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Malaysia And Turkey Supporting Pakistan On Article 370, Upcoming FATF Will Decide Their Fate
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इन दो दोस्तों की बदौलत गीदड़ भभकी दे रहे हैं इमरान

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के साथ मिल कर भारत की आलोचना करने वाला तुर्की अब खुले तौर पर पाक की मदद कर रहा है। वहीं तुर्की के साथ मलेशिया भी पाकिस्तान की हां में हां मिला रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के ‘इस्लाम पर हमले’ का खौफ दिखाने के बाद ये तीनों देश एक साथ आए हैं। वहीं कई दिनों से FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के छटपटा रहे पाकिस्तान को इन दोनों देशों का साथ फायदेमंद साबित हो सकता है।

जल्द शुरू करने वाले हैं इस्लामिक टीवी

हाल ही में इन तीनों देशों की एक बैठक हुई थी, जिसमें पाक प्रधानमंत्री इमरान खान, तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन, और मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने हिस्सा लिया था। न्यूयार्क में हाल ही में हुई यूनाइडेट नेशन जनरल असेंबली की 74वीं हिस्सा लेते हुए इमरान खान ने कहा कि तीनों देश मिल कर एक टीवी चैनल शुरू करने की योजना बना रहे हैं, ताकि इस्लाम के बारे में दुनियाभर में हो रही गलत व्याख्या की सही जानकारी दी जा सके।

पाक से अलग है तुर्की और मलेशिया की सोच

महासभा में बोलते हुए इमरान खान ने कहा कि अंग्रेजी में शुरू होने वाले इस चैनल में मुस्लिमों पर बनी फिल्मों और सीरीज दिखाई जाएंगी, ताकि दुनिया को इस्लामिक इतिहास के बारे में सही जानकारी दी जा सके। आश्चर्यजनक बात यह है कि प्रगतिशील देश होने के बावजूद तुर्की और मलेशिया दोनों ही देश पाकिस्तान के साथ दे रहे हैं, जबकि पाकिस्तान के साथ इनकी विचारधारा बिल्कुल भी मेल नहीं खाती है।

तुर्की ने पाक का किया था समर्थन

तुर्की ने हाल ही में कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन करते हुए भारत को भी आश्चर्य में डाल दिया था, हालांकि कश्मीर मसले पर तुर्की पहले भी पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब खुले तौर पर उसने पाकिस्तान का साथ दिया। तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तैयब एर्डोगन ने हदें पार करते हुए कश्मीर की तुलना फिलिस्तीन से कर डाली थी। तुर्की की राजधानी इस्तांबुल ऐसा शहर है, जो भौगोलिक रूप से यूरोप और एशिया में बसा है, और दोनों सभ्यताओं के बीच एक पुल का काम करता है।

युवा तुर्क की विचारधारा को छोड़ा पीछे

हालांकि तुर्की के संस्थापक और पूर्व सैन्य अधिकारी मुस्तफा कमाल अता तुर्क को कट्टर धार्मिक मुस्लिम इस्लाम का दुश्मन मानते थे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्क साम्राज्य के पतन के बाद मुस्तफा ने तुर्कियों की आजादी जंग लड़ी और 1923 में तुर्क गणराज्य का गठन किया और वह तुर्की के पहले राष्ट्रपति बने। वे ऐसे शासक थे, जिनके शासनकाल में तुर्की ने खूब उन्नति की और कट्टर इस्लामिक ओट्टोमन साम्राज्य को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में बदल दिया। उनका मानना था कि मौजूदा वक्त में अरबी सिद्धांतों को मानना तर्कसंगत नहीं है। जिसके चलते उन्हें युवा तुर्क भी कहा जाता था। आज भी भारत में प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, आधुनिक और तार्किक प्रकृति वाले कई युवा नेताओं को युवा तुर्क कहा जाता है।  

एर्डोगन की तानाशाहों से तुलना

वहीं कभी नरमपंथी इस्लामी दल एकेपी से ताल्लुक रखने वाले मौजूदा तुर्की राष्ट्रपति एर्डोगन कमाल अता तुर्क की कमालवाद विचारधारा को खत्म कर देश की धर्मनिरेपक्षता समाप्त करने में जुटे हुए हैं। तुर्की में एर्डोगन की तुलना सद्दाम हुसैन, बशर अल असाद और मुअम्मर गद्दाफी जैसे तानाशाहों से की जा रही है। एक तरफ तो एर्डोगन यूरोपीय यूनियन में शामिल होना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ तुर्की में ओट्टोमन साम्राज्य को स्थापित कर खुद को बड़े इस्लामिक लीडर के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं।

