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दलित वर्ग के दूल्हों

दलित वर्ग के दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने की अनुमति नहीं !!

राजस्थानः फूलों की बौछार के बीच घोड़ी पर सवार 24 वर्षीय दूल्हे मनोज बैरवा के चेहरे पर मुस्कान थी, हों भी क्यों न 30 साल बाद पहली बार उसके समुदाय के लोगों की बारात घोड़ी पर सवार होकर निकल रही थी। दरअसल, ऑपरेशन समानता के तहत बुधवार को नीम का खेड़ा गांव की संकरी गलियों में शान-ओ-शौकत के साथ दलित की बारात निकली। इस बारात ने सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ते हुए कुरीतियों का अंत किया, जिसमें दलित वर्ग के दूल्हों को अपने विवाह समारोह में घोड़ी पर चढ़ने की अनुमति नहीं थी।

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तीन दशक पहले मनोज बैरवा के चाचा से उसी गांव में ऊंची जाति के पुरुषों ने इसलिए मारपीट की थी क्योंकि वह अनुसूचित जाति वर्ग से थे और उन्होंने अपनी शादी के दिन घोड़ी की सवारी करने की हिम्मत दिखाई थी।

अधिकारियों का कहना है कि शादी एक पखवाड़े पहले जिले में शुरू किए गए ‘ऑपरेशन समानता’ के तहत आयोजित की गई थी, जिसका उद्देश्य दलित समुदाय के बीच विश्वास पैदा करना और उच्च जाति बहुल गांवों में शादी में दलित वर्ग के दूल्हों को घोड़ी चढ़ने की अनुमति नहीं देने जैसी कुरीतियों को खत्म करना था।

उन्होंने बताया कि पहल के तहत जिले में अब तक 15 विवाह समारोह हो चुके हैं और इस कदम का सवर्ण समुदाय ने स्वागत किया है। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बैरवा ने कहा कि वह शादी में घोड़ी पर चढ़ने के लिए उत्साहित थे और ग्रामीणों ने उन्हें माला पहनाई और मिठाई के साथ बधाई दी।