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गांव में तोड़ते थे चूना पत्थर(चूना पत्थर)

संघर्ष की कहानी : आईएएस-आईपीएस बनने का ख्वाब लेकर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में लाखों एस्पिरेंट्स बैठते हैं. इसमें से कुछ हजार का सेलेक्शन होता है. लेकिन इनमें से भी कुछ एस्पिरेंट्स के स्ट्रगल की कहानियां ऐसी होती हैं, जिसे सुनकते ही उन्हें सेल्यूट करने को दिल करता है. ऐसी ही एक कहानी है दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल राम भजन कुमार की. राजस्थान के दौसा जिले के बापी के बापी में एक सितंबर 1988 को कन्हैया लाल कुम्हार और धापा देवी के घर जन्मे राम भजन कुमार ने ने गांव में चूना पत्थर तोड़ने से लेकर दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल बनने और फिर यूपीएससी परीक्षा क्रैक करने तक का सफर तय किया है.

राम भजन कुमार के संघर्ष की कहानी राजस्थान के दौसा जिले के बापी गांव से शुरू होती है. जहां वह साल 2003 तक चूना पत्थर (चूना पत्थर) तोड़ने का काम करते थे. इसके बदले उन्हें 25 टोकरी चूना पत्थर तोड़ने पर 10 रुपये मिलते थे. एक इंटरव्यू में राम भजन कुमार बताते हैं कि उनके पिताजी पहले शहर से आइसक्रीम लेकर खरीदकर गांव में बेचते थे. लेकिन इससे गुजारा नहीं हो पा रहा था तो बापी इंडस्ट्रियल एरिया में चूना पत्थर तोड़ने लगे. उस वक्त मेरी उम्र पांच-छह साल उम्र रही होगी. लेकिन साल 1998 में राम भजन कुमार के पिता को अस्थमा हो गया. कुछ समय बाद उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया. जिसके चलते उन्हें पत्थर तोड़ने का काम छोड़ना पड़ा. फिर राम भजन अपनी मां के साथ यह काम करने लगे

राम भजन कुमार दौसा के सरकारी कॉलेज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे. साल 2009 में वह सेकेंड ईयर में थे तो दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी मिल गई. इसके बाद वह साल 2022 में हेड कांस्टेबल बने. वर्तमान में वह साइबर पुलिस दिल्‍ली साउथ वेस्‍ट में कार्यरत हैं.

राम भजन कुमार ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी 2015 में शुरू की. उन्होंने यूपीएससी की तैयारी में काफी मेहनत की. लेकिन उन्हें बार-बार असफलता का सामना करना पड़ा. राम भजन कहते हैं कि यूपीएससी की तैयारी के दौरान मुझे किसी का मार्गदर्शन नहीं मिला. बार-बार फेल होने से ही सबक मिला कि एक ही विषय की बहुत सारी किताबें पढ़ना सही नहीं है. इसके बाद उन्होंने अपनी रणनीति बदली और उसका नतीजा रहा कि यूपीएससी 2022 में फाइनल सेलेक्शन हुआ.

स्कूल जाने के लिए नहीं होते थे नए कपड़े
राम भजन कुमार अपने बचपन के दिन याद करते हुए कहते हैं कि स्कूल जाने के लिए कपड़े नहीं होते थे. घर में जो फटा पुराना कपड़ा पहनते थे वही पहनकर स्कूल जाना पड़ता था. पूरा पैंट ही सिलाई से भरा होता था. हर जगह धागे टांके गए होते थे. बिजली नहीं थी तो ढिबरी की रोशनी में पढ़ाई करनी होती थी. खाने तक की किल्लत थी. यह भी पता नहीं था कि रोटी और सब्जी भी एक टाइम का खाना होता है. रोटी के साथ चटनी वगैरह बन गई मतलब खाना बन गया.

सरकारी नौकरी पाने वाले परिवार के पहले व्यक्ति

राम भजन कुमार अपने परिवार व्यक्ति थे जिन्हें सरकारी नौकरी मिली थी. साथ ही वह अपने गांव के पहले व्यक्ति हैं जिसने यूपीएससी एग्जाम क्रैक किया है. भजन राम कुमार की यूपीएससी रैंक के अनुसार उन्हें इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट सर्विस की पोस्ट मिली है. वह ट्रेनिंग के लिए कुछ दिन बाद ही लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी जाने वाले हैं.

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