा है और यदि वह दोषी पाया जायेगा तो आप उसके बदले जेल जाने को इच्छुक हैं। यह कानूनी जिरह नहीं है, जिसे हम सुनेंगे। प्यार और भावनाओं के वशीभूत होकर की गयी जिरह कानूनी बहस नहीं हो सकती।” गौरतलब है कि न्यायालय आज जूनियर भूषण के खिलाफ 11 साल पुराने अदालत की अवमानना के एक मामले की सुनवाई कर रहा था। न्यायालय ने प्रतिवादियों के आग्रह पर सुनवाई के लिए चार अगस्त की तारीख मुकर्रर की है।