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कहा- हमारा हित भी देखें, NSG में रास्ता रोकने वाले चीन को भारत की वॉर्निंग

नई दिल्ली. एनएसजी मेंबरशिप नहीं मिलने से नाराज भारत सरकार ने चीन को कड़ा मैसेज दिया है। फॉरेन मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन विकास स्वरूप ने रविवार को कहा- “हम चीन को यह बताना जारी रखेंगे कि बाइलैट्रल रिलेशन को आगे बढ़ाने के लिए एक-दूसरे के हितों, चिंताओं और प्राथमिकताओं का ख्याल रखा जाना जरूरी है।” कोऑपरेशन और रिलेशन दोतरफा प्रॉसेस हैं…
– विकास स्वरूप ने कहा कि, “मैं फेल्योर वर्ड का इस्तेमाल नहीं कर रहा हूं लेकिन यह सच है कि सिओल मीटिंग में हमें मनमुताबिक नतीजे नहीं मिले।”
– “लेकिन भारत फिर भी एनएसजी मेंबरशिप के लिए कोशिशें करना जारी रखेगा। चीन यह समझे कि कोऑपरेशन और रिलेशन दोतरफा प्रॉसेस हैं।”
– स्वरूप ने चीन से न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप ​(एनएसजी) में भारत की मेंबरशिप के दावे में अड़चन डालने के लिए एनपीटी का इस्तेमाल नहीं करने की अपील की।
– साथ ही कहा कि, “एनपीटी का एग्जीक्यूशन और उस पर इम्प्लिमेन्टेशन दो अलग मामले हैं।”
– “भारत ने एनपीटी साइन किए बिना ही उसकी सभी शर्तों को लागू किया है और एनएसजी ने 2008 में इस बात को मानते हुए भारत को अहम छूट दी थी।”
भरोसा है कि हासिल कर लेंगे मेंबरशिप
– स्वरूप ने कहा- एनएसजी में शामिल होने की शुरुआती कोशिश में अड़ंगा लगने के बावजूद हमें पूरा भरोसा है कि इसकी मेंबरशिप हासिल कर लेंगे।
– “सिओल मीटिंग से हमें यह मैसेज मिला है कि हमें अपनी कोशिशों में और तेजी लानी होगी।”
– माना जा रहा है कि अब इसी साल दिसंबर में एनएसजी का स्पेशल प्लेनरी सेशन हो सकता है जिसमें गैर एनपीटी देशों को एनएसजी की मेंबरशिप पर फैसला किया जा सकता है।
डिप्लोमैसी लगातार चलने वाली प्रॉसेस
– विकास स्वरूप ने इंडियन डिप्लोमैसी के फेल होने से असहमति जताई और कहा कि डिप्लोमैसी लगातार चलने वाली प्रॉसेस है।
– कहा- “किसी भी इंटरनेशनल ग्रुप में शामिल होने के लिए सर्वसम्मति बनाने में वक्त लगता है।”
– “शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) और मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) को ही ले लें, भारत लंबी कोशिश के बाद इनमें एंट्री हासिल कर सका।”
एक को छोड़कर किसी ने भी विरोध नहीं किया
– स्वरूप ने कहा कि “सिओल में एनएसजी प्लेनरी मीटिंग में एक देश (चीन) को छोड़कर किसी ने भी हमारे दावे का विरोध नहीं किया।”
– “कुछ देशों ने प्रॉसीजर से जुड़ा मुद्दा उठाया था। अगर एक देश ने हमारे दावे का विरोध नहीं किया होता तो सिओल में ही फैसला हो जाता।”
मुद्दे पर विचार के लिए एंबेसडर अप्वाइंट
– भारत को एनएसजी मेंबरशिप मुद्दे पर अभी भी अमेरिका समेत कई देशों का सपोर्ट हासिल है।
– बताया जा रहा है कि सिओल में मैक्सिको के सुझाव का भी चीन ने विरोध किया था।
– इस बीच भारत की मेंबरशिप के मुद्दे पर विचार करने के लिए एनएसजी ने अर्जेंटीना के एंबेसडर राफेल ग्रोसी को अप्वाइंट किया है।
– एक अमेरिकी ऑफिशियल के मुताबिक, ‘हमें भरोसा है कि साल के अंत तक कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आएगा और भारत एनएसजी का मेंबर बन जाएगा।’
भारत के लिए मेंबरशिप क्यों है जरूरी?
– न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और यूरेनियम बिना किसी खास समझौते के हासिल होगी।
– न्यूक्लियर प्लान्ट्स से निकलने वाले कचरे को खत्म करने में भी एनएसजी मेंबर्स से मदद मिलेगी।
– साउथ एशिया में हम चीन की बराबरी पर आ जाएंगे।
क्या है NSG?
– एनएसजी यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप मई 1974 में भारत के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद बना था।
– इसमें 48 देश हैं। इनका मकसद न्यूक्लियर वेपन्स और उनके प्रोडक्शन में इस्तेमाल हो सकने वाली टेक्नीक, इक्विपमेंट और मटेरियल के एक्सपोर्ट को रोकना या कम करना है।
– 1994 में जारी एनएसजी गाइडलाइन्स के मुताबिक, कोई भी सिर्फ तभी ऐसे इक्विपमेंट के ट्रांसफर की परमिशन दे सकता है, जब उसे भरोसा हो कि इससे एटमी वेपन्स को बढ़ावा नहीं मिलेगा।
– एनएसजी के फैसलों के लिए सभी मेंबर्स का समर्थन जरूरी है। हर साल एक मीटिंग होती है।