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कोरोना संकट में तिब्बती घरों में मनाएंगे लोसर

 

शिमला। कोरोना के चलते तिब्बतियों ने अपने घरों में लोसर यानि नया साल मनाने का निर्णय लिया है।

धर्मशाला स्थित मक्लोड़गंज स्थित तिब्बतियों के उच्चाधिकारियों ने सहमति बनाई है कि फरवरी माह में मनाए जाने वाले नववर्ष लोसर पर आयोजित होने वाले सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए है और तिब्बती अपने घरों के भीतर इसे अपने-अपने तरीके से मना सकते हैं।

लोसर तिब्बतियों का प्रमुख पर्व है।

इसको मनाने वाले अरुणाचल प्रदेश से नेपाल होते हुए उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की उत्तरी सीमाओं में बसे है।

उल्लेखनीय है कि तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा जनवरी के अंत तक अपने मैक्लोडगंज स्थित पैलेस में ही रहेंगे, यानी इस अवधि में वह किसी से नहीं मिलेंगे।

बौद्ध संवत् के अनुसार वर्ष के पहले माह की पहली तिथि को मनाया जाता है।

तिब्बती कैलेंडर के अनुसार भी यह वर्ष के पहले महीने का पहला दिन होता है।

विश्व में जहां कहीं भी बौद्ध लोग बसे हुए हैं, वहां यह पर्व मनाया जाता है।

लोसर का अर्थ नया साल होता है।

लोसर का इतिहास बताता है कि यह तिब्बत के नवें काजा पयूड गंगयाल के समय वार्षिक बौद्धिक त्योहार के रूप में मनाया गया पर एक अंतराल लेकर यह पारंपरिक फसली त्योहार में बदल गया।

वह एक ऐसा दौर था जब तिब्बत में खेत की जुताई की कला विकसित हुई साथ ही सिंचाई व्यवस्था और पुलों का विकास भी हुआ।

बाद में लोसर को ज्योतिषीय आधार देकर इसे नव वर्ष के रूप में मनाया जाने लगा।

यह त्योहार पचैद का स्टेग के शुरू में मनाया जाता है।

मूलतः यह तिब्बती समुदाय का प्रमुख धार्मिक उत्सव है जिसे ये लोग उसी उल्लास से मनाते हैं जैसे हिंदुओं मंउ दीपावली या होली का पर्व मनाया जाता है।

तिब्बत में लोसर बौद्ध धर्म के आरंभिक काल से मनाया जाता रहा है।

पहले इस उत्सव को देवी-देवता तथा भूत-प्रेतों को खुश करने के लिए मनाते थे, पर अब यह इनका नववर्ष है।

तिब्बतियों में एक आम कहावत है लोसर इज लेसर जिसका अर्थ है नया साल नया काम।

इस पर्व के मुख्य व्यंजनों में ताजा जौ का सत्तू, फेईमार ग्रोमां, ब्राससिल, लोफूड तथा छांग हैं।

इस दिन घरों की साफ सफाई करते हैं तथा रंगरोगन कर घरों को सजाते हैं।

त्योहार के दिन नए कपड़े पहन कर लोग इस पर्व को मनाते हैं खास कर बच्चों के लिए अवश्य नए कपड़े बनते हैं।

रसोई की दीवारों पर एक या आठ शुभ प्रतीक बनाए जाते हैं तथा घरेलू बर्तनों के मुंह ऊन के धागों से बांध दिए जाते हैं।