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पश्चिम बंगाल में दिखेगा ममता का ‘बांग्ला गौरव’

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल पर सभी की निगाहें टिकी हैं. बंगाल की लड़ाई को मदर ऑफ ऑल बैटल्स कहा जा रहा है. इस बार किसका खेल बिगड़ेगा? BJP या TMC में कौन करेगा खेल? 42 लोकसभा सीटों वाले बंगाल की राजनीति ने बीते 4 चुनावों में पूरी तरह यू-टर्न ले लिया है. यहां ‘अर्श से फर्श और फर्श से अर्श’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई है.
साल 2004 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी को पश्चिम बंगाल की महज 1 सीट पर जीत मिली थी. वहीं भाजपा को इस चुनाव में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. कांग्रेस को 6 और सीपीएम को 26 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. मगर 2009 के लोकसभा चुनाव में आंकड़े काफी हद तक बदल गए. इस चुनाव में टीएमसी ने 19 लोकसभा सीटें जीत लीं. भाजपा को 1 सीट से संतोष करना पड़ा. कांग्रेस ने अपनी स्थिति को यथावत रखा और 6 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. वहीं पिछले चुनाव में 26 सीट जीतने वाली सीपीएम महज 9 सीटें ही जीत सकी.

यूं बढ़ी भाजपा
2014 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी का दबदबा और बढ़ा और उसने 34 सीटें जीत लीं. वहीं भाजपा 2 सीटें जीतने में कामयाब रही. कांग्रेस को भी टीएमसी की आंधी का नुकसान हुआ और वह 4 सीटों पर सिमट गई. वहीं 2004 लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली सीपीएम भाजपा की बराबरी पर आ गई और महज दो सीट ही जीत सकी. 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस और सीपीएम के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा. सीपीएम इस चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई. वहीं कांग्रेस महज 2 सीटों पर सिमट गई. नुकसान तो इस चुनाव में टीएमसी को भी हुआ और वह पिछले चुनाव में अपनी जीती 34 सीटों की जगह 22 सीटें ही जीत सकी. वहीं भाजपा नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 18 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही.

कांग्रेस और लेफ्ट को हुआ नुकसान
सवाल ये है कि लेफ्ट और कांग्रेस के वोटर आखिर किधर गए. सीएसडीएस लोकनीति के आंकड़ों के अनुसार, लेफ्ट के परंपरागत वोटरों में से 39 फीसदी भाजपा के पास, 31 फीसदी टीएमसी के साथ चले गए और महज 30 फीसदी ही उसके पास बचे रह गए. वहीं अगर कांग्रेस के परंपरागत मतदाताओं की बात करें तो 32 फीसदी भाजपा के पास, 20 फीसदी टीएमसी के पास और 4 फीसदी लेफ्ट के पास चले गए. कांग्रेस के पास महज 32 फीसदी परंपरागत वोटर रह गए.

ध्रुवीकरण तेजी से बढ़ा
सीएसडीएस लोकनीति के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2019 लोकसभा चुनावों के वोट प्रतिशत को देखें तो पता चलेगा कि पश्चिम बंगाल में ध्रुवीकरण होता जा रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 21 फीसदी हिंदुओं ने वोट किया और मुस्लिमों ने महज 2 फीसदी. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हिंदुओं का 47 फीसदी वोट मिला. वहीं मुस्लिमों का 4 फीसदी वोट मिला. टीएमसी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 40 फीसदी हिंदुओं ने वोट दिया था. वहीं मुस्लिमों के भी 40 फीसदी वोट टीएमसी को मिले थे. मगर 2019 के चुनाव में टीएमसी को हिंदुओं के महज 32 फीसदी वोट मिले लेकिन मुस्लिमों के कुल 70 फीसदी वोट मिल गए.

संदेशखाली कांड से शिफ्ट होगा महिला वोट?
टीएमसी को 2019 में 44 फीसदी महिलाओं ने वोट किया. वहीं पुरुष मतदाता 42 फीसदी ही रहे. भाजपा को 2019 में महिला मतदाताओं के 40 फीसदी और पुरुष मतदाताओं के भी 40 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस, लेफ्ट सहित अन्य को बाकी बचे वोट मिले. जाहिर है महिला वोट टीएमसी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और अगर यह वोटबैंक संदेशखाली की वजह से थोड़ा भी डगमगाया तो उसे काफी नुकसान होगा.

अगर टीएमसी और कांग्रेस साथ लड़ते
अगर 2019 लोकसभा चुनाव में टीएमसी और कांग्रेस साथ मिलकर लड़ते तो वह कुल 24 सीट जीत पाते. वहीं भाजपा फिर भी 18 सीट जीत जाती. 2024 को लेकर अनुमान लगाया गया है कि अगर कांग्रेस और टीएमसी साथ लड़ते तो 30 सीटें जीत सकते थे. वहीं भाजपा को 12 सीटों से ही संतोष करना पड़ता.

सीएए क्या दिलाएगा वोट?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने बताया कि बंगाल में राजनीति परंपरागत रूप से congress और CPM की रही है. ध्रुवीकरण का पिछले दो चुनावों में असर रहा है, क्योंकि बंगाल में जातिगत राजनीति ज्यादा नहीं होती. वहां socio economic class base राजनीति होती है. गरीब और अमीर की राजनीति होती है. वहां पर मुस्लिम जनसंख्या 30 फीसदी है. यह भारत के मुस्लिम जनसंख्या का दोगुना है. भाजपा हिंदू बनाम मुस्लिम करने में कामयाब रही है. कांग्रेस और लेफ्ट के हिंदू वोट भी भाजपा को ट्रांसफर कर दिया है. वहीं इनके मुस्लिम वोट टीएमसी में ट्रांसफर हो गए. अब सीएए के बाद देखना होगा कि इसका क्या असर होता है.