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Positive Aspects of New National Education Policy 2020

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के सकारात्मक पहलू

विगत सप्ताह केन्द्र सरकार द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 घोषित कर दी गई। मानव संसाधन मंत्रालय के अनुसार नई शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्र के समग्र विकास के लिए छात्रों के बौद्धिक, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक और नैतिक सभी क्षमताओं को एकीकृत रूप में विकसित करना है। स्कूली शिक्षा की पढ़ाई 5़3़3़4 पैटर्न पर आधारित होगी। इस तारतम्य में 3 वर्ष से 15 वर्ष तक की आयु के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो जाएगा। प्रत्येक छात्र की क्षमताओं को बढ़ावा देना नई शिक्षा नीति की प्राथमिकता होगी। स्कूल में छात्रों की वैचारिक समझ, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा दिया जाएगा। सभी बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का समान अवसर दिया जाएगा। प्रारंभिक स्कूली शिक्षा का माध्यम बच्चों की मातृभाषा होगी। 10वीं और 12वीं की बोर्ड की परीक्षा जारी रखी जाएगी किंतु इसको आसान बनाया जाएगा जिससे छात्र और अभिभावक तनावरहित रहें। जहां तक उच्च शिक्षा का सवाल है, शिक्षा नीति के मसौदे के अनुसार उच्च शिक्षा के लिए बनाए गए सभी तरह के डीम्ड और संबंधित विश्वविद्यालय केवल विश्वविद्यालय के रूप में जाने जाएंगे। संस्थानों के पास ओपन डिस्टेंस लर्निंग और ऑनलाइन कार्यक्रमों को चलाने का विकल्प होगा। 2030 तक हर जिले में या उसके पास कम से कम एक बड़ा बहुविषयक उच्च शिक्षण संस्थान होगा। 2040 तक सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को बहुविषयक संस्थान बनाना होगा जिसमें 3000 से अधिक छात्र होंगे। नई शिक्षा नीति में संगीत, दर्शन, कला, नृत्य, रंगमंच ये सब उच्च शिक्षण संस्थानों के पाठयक्रम में शामिल होंगे। 2050 तक स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50 प्रतिशत शिक्षार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा में शामिल होना होगा। गुणवत्ता योग्यता अनुसंधान के लिए सारे विश्वविद्यालयों के लिए एक नया राष्ट्रीय शोध संस्थान बनेगा।

उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए एक कॉमन एन्ट्रेंस टेस्ट होगा। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों को मल्टीपल प्रवेश एवं एक्जिट प्रणाली की सुविधा रहेगी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए शिक्षाविद् डॉ. के. कस्तूरीरंजन की अध्यक्षता में गठित 8 सदस्यीय समिति ने 26 जनवरी, 2019 से 31 अक्टूबर, 2019 की लगभग 9 महीने की अवधि में शिक्षाविदों के साथ-साथ सभी वर्ग से जुड़े व्यक्तियों से व्यापक स्तर पर सुझाव एकत्रित किए एवं परामर्श किया।मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के अनुसार यह विश्व की सबसे लंबी परामर्श प्रक्रिया थी, समिति को 10 लाख से अधिक सुझाव प्राप्त हुए। पिछले साल हर राज्य के शिक्षण संस्थानों में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति कैसी हो- इस विषय पर सेमीनार और कार्यशालाओं का आयोजन होता रहा था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अंग्रेजी में रिपोर्ट 66 पृष्ठों व हिन्दी रिपोर्ट 117 पृष्ठो की है।नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही पक्ष हैं। मैं यहां केवल सकारात्मक पहलुओं पर ही चर्चा केन्द्रित करना चाहता हूं। मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर पुनरू शिक्षा मंत्रालय किए जाने, जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय तथा शिक्षकों की नियुक्ति हेतु मानक तैयार करने के लिए सामान्य शिक्षा परिषद के तहत एक प्रोफेशनल स्टैंडर्ड सेटिंग बॉडी बनाए जाने का सभी शिक्षाविदों ने स्वागत किया है। मेरी राय में पीएचडी करने के लिए एम.फिल. की अनिवार्यता समाप्त किया जाना स्वागत योग्य कदम है।नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षण सस्ंथान में सफलतापूवर्क एक साल पूरा करने पर प्रमाणपत्र, दो वर्ष पूरा करने पर डिप्लोमा तथा 3 वर्ष पूरा करने पर स्नातक डिग्री की पात्रता हो जाएगी। इससे छात्रों का किसी विषय के अध्ययन के लिए लगा समय बर्बाद नहीं होगा।

