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जन शक्ति

जन शक्ति से जल शक्ति की मिसाल है मूंडवा गांव

दिलीप बीदावत, बीकानेर, राजस्थान, नागौर से 22 किलोमीटर दूर मूंडवा कस्बा आधुनिक विकास और पारंपरिक व्यवस्थाओं के बीच सामंजस्य के साथ विकसित हो रहा है कस्बे के पास एक सीमेंट का प्लांट निर्माणाधीन है, जिससे मूंडवा ही नहीं, आस-पास के कई गांवों की आबोहवा बदलने वाली है लेकिन वर्तमान में मूंडवा तथा आस-पास के गांवों के लोग न केवल पारंपरिक जल संसाधनों के रख-रखाव से प्रकृति का पोषण करने के अपने मानवीय कर्तव्य को जीवन में समाहित किए हुए हैं बल्कि पुरातन काल से आज तक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलावों से अपनी परंपराओं को बचाकर रखे हुए हैं गांव के निवासी रामनिवास मुंडेल के अनुसार मूंडवा कस्बा मुंडेल जाट समुदाय ने बसाया था पूर्व में मंडोर (जोधपुर) इसकी की राजधानी हुआ करती थी जब राजनीतिक व्यवस्था बदली और जोधपुर में राजपूतों की सत्ता स्थापित हुई, तब मुंडेल जाति के लोगों को बसने तथा कृषि एवं पशुपालन से जीविकोपार्जन के लिए मूंडवा का क्षेत्र दिया गया।

मंडोर से विस्थापित होकर वर्तमान मूंडवा कस्बा बसाया गया उस समय पीने के पानी का संकट यहां की प्रमुख समस्या थी भूजल गहरा तथा अत्यंत खारा था बरसात के पानी को सहेजने के लिए छोटे-छोटे नाले और तलाइयां बनाई गयी जिनमें से आज कुछ विशाल तालाब का रूप ले चुके हैं कस्बे के बीच बने पोखंडी व लाखा तालाब न केवल कस्बे की पेयजल पूर्ति के संसाधन है, बल्कि इनके आगौर में वृक्षों की हरियाली वातावरण को शुद्ध करती है यह समुदाय और नगरपालिका की उन्नत प्रबंधन व्यवस्था का कमाल है, कि कस्बे के बीच होने के बावजूद दोनों तालाब स्वच्छ, सुंदर और रमणीय स्थल बने हुए हैं तालाबों की सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन व्यवस्था जन शक्ति से जल शक्ति का आदर्श माडल देखना है, तो मूंडवा जरूर आना चाहिए।

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मूंडवा के पर्यावरणविद रामनिवास प्रजापत ने बताया कि जन शक्ति से लाखा तालाब लाखा बंजारे द्वारा खुदवाया गया था। लाखा बंजारा बैलों व मानव संसाधनों के काफिले के साथ देश भर में व्यापार करता था रियासत काल में लाखा बंजारे की कहानियां सुनने की मिलती है कहा जाता है कि उस जमाने में वह लखपती हुआ करता था, इस लिए उसका नाम लाखा बंजारा पड़ा था काफिला बड़ा हुआ करता था तथा देश के इस कोने से उस कोने तक बैलों पर सामान लाद कर परिवहन करते थे रेगिस्तान में पानी की तंगी थी, लेकिन यहां का नमक, घी, कैर, सांगरी जैसी वस्तुओं को दूसरे क्षेत्रों में पहुंचाने तथा अन्य क्षेत्रों से नारियल, चीनी, कपड़े, गहने आदि यहां तक लाने के लिए रेगिस्तान से भी काफिला गुजरता था जहां पड़ाव डालते थे, वहां तालाब, बावडि़यों, बेरियों का निर्माण कराते जाते थे।

जन शक्ति से जल शक्ति

लाखा बंजारा ने मूंडवा में तालाब खुदवाया बाद में दानी सेठ-साहूकारों व समुदाय ने इसे तालाब का रूप दिया तालाब पक्का कराया घाट, गुंबद आदि बनाये आगौर का पानी तालाब तक लाने के लिए नहरों, नालों का निर्माण कराया गया। साल दर साल तालाब निखरता गया और आज भी अपनी सुंदरता लिए है पोखंडी तालाब कभी पत्थर की खदान हुआ करती थी। पत्थर खोद कर लोग ले गये, तथा गहरा गड्ढा हो गया मूंडवा के सेठ साहूकारों को जंची कि इसे तालाब बनाते हैं तालाब बनाना पुण्य का काम माना जाता था उन्होंने धन खर्च किया और सुंदर तालाब बना दिया इस तालाब के किनारे भी मंदिर व सुंदर बाग बनाये जबकि नगरपालिका ने दोनों तालाबों के किनारे बाग-बगीचे लगाए, प्रातः एवं सायंकाल में लोगों के भ्रमण हेतु भ्रमण पथ, विश्राम के लिए कुर्सियां आदि लगाएं रात्रि में प्रकाश की व्यवस्था की सफाई व देखभाल के लिए कर्मचारी लगाए हुए हैं।