तुर्की, पाक को दे रहा जंगी जलपोत

वहीं पाकिस्तान खुद को समुद्री ताकत के तौर पर उभरना चाहता है, जिसमें तुर्की उसकी मदद कर रहा है। पाकिस्तान ने तुर्की से जुलाई 2018 में एक समझौता किया था, जिसके तहत तुर्की से MILGEM एडीए क्लास नेवीशिप दी जानी हैं, जिनका निर्माण भी शुरू हो गया है। 99 मीटर लंबी . ये शिप 2400 टन का भार संभाल सकती है। वहीं इनकी खासियत यह है कि एंटी-सबमरीन कॉम्बैट शिप है, जो रडार को भी धोखा दे सकता है। इनमें से दो शिप तुर्की में बनेंगे, जबकि दो शिप तकनीकी हस्तांतरण के तहत पाकिस्तान में बनाए जाएंगे। गौरतलब है कि तुर्की उन देशों में शामिल है, जिनके पास ताकतवर जंगी पोत बनाने की क्षमता है।

कट्टर हो रहा है मलेशिया  

वहीं मलेशिया की कहानी भी कुछ कुछ तुर्की जैसी ही है। तुर्की की तरह मलेशिया भी प्रगतिशील सोच वाला देश रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों से उनकी सोच कट्टरवादी होती जा रही है।  कश्मीर मसले पर भी मलेशिया ने पाकिस्तान का साथ दिया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधित करते हुए मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत पर आरोप लगाए थे।

जाकिर नाइक को दे रखी शरण  

वहीं भारत में विवादित मुस्लिम धर्मगुरू और इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक को शरण देने वाला भी मलेशिया ही है। 2016 से जाकिर नाइक मलेशिया में है और उसे वहां रहने की स्थाई अनुमति मिल चुकी है। भारत के लगातार अनुरोधों के बावजूद नाइक को भारत वापस भेजने में मलेशिया कोई रूचि नहीं ले रहा है। हाल ही में सितंबर में रूस में हुए पांचवे ईस्ट इकोनॉमिक फोरम में प्रधानमंत्री मोदी और मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के बीच मुलाकात हुई थी, जिस दौरान नाइक के भारत प्रत्यपर्ण को लेकर चर्चा हुई थी और उम्मीद जताई जा रही थी कि नाइक जल्द ही वापस आगा।

महातिर को कट्टर गठबंधन से खतरा

लेकिन महातिर ने भारत का दावा खारिज करते हुए कहा कि उनकी नाइक के संबंध में कोई चर्चा नहीं हुई है। असल में महातिर गठबंधन सरकार की अगुवाई कर रहे हैं, जिसने पहली बार यूनाईटेड मलय ऑर्गेनाइजेशन (यूएनएमओ) को पिछले चुनाव में मात दी थी। वहीं यूएनएमओ ने मलेशियन इस्लामिक पार्टी और कट्टरपंथी इस्लामिक पार्टियों के साथ गठबंधन कर स्थानीय चुनावों में जीत हासिल कर ली। जिससे महातिर सरकार टेंशन में है।महातिर की प्रगतिशील सोच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कभी उन्होंने स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा दिए जाने की निंदा की थी, लेकिन मलेशिया में बड़ी तेजी से कट्टरपंथी ताकतों वाले गठबंधन के उभरने के बाद उन्होंने सुधारवादी और उदारवादी विचारों को किनारे कर दिया है और यही वजह है कि नाइक का प्रत्यपर्ण संभव नहीं पा रहा है।

पाकिस्तान पर लटकी है एफएटीएफ की तलवार

वहीं पाकिस्तान के लिए इन दोनों का साथ उसे आने वाली मुसीबत से उबार सकता है, जो इस महीने के मध्य में आने वाली है। यानी कि मनी लॉंड्रिंग और टेरर फंडिंग को लेकर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक, जो इस महीने पेरिस में 13 से 18 अक्टूबर तक चलेगी। इसी बैठक में पाकिस्तान के भाग्य का फैसला होना है, जिसमें तय होगा कि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा जाए या नहीं।

इस लिस्ट से बाहर निकलने के लिए पाकिस्तान को 36 में से 15 वोट चाहिए। इस साल जून में हुई बैठक में पाकिस्तान चीन समेत इन दोनों देशों की मदद से ग्रे लिस्ट से बाहर रहने में सफल रहा, लेकिन पाकिस्तान को फिर से ग्रे लिस्ट में आने से रोकने में तीन सदस्य देशों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी, जिसमें चीन, तुर्की और मलेशिया मदद कर सकते हैं। इमरान खान की सबसे टेंशन किसी तरह से पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट होने से बचाना है।