वर्तमान में सभी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में एक वर्ष का मास्टर ऑफ लॉ पाठयक्रम सफलतापूर्वक चलाया जा रहा। इस परिप्रेक्ष्य में सामाजिक विज्ञान, साहित्य एवं विज्ञान सरीखे अन्य विषयों में भी दो वर्ष के स्थान पर एक वर्ष का स्नातकोत्तर पाठयक्रम की व्यवस्था भी स्वागत योग्य है। मेरी राय में स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में इस नीति की सबसे बड़ी विशेषता 3 साल से 6 साल के आयु के बच्चों की शिक्षा का औपचारीकरण है। अब पूर्व प्राथमिक शिक्षा भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अधिकार के दायरे में आ जाएगी। अब इस आयु वर्ग के बच्चों को भी मध्यान्ह भोजन लेने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा, जिसकी व्यवस्था सरकार को करनी है। 3 से 6 वर्ष की आयु बच्चों के मानसिक विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होती है।बच्चों को खेल-खेल में औपचारिक शिक्षा में कुछ नया करने की सीख, खोज व कुछ नया रचनात्मक करने की ललक, को बढ़ावा देने के साथ-साथ सदाचार, सदव्यवहार, शिष्टाचार, भाईचारा तथा एक दूसरे की मदद करने के संस्कार यहीं पर विकसित किए जा सकते हैं । हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आपस में सब हैं भाई-भाई इसलिए सभी के आराध्यदेव को यथोचित सम्मान देने के नैतिक मूल्य यहीं पर विकसित करता है। मेरा तो ऐसा मानना है कि संभव हो तो बच्चों के अभिभावकों की संलग्नता भी बहुत जरूरी है जिससे कि बच्चों को सद्गुणों और सद्व्यवहार के संस्कार उनके उनके घरों पर भी प्राप्त होते रहें। सरकार की अन्य दीर्घकालीन नीतियों के समान नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भी आगे आने वाले दिनों की शिक्षा के विकास व दिशा का रोड मैप कहा जा सकता है जो प्रारंभ के बिन्दु से गंतव्य स्थल तक की संरचना व दूरी दर्शाती है। इसको आगामी शिक्षा रूपी भवन की ढांचे की डिजाइन भी कहा जा सकता है। दूसरे चरण में नई नीति को क्रियान्वयन के लिए अधिनियम बनाना जरूरी होगा।खासकर यदि 3 साल से 6 साल के आयु वर्ग के बच्चों की पूर्व-प्रारंभिक शिक्षा के औपचारीकरण लिए यह बहुत जरूरी है। मेरा ऐसा आकलन है कि मध्यान्ह भोजन, निरूशुल्क खेल-खेल में शिक्षा की पाठ्य सामग्री, यूनीफार्म, पर सरकार का खर्च इतना हो जाएगा कि सरकार का शिक्षा पर व्यय जीडीपी का 5 प्रतिशत के समकक्ष आसानी से हो जाएगा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अधिनियम बन जाने के बाद उसका क्रियान्वयन बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे देश में यह अनुभव रहा है कि आमतौर पर सरकारी नीतियों पर आधारित कार्य योजनाओं के क्रियान्वयन कमजोर होने से अपेक्षित परिणाम नहीं प्राप्त हो पाते। इसके लिए यह जरूरी है कि गैर-सरकारी संगठन व सिविल सोसाइटी संगठन सभी स्तरों मॉनिटरिंग में हिस्सा लें और नीतियों पर आधारित कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर ध्यान रखें।