स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक
उनके मन से भय को पूरी तरह से निकालने की कोशिश करें मासूम छोटे बच्चों को खुशनुमा ज्ञानवर्धक तथा प्रोत्साहन भरा दे माहौल दें !
जब कोई वैश्विक संकट खड़ा होता है तो लोगों का ध्यान मुख्यधारा में विवेचित विषय पर ही होता है। जबकि हो सकता है कि उसके अन्य परिणाम भी बेहद घातक साबित हो रहे हैं। कोरोना महामारी के संदर्भ में देखें तो कई वैश्विक अध्ययनों में पाया गया है कि इसका बच्चों की मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है शोधकर्ताओ का भी मानना है कि इसका बच्चों पर दोहरा प्रभाव पड़ रहा है। बीमारी का भय तो है ही, लॉकडाउन के कारण उनका स्कूल जाना बंद है व अपने दोस्तों से नहीं मिल पाते, बाल मनोवैज्ञानिको का कहना है कि खासतौर पर उन बच्चों पर चिंता का बोझ बढ़ गया है जो पहले ही निराशाजनक स्थितियों का सामना कर रहे हैं,बच्चे कहते हैं कि मुझे अपने साथ माता-पिता की भी चिंता है अगर हम बीमार पड़ गए तो उनका क्या होगा?बच्चों के सामने जिस तरह की चीजें लगातार चल रही हैं, उसमें उनके भीतर कोरोना संक्रमण को लेकर ऐसे विचार आना स्वाभाविक है। लेकिन हम सबको, खासकर बच्चों के माता-पिता और अभिभावकों को बच्चों के दिल-दिमाग से कोरोना के भय को निकालना होगा। बच्चो को टीवी में भय पैदा करने वाले या तनाव देने वाले समाचारों से दूर रखना चाहिए। उनके सामने कभी डरावनी या बीमारी या महामारी से भरी खौफनाक तस्वीर या नकारात्मकता से भरा वातावरण निर्मित नहीं करना चाहिए। बाल जिज्ञासा में कई प्रश्न चलते रहते हैं, जिनका जवाब देना माता-पिता के लिए कभी-कभी मुश्किल हो जाता है।बच्चों को जितना भी खुशनुमा, ज्ञानवर्धक ओर प्रोत्साहन भरा माहौल दे सकते हैं, देना चाहिए।
इसमें कोई दो मत नहीं कि बच्चों की मानसिकता परिवार में मौत और आर्थिक स्थिति से बुरी तरह प्रभावित होती हैं। यह दोहरा बोझ, यानी बीमारी का भय और माता-पिता की स्थिति उन्हें अवसाद और चिंता का शिकार बना देती है। इसलिए हमें अपने उत्तरदायित्वों का सकारात्मक रूप से निर्वहन करके बच्चों का आत्मविश्वास मजबूत बनाने और उनके मन से भय पूरी तरह से निकालने की कोशिश लगातार करनी चाहिए।ऐसे माहौल में बच्चों को निर्भीक बनाना बेहद जरूरी है।