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जन शक्ति से सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष कंदोई बताते हैं कि तालाबों का प्रबंधन हमारी परंपरा रही है पुरखों ने हमें यह संसाधन और इनको उपयोगी बनाए रखने का ज्ञान दिया है, जिसका निर्वाह करना गांव-बस्ती का कर्तव्य है पीढ़ी दर पीढ़ी हम इस कर्तव्य को निभा रहे हैं आईदान राम मुंडेल और सीताराम चौधरी के नेतृत्व में लोग तालाबों की देखभाल करते हैं, वहीं नगरपालिका तालाबों का सौंदर्यीकरण, लाइटिंग और सफाई की व्यवस्था में योगदान करती है साल में एक बार पूरा गांव श्रमदान करता है तथा तालाब, आगौर व नाले-नहरों की सफाई करते हैं कार्तिक पूर्णिमा को रात्रि में दीपदान होता है, उस समय देखने लायक दृश्य होता है भ्रमण व टहलने के लिए आने वाले लोग भी तालाब किनारे व आगौर में कचरा, प्लास्टिक देखते हैं, स्वयं तो उठाकर कूड़ादान में डालते हैं धार्मिक आस्था, पेयजल की व्यवस्था और प्रकृति से लगाव के कारण तालाबों की देखभाल करना प्रत्येक नागरिक अपना कर्तव्य समझता है, इसीलिए पारंपरिक जल स्रोतों की यह सुंदर व्यवस्था बनी हुई है रामनिवास मुंडेल बताते हैं कि यह काम क्षेत्र के हिंदू-मुस्लिम सभी मिलकर करते हैं मान्यता है कि क्षेत्र में डाकुओं का आतंक होने के बावजूद वह मूंडवा को लूटने नहीं आते थे स्थानीय भाषा में कहावत थी ‘मूंडवा धरम री पाळ, जिणसूं घोड़ा अळगा टाळ’ तालाब की प्रबंधन व्यवस्था के लिए समुदाय द्वारा बनाये गये नियमों का सभी को पालन करना होता है।

नियम तोड़ने वालों पर सामाजिक दंड का प्रावधान है कस्बे के बीच होने केे बावजूद आगौर में शौच करना या कूड़ा डालना मना है स्नान करना, कपड़े धोना तो, दूर हाथ-मुंह धोने तक की मनाही है ट्रैक्टर, टेंकर या ऊंट गाड़ा टंकी भरने वाले टायर पानी में नहीं डूबोयेंगे, बाहर से ही पानी भरना है तालाब में पानी कम होने लगता है, तब टैंकर भरना बंद कर दिया जाता है जिन गरीब परिवारों के पास पानी भंडारण का साधन नहीं है उनके लिए तथा पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं के लिए पानी सुरक्षित रखा जाता है यह नियम और परंपरा सदियों से चले आ रहे हैं जरूरत पड़ने पर गांव की सभा में नये नियम भी बनाए जाते हैं।

नागौर जिले के कुछ गांवों में पारंपरिक जल स्रोतों का समुदाय द्वारा संरक्षण, देखभाल की व्यवस्था आज के समय की अनोखी मिसाल है एक तरफ जल शक्ति को नल के जल में देखा जा रहा है, वहीं नागौर जिले गांवों जन शक्ति से पारंपरिक जल स्रोतों में जल शक्ति को देख रहे हैं घरों में नल से पानी की सप्लाई आने के बावजूद मूंडवा कस्बे के लोग इन तालाबों का पानी भरना ज्यादा पसंद करते हैं पणिहारियां आज भी तालाब के घाट पर बतियाती हुई दिखती हैं सवाल यही है कि आधुनिक विकास में जनशक्ति से जल शक्ति को कितनी जगह मिलती है? चिंता की बात तो यह है कि विकास के नाम पर जिस सीमेंट प्लांट को स्थापित किया जा रहा है, उसमें सीमेंट उत्पादन के लिए होने वाले लाइमस्टोन खनन से कई गांवों के तालाबों का अस्तित्व मिटने का खतरा पैदा हो गया है। (चरखा फीचर)