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किसान आंदोलन जल्द खत्म होने के आसार नहीं, पांच दिसंबर को अंतिम फैसला संभव

नई दिल्ली, एजेन्सी। बीते दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन के जल्द खत्‍म होने के संकेत नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो विज्ञान भवन में गुरुवार को केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच चौथे दौर की लंबी चली वार्ता में पहली बार दोनों पक्षों के बीच विवादित मसलों पर सहमति बन गई है। केंद्र सरकार ने लचीला रुख अपनाते हुए किसान संगठनों की सभी प्रमुख मांगों पर विचार करने का भरोसा दिया है। माना जा रहा है कि सरकार कानूनों में संशोधनों पर विचार करने को तैयार हो गई है। अब चिन्हित सभी प्रमुख मसलों पर शनिवार को फिर दोनों पक्षों को बीच बैठक होगी, जिसमें निर्णायक फैसला हो सकता है।

सूत्र बताते हैं कि विज्ञान भवन में चौथे दौर की गुरुवार को बैठक के शुरुआती दो घंटे तनातनी वाले थे। किसान नेता अपनी बातों पर अड़े थे। हालात इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि किसान नेताओं ने सरकारी चाय तक लेने से मना कर दिया। उन्‍होंने अपने साथ लाई चाय पी। हालांकि ज्यों ही कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एपीएमसी पर अपनी चर्चा में लचीला रुख अपनाया माहौल बदल गया। सरकार की तरफ से तीनों मंत्रियों ने जोर देकर कहा कि न सिर्फ एपीएमसी को मजबूत बनाया जाएगा वरन उसके दायरे में ज्यादा से ज्यादा किसानों को भी शामिल किया जाएगा।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि बैठक में किसानों की चिंता वाले बिंदुओं को चिन्हित कर लिया गया है। सरकार उनके समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार सभी मसलों पर खुले मन से विचार कर रही है। नये कानून से कृषि उत्पाद विपणन समिति के अस्तित्व पर किसान नेताओं से खतरे की आशंका जताई है। तोमर ने कहा कि नए कानून में मंडी की सीमा से बाहर प्राइवेट मंडियां आएंगी। दोनों प्रकार की मंडियों में समानता लाने पर सरकार विचार करेगी। बाहर कारोबार करने वालों के रजिस्ट्रेशन और पैन कार्ड पर कारोबार करने की छूट पर भी विचार किया जाएगा।

किसान नेताओं ने कहा कि नए कानून के लागू करने में उठने वाले विवाद की सुनवाई एसडीएम की जगह किसी जिला स्तरीय कोर्ट में होनी चाहिए। सरकार ने इस पर विचार करने का आश्वासन दिया है। इसके अलावा नए कानूनों में छोटे किसानों की जमीन अथवा उसके हितों की सुरक्षा को किसान नेताओं ने जोर शोर से उठाया। इस मुद्दे पर सरकार ने बताया कि वैसे तो कानून में इसकी पुख्ता व्यवस्था की गई है लेकिन इस तरह आशंका पर सरकार गंभीरता से विचार करेगी।

किसानों की सबसे बड़ी आशंका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर थी जिस पर सरकार ने जोर देकर कहा कि एमएसपी चल रही है, चलेगी और चलती रहेगी। किसानों की ओर से पराली अध्यादेश और विद्युत अधिनियम का मुद्दा उठाया गया, जिस पर चर्चा भी हुई। सरकार ने इस पर विचार करने का आश्वासन दिया। किसान नेता हरजिंदर सिंह टांडा ने बताया कि अगले दौर की बैठक में हम कानून को वापस लेने का दबाव बनाएंगे। अगली बैठक में फैसले की पूरी उम्मीद है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने आज गुरुवार को किसानों के साथ हुई बातचीत के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि किसान यूनियन के नेताओं के साथ सरकार के चौथे चरण की चर्चा सकारात्‍मक रही। किसान यूनियन और सरकार दोनों ने ही अपनी बातें रखीं। किसान नेताओं ने बहुत सही और सटीकता से अपने विषयों को रखा है। इसमें जो बिंदु निकले हैं उन पर हम सब लोगों की लगभग सहमति बन गई है। अब पांच दिसंबर को बैठक में सहमति को निर्णायक स्‍तर पर आगे बढ़ाएंगे।

तोमर ने कहा कि किसान यूनियन और किसानों की चिंता है कि नए कृषि कानूनों से मं‍डी समितियां खत्म हो जाएंगी। किसानों की यह चिंता दूर करने के लिए सरकार इस बात पर विचार करेगी कि कैसे मं‍डी समितियां सशक्त हों और इनका उपयोग और बढ़ाया जाए। किसान संगठनों की पराली के मसले में एक अध्यादेश पर शंका है। यही नहीं विद्युत एक्ट पर भी उनकी शंका है। इसपर भी सरकार बातचीत करने को तैयार है।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह भी कहा कि पांच दिसंबर को दोपहर में दो बजे यूनियन के साथ सरकार की मुलाकात फिर होगी तब हम किसी अंतिम निर्णय पर पहुंचेंगे। वहीं भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बताया कि सरकार ने एमएसपी पर सकारात्‍मक संकेत दिए हैं। सरकार बिलों में संशोधन चाहती है। आज बातचीत कुछ आगे बढ़ी है। हमारा आंदोलन जारी रहेगा। पांच दिसंबर को बैठक फिर से होगी।